शब्द का अर्थ
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जीवन :
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पुं० [सं०√जीव्+ल्युट-अन] [वि० जीवित] १. वह नैसर्गिक शक्ति जो प्राणियों, वृक्षों आदि को अंगों और उपांगों से युक्त करके सक्रिय और सचेष्ट बनाती है और जिसके फलस्वरूप वे अपना भरण-पोषण करते हुए अपने वंश की वृद्धि करते हैं। आत्मा या प्राणों से पिंड या शरीर से युक्त रहने की दशा या भाव। जान। प्राण। विशेष–आधुनिक विज्ञान के मत से वह विशिष्ट प्रकार की क्रिया-शीलता है जो समस्त जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और मानव जाति में पाई जाती है। इसके ये मुख्य पाँच लक्षण माने गये हैं-गतिशीलता, अनुभूति या संवदेन, आत्मपोषण, आत्म-वर्धन और प्रजनन। जब तक भौतिक तत्त्वों से बने पिंड या शरीर में आत्मा या प्राण रहते हैं तब तक वह चेतन और जीवित रहता है। इसकी विपरीत दशा में वह नष्ट हो जाता या मर जाता है। जिन पदार्थों में आत्मा या प्राण होते ही नहीं, वो अचेतन और निर्जीव कहलाते हैं २. किसी विशिष्ट रूप या शरीर में आत्मा के बने रहने की सारी अवधि या समय। जिंदगी। जैसे–अमर या शाश्वत जीवन, पार्थिव या भौतिक जीवन। ३. किसी वस्तु या व्यक्ति के आदि से अन्त तक अथवा जन्म से मरण तक की सारी अवधि या समय। जैसे–(क) इस प्रकार के भवनों (या मंदिरों) का जीवन कई सौ वर्षो का होता है। (ख) बहुत से कीड़ों-मकोड़ो का जीवन कुछ घंटों या (दिनों) का होता है। ४. भौतिक शरीर में प्राणों के बने रहने की अवस्था या दशा। जैसे–(क) हमारे लिए यह जीवन मरण का प्रश्न है। (ख) डूबे हुए बच्चे को तुरंत जल से निकाल कर उसमें फिर से जीवन लाया गया। ५. किसी प्राणी के अस्तित्व काल का वह विशिष्ट अंग, अंश या पक्ष जिसमें वह किसी विशेष प्रकार से या विशेष रूप में रहकर अपने दिन बिताता हो। जैसे–(क) आध्यात्मिक या वैवाहिक जीवन। (ख) ग्राम्य, नागरिक सभ्य या सैनिक जीवन। (ग) दरिद्रता या पराधीनता का जीवन। ६. किसी विशिष्ट प्रकार के क्रिया-कलाप, व्यवसाय या व्यापार में बिताई जानेवाली कोई अवधि या उसका कोई अंश। जैसे–(क) खेल-कूद या भोग-विलास का जीवन। (ख) बढ़इयों, लोहारों या सुनारों का जीवन। ७. वह तत्त्व, पदार्थ या शक्ति जो किसी दूसरे तत्व पदार्थ या व्यक्ति का अस्तित्व बनाये रखने के लिए अनिवार्य अथवा उसे सुखमय रखने के लिए परम आवश्यक हो। जैसे–जल (या वायु) ही सब प्राणियों का जीवन है। ८. उक्त के आधार पर, कोई परम प्रिय वस्तु या व्यक्ति। उदाहरण–जीवन मूरि हमारी अली यह कौन कह्यौ तोहि नंद लला है।-बलबीर। ९. वह जिससे किसी को कुछ करने या अपना अस्तित्व बनाये रखने की पूरी प्रेरणा या शक्ति प्राप्त होती है। जान। प्राण। जैसे–आप ही तो इस संस्था के जीवन हैं। १॰. वह तत्त्व या बात जिसके वर्तमान होने पर किसी दूसरे तत्त्व या बात में यथेष्ठ ऊर्जा, ओज आदि अथवा यथेष्ठ वांछित प्रभाव उत्पन्न करने या फल दिखाने की शक्ति दिखाई देती है। जैसे–किसी जाति या दल का संघटन में दिखाई देनेवाला जीवन। ११. वायु। हवा। १२. जल। पानी। १३. नवनीत। मक्खन। १४. हड्डियों के अन्दर का गूदा। मज्जा। १५. जीविका निर्वाह का साधन। वृत्ति। १६. पुत्र। बेटा। १७. परमात्मा। परमेश्वर। १८. जीवक नामक ओषधि। वि० परम प्रिया। बहुत प्यारा। |
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जीवनक :
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पुं० [सं० जीवंन+कन्] १. आहार। २. अन्न। |
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जीवन-कारण :
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पुं० [ष० त०] न्याय-दर्शन में जीव या प्राणी के वे कृत्य या प्रयत्न जो बिना इच्छा, द्वेष आदि के आप से आप और प्राकृतिक रूप से बराबर होते रहते हैं। जैसे–श्वास, प्रश्वास आदि। |
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जीवन-चरित्र :
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पुं०=जीवन-चरित। |
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जीवन-धन :
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वि० [ष० त०] १. जो किसी के जीवन का धन अर्थात् सर्वस्व हो। परम प्रिय। २. प्राणाधार। प्राण-प्रिय। |
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जीवन-नौका :
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स्त्री० [ष० त०] वह छोटी नौका जो बड़ों जहाजों पर इसलिए रखी जाती है कि जब जहाज डूबने लगे तब लोग उस पर सवार होकर अपनी जान बचा सकें। (लाइफ बोट)। |
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जीवन-प्रभा :
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स्त्री० [ष० त०] आत्मा। |
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जीवन-प्रमाणक :
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पुं० [ष० त०] इस बात का प्रमाण कि अमुख व्यक्ति अमुक दिन या तिथि तक जीवित था अथवा इस समय जीवित हैं। (लाइफ सर्टिफिकेट) |
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जीवन-बूटी :
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स्त्री० [सं० जीवन+हिं० बूटी] १. वह कल्पित जड़ी या बूटी जिसके संबंद्ध में प्रसिद्ध है कि वह मरे हुए आमदी को जिला देती है। संजीवनी। २. लाक्षणिक अर्थ में, वह चीज जो किसी के जीवन का आधार हो। ३. प्राण-प्रिय वस्तु। |
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जीवनमूरि :
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स्त्री०=जीवन-बूटी। |
