शब्द का अर्थ
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बोल :
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पुं० [हिं० बोलना] १. बोलने पर मनुष्य के मुख से निकला हुआ सार्थक पद, वाक्य या शब्द। वाणी। क्रि० प्र०—बोलना। मुहावरा—दो बोल पढ़वाना=धार्मिक दृष्टि से कुछ मंत्रों आदि का उच्चारण कराते हुए साधारण रूप से लड़की का विवाह करा देना। जैसे—कोई अच्छा लड़का मिले तो मैं भी इसके दो बोल पढ़वाकर छुट्टी पाऊँ। (किसी के कान में) बोल मारना=किसी को कोई बात अच्छी तरह सुना और समझा देना। जैसे—तुम तो उनके कान में बोल मार ही आये हो, वे अब मेरी बातें क्यों सुनने लगे। २. कही हुई बात। उक्ति। कथन। वचन। जैसे—तुम्हारी बात का भी कोई मोल है। (अर्थात् तुम्हारी बात का कोई विश्वास नहीं)। उदाहरण—(क) सुन रे ढोल बहू के बोल।—कहा०। (ख) परदेशी दूर का मुख के बोल सँभाव।—लोक गीत। ३. किसी की कही हुई बात का ऐसा भाव या महत्त्व जो उसकी प्रमाणिकता, शक्तिमत्ता आदि का सूचक होता है। उदाहरण—पंचन में मेरी पत रहे, सखियन में रहे बोल। साई से साँची रहूँ बाज बाज रे ढोल।—लोकगीत। पद—बोल-बाला=हर जगह होने वाली प्रतिष्ठा या सम्मान। जैसे—सच्चे का बोल बोलबाला झूठे का मुँह काला।—कहा०। मुहावरा—(किसी का) बोल बाला रहना=(क) बात की खास बनी रहना। (ख) ऐसी प्रतिष्ठा या मर्यादा बनी रहना कि हर जगह जीत और मान हो। जैसे—सरकार का सदा बोलबाला रहे। बोल बाला होना=प्रताप, भाग्य मान-मर्यादा यश आदि की वृद्धि होना। (किसी का) बोल रहना=मान मर्यादा या साख बनी रहना। ३. चुभती या लगती हुई अथवा व्यंग्य पूर्ण उक्ति। ताना। बोली। क्रि० प्र०—सुनाना। मुहावरा—बोलमारना=व्यपूर्ण बात कहना। उदाहरण—ननदिया री काहे मारे बोल।-गीत। ४. अदद या संख्या सूचक शब्द। जैसे—सौ बोल लडडू आये थे सो चार-चार सब को बाँट दिये। (स्त्रियाँ)। ५. वे शब्द जिनंमें गीत का कोई चरण या पद बना हो। जैसे—इस गीत के बोलहैं-बाँसुरिया कैसी बजाई श्याम। मुहावरा—बोल बनाना=संगीत में गाने के समय किसी गीत के एक-एक शब्द का कई बार अलग-अलग तरह से बहुत ही कोमल और सुन्दरता पूर्वक नये-नये रूपों में उच्चारम करना। ६. संगीत में बाजों से निकलनेवाली अलग-अलग ध्वनियों के वे गठे या बँधे हुए शाब्दिक रूप जो विद्यार्थियों को सुगमतापूर्वक सिखाने आदि के लिए कल्पित कर लिये गये हैं। जैसे—तबले के बोल धा धा धिन ता और सितार के बोल दा दा दि दारा आदि। पुं० [देश] एक प्रकार का सुगंधित गोंद जो स्वाद में कड़ुवा होता है। |
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बोलक :
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पुं० [देश] जल-भ्रमर। (डिं०) |
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बोल-चाल :
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स्त्री० [हिं० बोलना+चालना] १. मिलने-चुलने या साथ रहनेवाले लोगों में होनेवाली बात-चीत। वार्तालाप। जैसे—आज-कल उन दोनों में बोल-चाल बंद हैं। २. वह संबंध-सूचक अवस्था या स्थिति जिसमें परस्पर उक्त प्रकार की बात-चीत होती है। ३. बात-चीत करने का ढंग या प्रकार। जैसे—बोल-चाल से तो वे पंजाबी ही जान पड़ते हैं। ४. साहित्यिक क्षेत्र में मुहावरों से भिन्न वे विशिष्ट गढ़े हुए पद जिनका प्रयोग कुछ निश्चित प्रचलित अर्थ में ही होता है। जैसे—(क) मुझे डर है कि कहीं कुछ उन्नीस-बीस (अर्थात् कोई सामान्य अनिष्ट कारक बात) न हो जाय। (ख) वे घर बार छोड़कर त्यागी हो गये। (ग) उन लोगों में खूब तू तू मैं मैं हुई। (घ) आज-कल तो उन दोनों में साहब-सलामत भी बन्द हैं। उक्त वाक्यों में उन्नीस-बीस घर-बार, तू-तू मैं मैं और साहब-सलामत पर बोल-चाल के हैं। विशेष—ऐसे अवसरों पर उन्नीस-बीस की जगह बीस-इक्कीस घर-बार की जगह मकान-बार, तू-तू मैं-मैं की जगह हम तुम तुम-तुम और साहब सलामत की जगह जनाब-सलामत या साहब-खैरियत सरीखे पदों का प्रयोग नहीं हो सकता। उर्दू में इसी को ‘रोजमर्रा’ कहते हैं। |
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बोलता :
