श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1महर्षि वेदव्यास |
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येषामर्थे कांक्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।।33।।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।।33।।
हमें जिनके लिये राज्य, भोग और सुखादि अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन
की आशा को त्यागकर युद्ध में खड़े हैं।।33।।
क्षत्रिय अथवा राजा सामान्यतः युद्ध में अपने सम्बन्धियों की सुरक्षा, उनको अधिक सुख पहुँचाने के लिए अथवा धन सम्पदा आदि अर्जित करने के लिए युद्ध करते हैं। यदि इस प्रकार के कारण न हो तो युद्ध के लिए व्यर्थ कौन लड़ेगा? उसे आश्चर्य हो रहा है कि जिनको सुख पहुँचाने के लिए उसे युद्ध में प्रवृत्त होना चाहिए वे ही स्वयं उससे लड़ने के लिए धन और जीवन की सभी आशायें छोड़कर यहाँ युद्ध के उद्यत है। बड़े आश्चर्य की बात है!
क्षत्रिय अथवा राजा सामान्यतः युद्ध में अपने सम्बन्धियों की सुरक्षा, उनको अधिक सुख पहुँचाने के लिए अथवा धन सम्पदा आदि अर्जित करने के लिए युद्ध करते हैं। यदि इस प्रकार के कारण न हो तो युद्ध के लिए व्यर्थ कौन लड़ेगा? उसे आश्चर्य हो रहा है कि जिनको सुख पहुँचाने के लिए उसे युद्ध में प्रवृत्त होना चाहिए वे ही स्वयं उससे लड़ने के लिए धन और जीवन की सभी आशायें छोड़कर यहाँ युद्ध के उद्यत है। बड़े आश्चर्य की बात है!
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