शब्द का अर्थ
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पतिंग :
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पुं०=पतंगा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पतिंगा :
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पुं०=पतंगा। |
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समानार्थी शब्द-
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पतिंवरा :
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वि० [सं० पति√वृ (वरण करना)+खच्, मुम्] १.(स्त्री) जो अपना पति स्वयं चुने। स्वेच्छा से पति का वरण करनेवाली (स्त्री)। स्वयंवरा। स्त्री० काला जीरा। |
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पति :
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पुं० [सं०√पा (रक्षा)+डति] [स्त्री० पत्नी] १. किसी वस्तु का मालिक या स्वामी। अधिपति। प्रभु। जैसे—गृहपति। २. स्त्री की दृष्टि से वह पुरुष जिसके साथ उसका विधिवत् विवाह हुआ हो। खाविंद। दूल्हा। शौहर। विशेष—साहित्य में श्रृंगार रस का आलम्बन वह नायक ‘पति’ माना जाता है, जिसने नायिका का विधिवत् पाणि-ग्रहण किया हो। ३. पाशुपत दर्शन के अनुसार सृष्टि, स्थिति और संहार का वह कारण जिसमें निरतिशय, ज्ञान-शक्ति और क्रियाशक्ति होती है और ऐश्वर्य से जिसका नित्य संबंध होता है। ईश्वर। ४. जड़। मूल। स्त्री० [हिं० पत=प्रतिष्ठा] १. प्रतिष्ठा। सम्मान। २. लज्जा। शर्म। उदा०—जो पति संपति हूँ बिना, जदुपति राखे जाह।—बिहारी। |
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पतिआना :
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स०=पतियाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पतिआर :
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वि० [हिं० पतियाना] जिस पर विश्वास किया जा सके। पुं०=विश्वास। |
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पतिक :
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पुं० [सं० प्रतिकः] कार्षापण नाम का पुराना सिक्का। |
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पति-कामा :
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वि० [सं० ब० स०, टाप्] (स्त्री) जिसके मन में किसी पुरुष से विधिवत् विवाह करने की इच्छा हो। |
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पतिघातिनी :
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स्त्री० [सं० पति√हन् (हिंसा)+णिनि—ङीप्] १. पति की हत्या करनेवाली स्त्री। पति को मार डालनेवाली स्त्री। २. फलित ज्योतिष में, ऐसी स्त्री जिसका ग्रहों के प्रभाव के कारण विधवा हो जाना अवश्यम्भावी या निश्चित हो। ३. सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार स्त्रियों के हाथ में होनेवाली एक रेखा जिसके प्रभाव से उनका विधवा हो जाना निश्चित माना जाता है। |
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पतिघ्न :
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वि० [सं० पति√हन्+ठक्] पति को मार डालनेवाला या वाली। पुं० स्त्रियों में होनेवाला वह अशुभ चिन्ह या लक्षण जिससे उसके पति के शीघ्र ही मर जाने की संभावना सूचित होती है। |
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पतिघ्नी :
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स्त्री० [सं० पतिघ्न+ङीप्]=पतिघातिनी। |
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पतिजिया :
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स्त्री० [सं० पुत्रजीवा] जीया पोता नामक वृक्ष। |
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पतित :
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भू० कृ० [सं०√पत् (गिरना)+क्त] [स्त्री० पतिता, भाव० पतितता] १. ऊपर से नीचे आया या गिरा हुआ। २. नीचे की ओर झुका हुआ। नत। ३.(व्यक्ति) जिसका नैतिक दृष्टि से पतन हो चुका हो। ४. ऊपरी जाति या वर्ग के धर्म या धार्मिक प्रथाओं, विश्वासों आदि को न माननेवाला, उनका उल्लंघन करनेवाला अथवा उन्हें हेय समझनेवाला। ५. बहुत बड़ा अधम, नीच या पापी। ६. जो अपनी जाति, धर्म या समाज से किसी हीन आचरण के कारण निकाला या बहिष्कृत किया गया हो। ७. जो युद्ध आदि में गिरा, दबा या हरा दिया गया हो। ८. अपवित्र। मलिन। ९. गिराया या फेंका हुआ। |
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पतित-उधारन :
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वि० [सं० पतित+हिं० उधारना (सं० उद्धरण)] पतितों का उद्धार करनेवाला तथा उन्हें सद्गति देनेवाला। पुं० ईश्वर। |
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पतितता :
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स्त्री० [सं० पतित+तल्—टाप्] १. पतित होने की अवस्था या भाव। २. जाति या धर्म से च्युत होने का भाव। ३. अपवित्रता। ४. अधमता। नीचता। |
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पतित-पावन :
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वि० [पतित√पाव+ल्युट्—अन] [स्त्री० पतितपावनी] पतित को भी पवित्र करनेवाला पतितों को शुद्ध करनेवाला। पुं० परमेश्वर। |
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पतित-वृक्ष :
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वि० [कर्म० स०] पतित दशा में रहनेवाला। जातिच्युत होकर जीवन बितानेवाला। |
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पतितव्य :
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वि० [सं०√पत्+तव्यत्] जो पतित होने को हो या पतित होने के योग्य हो। |
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पतित-सावित्रीक :
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वि० [ब० स० कप्] (ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा शूद्र) जिसका यज्ञोपवीत विधिवत् न हुआ हो अथवा हुआ ही न हो। |
