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पांशु  : स्त्री०[सं०√पंस् (श्)+उ, दीर्घ] १. धूलि। रज। २. बालू। ३. गोबर की खाद। पाँस। ४. पित्त पापड़ा। ५. एक प्रकार का कपूर। ६. भू-संपत्ति। जमीन। जायदाद।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-कसीस  : पुं० [उपमि० स०] कसीस।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशुका  : स्त्री० [सं० पांशु√कै (चमकना)+क+टाप्] केवड़े का पौधा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशुकुली  : स्त्री० [सं० पांशु√कुल, (इकट्ठा होना)+क+ङीष] राजमार्ग।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-कूल  : पुं० [ष० त०] १. धूल का ढेर। २. चीथड़ों आदि को सीकर बनाया हुआ बौद्ध भिक्षुओं के पहनने का वस्त्र। ३. गुदड़ी। ४. वह दस्तावेज या लेख्य जो किसी विशिष्ट व्यक्ति के नाम न लिखा गया हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-क्षार  : पुं० [उपमि० स०] पाँगा नमक।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-चंदन  : पुं० [ब० स०] शिव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-चत्वर  : पुं० [तृ० त०] ओला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशुज  : पुं० [सं० पांशु√जन् (उत्पन्न होना)+ड] नोनी मिट्टी से निकाला हुआ नमक।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-धान  : पुं० [ष० त०] धूल का ढेर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-पटल  : पुं० [ष० त०] किसी चीज पर जमी धूल की तह या परत।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-पत्र  : पुं० [ब० स०] बथुआ (साग)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशुर  : पुं० [सं० पांशु√रा (देना)+क] १. डाँस। २. खंज। ३. पंगु व्यक्ति।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-रागिनी  : स्त्री० [सं० पांशु√रञ्ज् (रंगना)+घिनुण्+ ङीप्] महामेदा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशु-राष्ट्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्राचीन देश। (महाभारत)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशुल  : वि० [सं० पांशु+लच्] [स्त्री० पांशुला] १. जिस पर गर्द या धूल पड़ी हो। मैला-कुचैला। २. पर-स्त्री-गामी। व्यभिचारी। पुं० १. पूतिरकंज। २. शिव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पांशुला  : स्त्री० [सं० पांशुल+टाप्] १. कुलटा या व्यभिचारिणी स्त्री। २. राजस्वला स्त्री। ३. जमीन। भूमि। ४. केतकी।
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पांशु  : स्त्री०[सं०√पंस् (श्)+उ, दीर्घ] १. धूलि। रज। २. बालू। ३. गोबर की खाद। पाँस। ४. पित्त पापड़ा। ५. एक प्रकार का कपूर। ६. भू-संपत्ति। जमीन। जायदाद।
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पांशु-कसीस  : पुं० [उपमि० स०] कसीस।
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पांशुका  : स्त्री० [सं० पांशु√कै (चमकना)+क+टाप्] केवड़े का पौधा।
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पांशुकुली  : स्त्री० [सं० पांशु√कुल, (इकट्ठा होना)+क+ङीष] राजमार्ग।
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पांशु-कूल  : पुं० [ष० त०] १. धूल का ढेर। २. चीथड़ों आदि को सीकर बनाया हुआ बौद्ध भिक्षुओं के पहनने का वस्त्र। ३. गुदड़ी। ४. वह दस्तावेज या लेख्य जो किसी विशिष्ट व्यक्ति के नाम न लिखा गया हो।
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पांशु-क्षार  : पुं० [उपमि० स०] पाँगा नमक।
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पांशु-चंदन  : पुं० [ब० स०] शिव।
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पांशु-चत्वर  : पुं० [तृ० त०] ओला।
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पांशुज  : पुं० [सं० पांशु√जन् (उत्पन्न होना)+ड] नोनी मिट्टी से निकाला हुआ नमक।
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पांशु-धान  : पुं० [ष० त०] धूल का ढेर।
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पांशु-पटल  : पुं० [ष० त०] किसी चीज पर जमी धूल की तह या परत।
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पांशु-पत्र  : पुं० [ब० स०] बथुआ (साग)।
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पांशुर  : पुं० [सं० पांशु√रा (देना)+क] १. डाँस। २. खंज। ३. पंगु व्यक्ति।
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पांशु-रागिनी  : स्त्री० [सं० पांशु√रञ्ज् (रंगना)+घिनुण्+ ङीप्] महामेदा।
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पांशु-राष्ट्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्राचीन देश। (महाभारत)
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पांशुल  : वि० [सं० पांशु+लच्] [स्त्री० पांशुला] १. जिस पर गर्द या धूल पड़ी हो। मैला-कुचैला। २. पर-स्त्री-गामी। व्यभिचारी। पुं० १. पूतिरकंज। २. शिव।
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पांशुला  : स्त्री० [सं० पांशुल+टाप्] १. कुलटा या व्यभिचारिणी स्त्री। २. राजस्वला स्त्री। ३. जमीन। भूमि। ४. केतकी।
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