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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

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संभोग से समाधि की ओर...


मैं समझती हूं कि ओशो हमारे युग की एक बहुत बड़ी प्राप्ति हैं, जिन्होंने सूरज की किरण को लोगों के अंतर की ओर मोड़ दिया, और सहज मन से उस संभोग की बात कह पाए...जो एक बीज और एक किरण का संभोग है, और जिससे खिले हुए फूल की सुगंधि इंसान को समाधि की ओर ले जाती है, मुक्ति की ओर ले जाती है, मोक्ष की ओर ले जाती है...

मन की मिट्टी का जरखेज होना ही उसका मोक्ष है, और उस मिट्टी में पड़े हुए बीज का फूल बनकर खिलना ही उसका मोक्ष है...मानना होगा कि ओशो ही यह पहचान दे सकते थे, जिन्हें चिंतन पर भी अधिकार है, और वाणी पर भी अधिकार है...

सिर्फ एक बात और कहना चाहती हूं अपने अंतर अनुभव से-उस व्यथा की बात, जो अंकुर बनने से पहले एक बीज की व्यथा होती...
मेरा सूरज बादलों के महल में सोया हुआ है
जहां कोई सीढ़ी नहीं कोई खिड़की नहीं
और वहां पहुंचने के लिए-
सदियों के हाथों ने जो डंडी बनाई है
वो मेरे पैरों के लिए बहुत संकरी है...
मैं मानती हूं कि हर चिंतनशील साधक के लिए, हर बना हुआ रास्ता संकरा होता है। अपना रास्ता तो उसे उपने पैरों से बनाना होता है। लेकिन ओशो इस रहस्य को सहज मन से कह पाए, इसके लिए हमारा युग उन्हें धन्यवाद देता है।
-अमृता प्रीतम

अमृता प्रीतम एक भावप्रवम कवयित्री एवं लेखिका हैं जिनसे न केवल भारत का अपितु सपूर्ण विश्व का साहित्य धन्य हुआ है! '
आपको साहित्य अकादमी तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
आप राष्ट्रपति-द्वारा मनोनीत राज्यसभा सदस्या हैं।
1960 से आप पंजाबी पत्रिका नागमणि का संपादन कर रही हैं?
आपके काव्यमय लेख रजनीश टाइंस इंटरनेशनल में अक्सर प्रकाशित होते हैं।

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