शब्द का अर्थ
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चाम :
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पुं० [सं० चर्म] चमडा। खाल। उदा०–मानवता की मूर्ति गढोगे तुम सँवार कर चाम।-पंत। मुहा०–चाम के दाम चलाना=(क) चमड़े के सिक्के चलाना। (ख) अपने प्रताप, बल, वैभव, आदि से उसी प्रकार जबरदस्ती अनोखे और असाधारण कार्य करना, जिस प्रकार निजाम नामक भिश्ती ने हुमायुँ को डूबने से बचाकर फल स्वरूप थोड़े समय के लिए राज्याधिकार प्राप्त करके चमड़े के सिक्के चलाये। (ग) व्यभिचार से धन कमाना। (बाजारू) |
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चाम-चोरी :
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स्त्री० [हिं० चाम+चोरी] गुप्त रूप से किया जानेवाला परस्त्री-गमन। |
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चामड़ी :
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स्त्री०=चमड़ी। |
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चामर :
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पुं० [सं० चमरी+अण्] १. चँवर। मोरछल। २. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में रगण, जगण, रगण, जगण और रगण होते हैं। |
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चामर-ग्राह :
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पुं० [सं० चामर√ग्रह (ग्रहण करन)+अण्, उप० स०] चँवर डुलानेवाला सेवक। |
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चामर-ग्राहिक :
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पुं० [सं० चामरग्रहिन+कन्]=चामर-ग्राह। |
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चामर-ग्राही (हिन्) :
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पुं० [सं० चामर√ग्रह्+णिनि, उप० स०]= चामर-ग्राह। |
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चामर पुष्प :
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[ब० स०] १. सुपारी का पेड़। २. आम का पेड़। ३. केतकी। ४. काँस। |
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चामर व्यजन :
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पुं० [ष० त०] चँवर। मोरछल। |
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चामरिक :
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पुं० [सं० चामर+ठन्-इक] चँवर डुलानेवाला सेवक। |
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चामरी :
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स्त्री० [सं० चामर+अच्+ङीप्] सुरागाय। |
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चामिल :
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स्त्री० दे० ‘चंबल’। |
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चामीकर :
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पुं० [सं० चमीकर+अण्] १. सोना। २. स्वर्ण। २. कनक। धतूरा। वि० [चमीकर+अण्] १. सोने का बना हुआ। २. सोने की तरह का। सुनहला। |
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चामुंडा :
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स्त्री० [सं० चमूला(आदान)+क, पृषो सिद्धि] एक देवी जिन्होने शुंभ-निशुंभ के चंड और मुंड नामक दो सेनापति दैत्यों का वध किया था। कापालिनी। भैरवी। |
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चाम्य :
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पुं० [सं०√चम् (खाना)+ण्यत्] खाद्य पदार्थ। |
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