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पतित्व :
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पुं० [सं० पति+त्व] १. प्रभुत्व। स्वामित्व। २. पति या पाणिग्राहक होने की अवस्था, भाव या समर्थता। |
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पति-देवा :
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वि० [ब० स०] (ऐसी स्त्री) जो अपने पति या स्वामी को ही सबसे बड़ा देवता मानती हो; अर्थात् पतिव्रता। |
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पति-धर्म :
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पुं० [ष० त०] १. पति और स्वामी का कर्तव्य और धर्म। २. पति के प्रति पत्नी का कर्त्तव्य और धर्म। |
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पतिधर्मवती :
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वि० [सं० पतिधर्म+मतुप्, वत्व, ङीप्] (स्त्री) जो पति के प्रति अपने कर्तव्य करने के लिए सचेत हो। |
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पतिनी :
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स्त्री०=पत्नी(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पतिपारना :
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स० [सं० प्रतिपालन] १.प्रतिपालन करना। पूरा करना। २.पालन-पोषण करना। |
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पति-प्राणा :
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स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] पति को प्राणों के समान समझनेवाली अर्थात् पतिव्रता स्त्री। |
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पतिया :
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स्त्री०=पाती (चिट्ठी या पत्री)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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पतियाना :
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स० [सं० प्रत्यय+हिं० आना (प्रत्य०)] १. किसी की कही हुई बात आदि पर विश्वास करना। सच समझना। २. किसी व्यक्ति को विश्वसनीय या सच्चा समझना। |
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पतियार (ा) :
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वि० [हिं० पतियाना] विश्वसनीय। पुं० प्रत्यय। विश्वास।(पतियारा)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पति-रिपु :
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वि० [सं० ब० स०] पति से द्वेष या शत्रुता करनेवाली। पति से वैर रखनेवाली। (स्त्री)। |
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पति-लंघन :
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पुं० [सं० ष० त०] स्त्री का दूसरे पति से विवाह करके पहले मृत-पति का तिरस्कार करना। |
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पतिलोक :
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पुं० [सं० ष० त०] पुराणानुसार वह लोक जिसमें स्त्री का मृत पति रहता है और जहाँ अच्छी स्त्री भी मरने पर भेजी जाती है। |
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पतिवंती :
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वि० [सं० पति-मती] (स्त्री) जिसका पति जीवित या वर्तमान हो। सधवा। |
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पतिवती :
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वि०=पतिवंती। |
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पतिवत्नी :
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वि० स्त्री० [सं० पति+मतुप्, वत्व, ङीप्, नुक् ]=पतिवंती। |
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पतिवर्त्ता :
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स्त्री०=पतिव्रता। |
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पतिवाह :
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पुं० [?] उत्तर प्रदेश के कुछ पूर्वी जिलों में रहनेवाली अहीरों की एक जाति। |
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पति-वेदन :
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वि० [सं० ष० त०] जो पति प्राप्त करावे। पति प्राप्त करानेवाला। पुं० महादेव शिव। |
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पति-वेदना :
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स्त्री० [सं० ष० त०] तंत्र-मंत्र या और किसी उपचार से पति को प्राप्त करनेवाली स्त्री। |
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पति-व्रत :
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पुं० [सं० ष० त०] विवाहिता स्त्री का वह व्रत कि मैं सदा पति में अनन्य भक्ति रखूँगी, आज्ञाकारिणी बनकर सेवा करूँगी और पर-पुरुष की ओर कभी कुदृष्टि से नहीं देखूँगी। पातिव्रत्य। |
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पतिव्रता :
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वि० [सं० ब० स०, टाप्] पति-धर्म ही जिसका व्रत हो। अर्थात् पति में पूर्ण निष्ठा रखनेवाली तथा उसका अनुसरण करनेवाली सच्चरित्रा (स्त्री)। |
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पतिष्ठ :
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वि० [सं० पतितृ+इष्ठन् ‘तृ’ का लोप] पूरी तरह से पतन की ओर प्रवृत्त रहने या होनेवाला। अत्यन्त पतन-शील। |
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पति-व्यूह :
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पुं० [ष० त०] वह सैनिक व्यूह-रचना जिसमें आगे कवचधारी सैनिक हों और पीछे धनुर्धर। |
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