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पुं० [हिं० बोलना] १. ज्ञान कराने और बोलनेवाला तत्त्व अर्थात् आत्मा। उदाहरण—बोलते को जान ले पहचान ले० बोलता जो कुछ कहे सो मान ले। २. जीवनी शक्ति या प्राण। ३. सार्थक बातें कहनेवाला प्राणी, अर्थात् मनुष्य। ४. हुक्का। वि० १. बोलनेवाला। जैसे—बोलता सिनेमा। २. बोल-चाल में चतुर। वाक-पटु। ३. बहुत बोलनेवाला। बकवादी। |
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बोल-तान :
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स्त्री० [हिं०] संगीत में ऐसी तान जिसमें विशुद्ध स्वरों के स्थान पर उनके नामों के संक्षिप्त रूपों का उच्चारण होता हो। सरगम से युक्ततान। |
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बोलती :
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स्त्री० [हिं० बोलना] बोलने की शक्ति। वाक। वाणी। २. बोलने मे अत्यधिक पटु, जीभ। मुहावरा—बोलती बंद होना या मारी जाना=बहुत अधिक बड़बड़ करना बंद होना। जैसे—मुझे देखते ही उनकी बोली बंद हो गई। |
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बोलनहार :
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वि० [हिं० बोलना+हार (प्रत्यय)] बोलनावाला। पुं० आत्मा जिससे बोलने की शक्ति प्राप्त होती है। |
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बोलना :
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अ० [सं० वल्ल, प्रा० बोल्ल] १. शब्द ध्वनि आदि का साधारण स्वर में (गाने, चिल्लाने आदि से भिन्न) उच्चरित करना। जैसे—किसी की जय या जयजयकार बोलना। मुहावरा—बोल उठना=एकाएक कुछ कहने लगना। मुँह से सहसा कोई बात निकाल देना। जैसे—बीच में तुम क्यों बोल उठे। २. शब्दों द्वारा कहकर अपना विचार प्रकट करना। जैसे—झूठ बोलने में उन्हें लज्जा नहीं आती। ३. किसी से बात-चीत करना और इस प्रकार उससे आपसदारी का संबंध बनाये रखना। जैसे—उनके क्षमा मांगने पर ही मैं उनसे बोलूँगा। पद—बोलना चालना=परस्पर बातचीत करना। ३. किसी का नाम आदि लेकर इसलिए चिल्लाना जिसमें वह सुन सके। उदाहरण—ग्वाल सखा ऊंचे चढ़ि बोलत बार-बार लै नाम।—सूर। मुहावरा—(किसी को) बोल पठाना=किसीके द्वारा बुलवाया या बुला भेजना। ५. किसी प्रकार की छेड़छाड़ या रोक-टोक करना । किसी रूप में बाधक होना। जैसे—तुम चुप-चाप चले जाओ। कोई कुछ नहीं बोलेगा। ६. वस्तुओं के संबंध में उनका किसी प्रकार का शब्द करना। जैसे—सिक्के का टनटन बोलना। ७. किसी चीज का विशेष रूप से अपनी उपस्थिति जतलाना। जैसे—खीर में केसर बोल रहा है। ८. इतना जीर्ण-शीर्ण होना कि काम में आ सकने योग्य न रह जाय। संयों०, क्रि०—जाना। मुहावरा—(व्यक्ति का) बोल जाना=(क)मर जाना। संसार में न रह जाना। (बाजारू) (ख) किसी के सामने बिलकुल दब या हार जाना। (ग) दिवालिया हो जाना। जैसे—सट्टे में बड़े-बड़े धनी बोल जाते हैं। (पदार्थ का) बोल जाना=(क) निशेष या समाप्त हो जाना। बाकी न रह जाना। चुक जाना। (ख) इतना निकम्मा पुराना या रद्दी हो जाना कि उपयोग में आने योग्य न रह गया हो। जैसे—यह कुरता तो अब बोल गया है। स० १. मन्नत पूरी होने पर भक्तिपूर्वक कुछ करने की प्रतिज्ञा करना। जैसे—एक रुपए का प्रसाद बोलो तो तुम्हारी कामना पूरी हो। २. आवाज देकर पास बुलाना। उदाहरण—मुनिवर निकट बोलि बैठाये।—तुलसी। संयो० क्रि०—पठाना। ३. आज्ञा, या आदेश देकर किसी को किसी काम के लिए नियुक्त करना। जैसे—आज पहरे पर उसकी नौकरी बोली गई है। |
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बोलपट :
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पुं० [हिं० बोलना+मरा० पट] वह चलचित्र जिसमें पात्रों को कथोपकथन गीत आदि सुनाई पड़ते हों। (टॉकी) |
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बोलबाला :
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पुं० [हिं० बोल+फा० बाला=ऊँचा] १. वचन या बात जिसे सर्वोपरि महत्त्व प्राप्त होता हो। २. ऐसा स्थिति जिसमे किसी विशिष्ट व्यक्ति की बात को सबसे अधिक आदर मिलता या प्राप्त होता हो। |
