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श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3

महर्षि वेदव्यास

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अर्जुन उवाच

अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुष:।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित:।।36।।


अर्जुन बोले - हे कृष्ण! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात् लगाये हुए की भांति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है?।।36।।

परधर्म छोड़कर स्वधर्म को श्रेयस्कर मानने की बात सुनकर स्वाभाविक रूप से अर्जुन प्रश्न करते हैं, यदि हर व्यक्ति के लिए परधर्म को छोड़कर स्वधर्म को अपनाना श्रेयस्कर है, तब स्वधर्म को छोड़कर व्यक्ति किन कारणों के प्रभाव में बलात् पाप कर्मों में प्रवृत्त होता है। यह तो पहले ही सिद्ध हो चुका है कि जीवन भर राग-द्वेष व्यक्ति को उलझाए रहते हैं, परंतु उसके अतरिक्त ऐसे कौन से कारण है जिनके प्रभाव से व्यक्ति न चाहते हुए भी पापाचरण करता है?

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