लोगों की राय

श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

महर्षि वेदव्यास

निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 1

(यह पुस्तक वेबसाइट पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है।)

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।45।।

हा! शोक! हम लोग बुद्धिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उद्यत हो गये हैं।।45।।

अर्जुन के प्रलाप की यह स्थिति हो गई है, वह शोक की अवस्था में उद्दिग्न होकर अपनी बुद्धि की अवस्था पर प्रलाप करने लग जाता है। यहाँ तक कि वह यह भूल जाता है कि युद्ध अधर्म की हानि के लिए इस युद्ध में प्रस्तुत हुआ है, न कि केवल सुख अथवा राज्य की प्राप्ति के लिए।

...Prev | Next...

To give your reviews on this book, Please Login