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बोलवाना :
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स० [हिं० बोलना का प्रे०] १. किसी को बोलने में प्रवृत्त करना। २. उच्चारण कराना। जैसे—पहाड़े बोलवाना। स० [हिं० बुलाना] बुलवाना। |
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बोलसर :
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स्त्री०=मौलसिरी। पुं० [?] एक प्रकार का घोड़ा। |
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बोलांस :
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पुं० [हिं० बोला+अंश] वह अंश जिसे किसी को देने का वचन दिया गया हो। |
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बोलचाली :
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स्त्री०=बोलचाल। |
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बोलाना :
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स०=बुलाना। |
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बोलावा :
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पुं०=बुलावा। |
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बोली :
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स्त्री० [हिं० बोलना] १. बोलने की क्रिया या भाव। २. किसी प्रकार के प्राणी केमुँह से निकला हुआ शब्द। मुँह से निकली हुई आवाज या बात। वाणी। जैसे—जानवरों या बच्चों की बोली। ३. ऐसी बात या वाक्य जिसका कुछ विशिष्ट अर्थ या अभिप्राय हो। ४. किसी भाषा की वह शाखा जो किसी छोटे क्षेत्र या वर्ग में बोली जाती हो। स्थानिक भाषा। विभाषा। जैसे—अवधी, मैथिली, ब्रज आदि की गिनती आधुनिक हिन्दी की बोलियों में ही होती है। क्रि० प्र०—बोलना। ५. विशिष्ट अर्थवाली कोई ऐसी उक्ति या कथन जिसमे किसी को चिढाने या लज्जित करने के लिए कोई कूट या गूढ़ व्यंग्य मिलता हो। पद—बोली ठोली (देखें)। मुहावरा—बोली या बोली ठोली छोड़ना, बोलना या मारना= किसी को चिढ़ाने के लिए व्यंग्यपूर्ण बात कहना। ६. नीलाम के द्वारा चीजों के बिकने का वह दाम जोकोई खरीदकर अपनी ओरसे लगाता है। जैसे—उस मकान पर हमारी भी पाँच हजार रुपयों की बोली हुई थी। क्रि० प्र०—बोलना। |
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बोली ठोली :
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स्त्री० [हिं० बोली+अनु० ठोली] ताने या व्यंग्य से भरी हुई बात। बोली (देखें)। क्रि० प्र०—छोड़ना।—बोलना।—मारना।—सुनाना। |
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बोलीदार :
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पुं० [हिं० बोली+फा० दार] वह असामी जिसे जोतने के लिए खेत यों ही जबानी कहकर दिया जाय, कोई लिखा-पढ़ी न की जाय। |
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बोल्लक :
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पुं० [सं० बोल्ल+कन्] वह जो बहुत बोलता हो। |
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बोल्लाह :
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पुं० [देश] घोडों की एक जाति। |
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बोल्शेविक :
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पुं० [रूसी] रूस की बोल्शेविक दल, आधुनिक कम्युनिष्ट दल का सदस्य। |
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बोल्शेविकी :
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पुं० [रूसी] मार्क्सवाद के सिद्धांतों का समर्थक एक रूसी राजनतिज्ञ दल जिसका नाम सन् १९१८ से कम्युनिस्ट पार्टी हो गया है। |
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बोल्शोविज्म :
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पुं० [रूसी] मार्क्स के सिद्धान्तों के अनुसार शासन व्यवस्था अपनाने का वह विचार या सिद्धान्त जिसमें राष्ट्र की सारी प्रजा और संपत्ति पर शासन का पूरा-पूरा अधिकार होता है। |
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