शब्द का अर्थ
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ग्रहण :
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पुं० [सं० ग्रह+ल्युट-अन] १. पकड़ने या लेने की क्रिया या भाव। २. कोई बात ठीक समझकर मान लेना। ३. अंगीकार या स्वीकार करना। ४. सूर्य या चंद्रमा पर क्रमशः चंद्रमा या पृथ्वी की छाया पड़ने की वह स्थिति जिसमें उन का कुछ अथवा पूरा बिंब अँधेरा या ज्योंति विहीन सा प्रतीत होने लगता है। (इक्लिप्स) ५. उक्त के आधार पर किसी वस्तु, व्यक्ति आदि की वह स्थिति जिसमें उसकी उज्ज्वलता, महत्व, मान आदि पर किसी प्रकार का धब्बा लगा हो। ६. ऐसी वस्तु जिसके कारण किसी की उज्ज्वलता, महत्व, मान आदि का बुरा प्रभाव पड़ता हो। ७. तात्पर्य। मतलब। |
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ग्रहणांत :
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पुं० [ग्रहण-अंत, ष० त०] अध्ययन का समाप्ति पर होना। |
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ग्रहणा :
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स० गहना। (पकड़ना)। |
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ग्रहणि, ग्रहणी :
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स्त्री० [सं० Öग्रह+अनि] [ग्रहणि+ङीष्] १. पक्वाशय और आमाशय के बीच की एक नाड़ी जो अग्नि या पित्त का प्रधान आधार मानी गयी है। (सुश्रुत) २. उक्त नाडी़ में विकार होने के कारण होनेवाली दस्तों की एक बीमारी। संग्रहणी। |
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ग्रहणीय :
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वि० [सं०√ग्रहग्रह+अनीयर] १. ग्रहण अर्थात् अंगीकार किये जाने के योग्य। २. नियम या विधि के रूप में माने जाने के योग्य। |
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