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2.3 जिह्वा या अन्य अवयवों द्वारा श्वास का अवरोध
इस आधार पर व्यंजनों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जा सकता है:
स्पर्श: जिन व्यंजनों के उच्चारण में उच्चारण अवयव (जीभ या होठ) दूसरे उच्चारण अवयव का स्पर्श करता है, जिससे वायु पूर्ण रूप से रुर जाती है उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं, जैसे, क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ। इसका एक उपवर्ग भी है, जिसे हम नासिक्य व्यंजन कहते हैं, अर्थात् मुख के साथ-साथ नाक से बोले जाने वाले व्यंजन। जब हम 'प' या 'ब' का उच्चारण करते हैं तो हवा नाक से नहीं निकलती, लेकिन जब 'म' बोलते हैं तो हवा मुँह से कम और नाक से बहुत अधिक निकलती है। नासिक्य व्यंजन भी स्पर्श व्यंजन हैं। प्रत्येक वर्ग का पाँचवां व्यंजन नासिक्य स्पर्श है - ङ, ञ, ण, न, म।
स्पर्श-संघर्षी: स्पर्श-ध्वनियों का एक उपवर्ग स्पर्श-संघर्षी ध्वनियाँ भी हैं। इन ध्वनियों का उच्चारण भी स्पर्श-ध्वनियों की तरह ही होता है, लेकिन स्पर्श के बाद वायु घर्षण के साथ बाहर निकलती है। स्पर्श ध्वनियों की तरह व्यवहार करने के कारण परंपरा से ये ध्वनियाँ स्पर्श कोटि की ही मानी जाती हैं, जैसे - च, छ, ज, झ।
संघर्षी: स्पर्श ध्वनियों में वायु पूर्ण रुप से अवरुद्ध होता है, जबकि संघर्षी ध्वनियों में वायु का अवरोध इस प्रकार रहता है कि वह घर्षण के साथ निकलता है। इन ध्वनियों का उच्चारण देर तक किया जा सकता है। घर्षण के साथ हवा निकलने के कारण इन ध्वनियों को संघर्षी कहा जाता है। इन्हें ऊष्म ध्वनि भी कहा जाता है। हिंदी में ऊष्म ध्वनियाँ हैं- स, श, ष, ह।
अन्तःस्थ: पारंपरिक वर्ण माला के बीच में स्थित होने के कारण य, र, ल ,व को अंतःस्थ कहा जाता है। इन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास का अवरोध बहुत ही कम होता है। परंपरा से इसमें य, र, ल, व चार वर्णों को रखा गया है। य और व को अर्धस्वर भी कहा जाता है।
उत्क्षिप्त: जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा ऊपर उठकर मूर्धा को स्पर्श कर तुरंत नीचे गिरती है, उन्हें 'उत्क्षिप्त' कहते हैं, जैसे - ड़, ढ़
अयोगवाह: हिंदी वर्णमाला के अनुस्वार (ं) और विसर्ग (ः) को 'अ' के साथ 'अं' और 'अः' लिखा जाता है। यद्यपि परंपरानुसार इन्हें स्वरों के साथ रखा जाता है किन्तु ये ध्वनियाँ नहीं हैं। संस्कृत व्याकरण की परंपरा में इन्हें अयोगवाह कहते हैं। इनका उच्चारण व्यंजनों के उच्चारण की तरह स्वर की सहायता से ही होता है। अयोगवाह के उच्चारण से पूर्व स्वर आता है। स्वर और व्यंजनों के मध्य की स्थिति होने के कारण ही इनको प्रारंभ में दी गई वर्णमाला में स्वरों के बाद स्थान दिया गया है।
अनुस्वार: (ं) हिंदी में उसी वर्ग के पंचमाक्षर के स्थान पर (समान) अनुस्वार का प्रयोग होता है, जैसे - संकल्प (सङकल्प), संचय (सञ्चय), संताप (सन्ताप), संबोधन (सम्बोधन) य, र, ल, व, श, ष, स, ह से पहले अनुस्वार का प्रयोग होता है, जैसे - संयम, संरक्षक, संलाप, संशय, संसार, संहार।
जिन शब्दों में भिन्न नासिका व्यंजन हैं अथवा किसी पंचमाक्षर का द्वित्व है तो अनुस्वार प्रयोग नहीं किया जायेगा, मूलतः पंचमाक्षर को लिखा जायेगा, जैसे - जन्म, निम्न, वाङ्मय, उन्नति, सम्मति, मृण्मय, पुण्य।
विसर्ग: (ः) विसर्ग का उच्चारण अघोष 'ह्' व्यंजन के समान है, जैसे - स्वतः = स्वतह्। विसर्ग का प्रयोग अधिकतर उन्हीं शब्दों में होता है, जो संस्कृत से तत्सम रूप में हिंदी में गृहीत हैं, जैसे - मनःस्थिति, अतः, प्रायः। 'दुःख' को अब सुख के अनुकरण पर विसर्गरहित 'दुख' लिखा जाने लगा है पर तत्सम शब्द दुःखानुभूति में यह विद्यमान है। विसर्ग का संधि रूपों में विशेष महत्व है अतएव इसकी चर्चा उस स्थान पर विशेष रूप से की गई है। जैसे हिंदी के 'छिः' शब्द में विसर्ग के दर्शन होते हैं।
व्यंजन-गुच्छ: जब दो या दो से अधिक व्यंजन एक साथ एक श्वास के झटके में बोले जाते हैं, तो उनको व्यंजन-गुच्छ कहा जाता है; जैसे - प्यास शब्द के आदि में प्रायः दो तरह के व्यंजन-गुच्छ मिलते हैं -
1. व्यंजन + य, र, ल, व
2. स+य र ल व से भिन्न व्यंजन
क् + य = क्यारी
क् + व = क्वारा
क् + र = क्रम
क् + ल = क्लेश
ग् + य = ग्यारह
ग् + व = ग्वाल
ग् + र = ग्राम
ग् + ल = ग्लानि
स् + र = स्रोत
स् + ल = स्लेट (अंग्रेजी शब्द)
श् + य = श्याम
श् + र = श्री
स् + क् = स्कंध
स् + ट = स्टेशन (अंग्रेजी शब्द)
स् + त = स्तन
स् + थ = स्थल
स् + न = स्नान
स् + प = स्पष्ट
स् + फ = स्फूर्ति
स् + म = स्मारक
शब्द के मध्य तथा अंत में भी अनेक व्यंजन-गुच्छ मिलते हैं, जैसे
न् + त = अन्त
र् + ग = मार्ग
प् + त = लुप्त
म् + भ = प्रारंभ आदि।
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