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उपयोगी हिंदी व्याकरण

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अर्थ की दृष्टि से वाक्य-भेद

किसी वाक्य का अर्थ (प्रयोजन) है। अर्थात् वाक्य बोलकर बोलने वाला सुनने वाले से क्या अपेक्षा रखता है। अर्थात् बोलने वाला बोलता ही क्यों हैं — इसके अनुसार वाक्य के आठ भेद होते हैं। ये भेद निम्नलिखित हैं:

1 उद्गारवाचक वाक्य: कितना रमणीक दृश्य है। ऐसे कथन उद्गार-मात्र हैं। यहाँ वक्ता अचानक बोल बैठता है, श्रोता की उपस्थिति आवश्यक नहीं है। विस्मयादिबोधक अव्यय लग कर ये प्रायः बनते हैं।

2 विधि (=आज्ञा) वाच्य-वाक्य : इस प्रकार के वाक्य बोलने के मूल में यह अपेक्षा रहती है कि श्रोता तत्काल या आगामी काल में कुछ करे। यह बड़ों के लिए अनुज्ञा-अनुमति-निवेदन आदि का भाव देता है। अनुदेशन या आदेश का भाव भी इससे प्रकट होता है। उदाहरणार्थ—अब बैठ कर पढ़ो। कृपया मुझे वह किताब दीजिए। अब कढ़ाई में मसाला भूनिए, आदि।

3 प्रश्नवाचक वाक्य: इनके मूल में जिज्ञासा होती है। अर्थात् श्रोता आपकी जिज्ञासा को दूर करेगा। प्रश्नवाचक वाक्यों में क्या, कौन, कब आदि शब्द होते हैं, उदाहरणार्थ – आप कल कहाँ गये थे? कल कौन आया था? आदि।

4 इच्छावाचक वाक्य : इनके मूल में अपनी संतुष्टि के लिए कुछ इच्छा या दूसरों के प्रति कामना होती है। सुझाव भी इसी कोटि में आते हैं। उदाहरणार्थ – मोहन, अब खेला जाए। आपकी यात्रा मंगलमय हो, आदि।

5 विधानवाचक (= निश्चयवाचक) वाक्य : यहाँ कथन होता है। प्रयोजन कूछ सूचना देना होता है। सूचना सत्य/असत्य हो सकती है, अतएव निश्चयार्थवृत्ति काम में आती है। यह विधान वर्तमान, भूत, भविष्य किसी काम में हो सकता है। जैसे – मैं पढ़ रहा हूँ। मैं कल दिल्ली जाऊँगा। वह कल लौट आया था, आदि।

6 नकारात्मक वाक्य : विधानवाचक वाक्य सकारात्मक व नकारात्मक हो सकता है। नकारात्मक में कथन न होने का भाव है। जैसे – मैं पढ़ नहीं रहा हूँ। मैं कल दिल्ली नहीं जाऊँगा। वह कल नहीं लौटा।

7 संदेहवाचक वाक्य : संदेहवाचक वाक्य में विधान होने में संदेह होता है। इसमें संदेहार्थी वृत्ति का प्रयोग होता है, जैसे – शायद वह कल यहाँ आए।

8 संकेतवाचक वाक्य: संकेतवाचक वाक्य में विधान किसी शर्त की पूर्ति के बाद ही होता है, अन्यथा नहीं होता। यहाँ संकेतार्थी वृत्ति का उपयोग होता है। जैसे- अगर वह आएगा, तो मैं जाऊँगा। अगर तुमने पढ़ा होता, तो परीक्षा में उत्तीर्ण हो गये होते।

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