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जीवन-वृत् :
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पुं० [ष० त०] १. जीवन-चरित। २. किसी जीव या प्राणी के आदि से अंत तक की सब घटनाओं या बातों का वर्णन या इतिहास। (लाइफ-हिस्ट्री)। |
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जीवन-वृत्तांत :
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पुं० [ष० त०] जीवन-वृत्त। |
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जीवनवृत्ति :
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स्त्री० [ष० त०] जीविका। रोजी। |
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जीवन-संग्राम :
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पुं०=जीवन-संघर्ष। |
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जीवन-संघर्ष :
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पुं० [ष० त०] प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित बने रहने या जीविका उपार्जन करने के लिए किया जानेवाला विकट प्रयत्न या प्रयास। (स्ट्रगल फार एक्जिस्टेन्स)। |
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जीवन-हेतु :
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पुं० [ष० त०] जीविका। रोजी। |
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जीवनांत :
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पुं० [जीवन-अंत, ष० त०] जीवन का अंत अर्थात् मृत्यु। |
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जीवना :
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पुं० [सं०√जीवन+णिच्+युच्-अन, टाप्] १. महौषध। अ०=जीना (जीवित रहना)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स०=जीमना (भोजन करना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जीवनाघात :
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पुं० [सं० जीवन-आघात, ब० स०] विष। |
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जीवनावास :
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वि० [सं० जीवन-आवास, ब० स०] जल में रहनेवाला। पुं० १.=वरुण। २. =देह। शरीर। |
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जीवनार्ह :
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पुं० [सं० जीवन-अर्ह, ष० त०] १. अन्न। २. दूध। |
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जीवनि :
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वि० [सं० जीवनी] १. (ऐसी ओषधि या वस्तु) जो किसी को जीवित रखने में विशिष्ट रूप से समर्थ हो। २. अत्यन्त प्रिय (वस्तु या व्यक्ति)। पुं० १. संजीवनी बूटी। २. काकोली। ३. तिक्त जीवंती। डोडी। ४. मेदा नाम की ओषधि। स्त्री=जीवनी। |
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जीवनी :
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स्त्री० [सं० जीवन+ङीष्] १. काकोली। २. जीवंती। ३. महामेदा। ४. डोडी। तिक्त जीवंती। स्त्री=जीवन-चरित। |
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जीवनीय :
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वि० [सं०√जीव+अनीयर] १. जो जीवित रखने या रहने योग्य हो। जी सकने वाला। २. जीवन या जीवनी शक्ति प्रदान करने वाला। ३. अपनी जीविका आप चलानेवाला। पुं० १. =जल। पानी। २. जयंती वृक्ष। ३. दूध (डिं०)। |
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जीवनीय-गण :
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पुं० [ष० त०] वैद्यक में बलकारक ओषधों का एक वर्ग जिसके अंतर्गत अष्टवर्ग, पर्णिनी, जीवंती, मधूक और जीवन नामक वनस्पतियाँ हैं। |
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जीवनीया :
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स्त्री० [सं० जीवनीय+टाप्] जीवंती नामक लता। |
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जीवनेत्री :
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स्त्री० [सं० जीव√नी (ढोना)+तृच्-ङीष्] सैंहली वृक्ष। |
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जीवनोपाय :
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पुं० [सं० जीवन-उपाय,ष० त० ] जीवन के निर्वाह और रक्षा के उपाय या साधन। जीविका। रोजी। |
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जीवनौषध :
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स्त्री० [जीवन-औषध, ष० त०] वह औषध जिसमें मरता हुआ प्राणी जी जाय। जीवन बूटी। संजीवनी। |
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जीवन्मुक्त :
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वि० [सं०√जीव्+शतृ, जीवन-मुक्त, कर्म० स०] [भाव० जीवनमुक्ति] (जीव) जिसने आत्म ज्ञान प्राप्त कर लिया हो और इसी लिए जो आवागमन के बंधन से मुक्त हो गया हो। |
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जीवन्मुक्ति :
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स्त्री० [सं० जीवत्-मृत, कर्म० स०] जीवन्मुक्त होने की अवस्था या भाव। |
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जीवन्मृत :
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वि० [सं० जीवत्-मृत्,कर्म.स०] (अधम प्राणी) जो जीवित होने पर भी मरे हुए के समान हो। |
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