व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
स्वयं को पहचानो
संसार में चौरासी लाख योनियां हैं। भांति-भांति के जीव- जंतु कीट-पतंग,
पशु-पक्षी, जलचर-नभचर हमें अपने चारों ओर दिखाई देते हैं। इन्हीं
प्राणियों में से एक मनुष्य भी है। यह तो निर्विवाद सत्य है कि संसार के
सभी प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है। सर्वगुण संपन्न शरीर के साथ-साथ
उसे बुद्धि-विवेक का वरदान भी प्राप्त है। वह सोच सकता है, चिंतन-मनन कर
सकता है, बोल सकता है, समझ सकता है. हँस सकता है, रो सकता है और हमारी
कल्पना से भी परे यदि कोई कार्य हो तो उसे भी कर सकता है। अन्य किसी
प्राणी में ऐसी क्षमता नहीं है। वे तो केवल इतना भर कर पाते हैं कि जिससे
उनका जीवन चलता रहे। हजारों-लाखों वर्ष पूर्व भी वे जिस स्थिति में थे आज
भी उसी रूप में हैं। उनके घोंसला या बिल आदि बनाने का जो ज्ञान तब था वही
आज भी है। दूसरी ओर मनुष्य अपनी बुद्धि-विवेक के द्वारा प्रगति की नित नई
ऊँचाइयों को छू रहा है।
हमें यह विचार करना होगा कि इस सुर-दुर्लभ मानव योनि में हमारा जन्म क्यों हुआ है? भगवान् ने हमारे ऊपर यह विशेष कृपा क्यों की है? इस जन्म से पूर्व हम कहाँ थे? और मृत्यु के बाद हमारा क्या होगा? हम आस्तिक हों या नास्तिक, पर यह तथ्य तो अब सभी मानते हैं कि आत्मा और शरीर अलग-अलग हैं। आत्मा के निकल जाने पर शरीर मृत हो जाता है, चाहे वह मनुष्य शरीर हो या फिर किसी भी जीव-जंतु का। हमारे साथ भी हजारों-लाखों वर्षों से ऐसा ही हो रहा है। अपने कर्मों के अनुसार फल तो सबको भोगना ही पड़ता है। हमने पूर्व जन्मों में भी जैसे अच्छे-बुरे कर्म किए थे, उन्हीं का फल भोगने हेतु विभिन्न योनियों में रहना पड़ा होगा। अब पुन: ईश्वर कृपा से मानव शरीर प्राप्त हुआ है। इस जीवन में भी हम जैसे कर्म करेंगे उसी के अनुरूप हमारा अगला जन्म होगा।
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