शब्द का अर्थ
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भुजंग :
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पुं० [सं० भुज√गम् (जाना)+खच्, मुम्] १. साँप। २. हठ-योग में, कुंडलिनी रूपी नागिन का पति या स्वामी। ३. स्त्री का उपपति। यार। ४. प्राचीन भारत में राजा का एक प्रकार का अनुचर। ५. सीसा नामक धातु। वि० लंपट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भुजंग-घातिनी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] काकोली। |
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भुजंग-दमनी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] नाकुली कंद। |
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भुजंग-पर्णी :
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स्त्री० [सं० ब० स०,+ङीष्] नागदमन। |
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भुजंग-प्रयात :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का वर्णिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में चार-चार यगण होते हैं। |
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भुजंगभुज् :
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पुं० [सं० भुजंग√भुज् (खाना)+क्विप्] १. गरुड़। २. मयूर। मोर। |
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भुजंग-भोजी (जिन्) :
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पुं० [सं० भुजंग√भुज् (खाना)+णिनि, उप० स०] [स्त्री० भुजंग-भोजिनी] २. गरुड़। २. मयूर। मोर। वि० साँप को खा जानेवाला। |
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भुजंगम :
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पुं० [सं० भुजंग√भुज् (खाना)+खच्, मुम्] १. साँप। २. सीसा नामक धातु। |
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भुजंग-लता :
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स्त्री० [मध्य० स०] पान की बेल। |
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भुजंग-शत्रु :
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पुं० [ष० त०] गरुड़। |
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भुजंगा :
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पुं० [सं० भुजंग] १. कीड़े-मकोड़े खानेवाला काले रंग का एक प्रकार का पक्षी। भुजैटा। कोतवाल। २. दे० ‘भुजंग’। |
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भुजंगाख्य :
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पुं० [सं० भुजंग-आख्या, ब० स०] नागकेसर। |
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भुजंगी :
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स्त्री० [सं० भुजंग+ङीष्] १. साँपिन। नागिन। २. एक प्रकार का वर्णिक वृत्ति का नाम जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः तीन यगण एक लघु और एक गुरु होता है। |
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भुजंगेंद्र :
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पुं० [सं० भुजंग-इंद्र, ष० त०] शेषनाग। |
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भुजंगेश :
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पुं० [सं० भुजंग-ईश, ष० त०] १. वासुकि। २. शेषनाग। ३. पिंगल मुनि का एक नाम। ४. पतंजलि ऋषि का एक नाम। |
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भुज :
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पुं० [सं०√भुज् (खाना)+क] १. बाहु। बाँह। भुजा। मुहा०—भुज पर बेंटना या मिलना=आलिंगन करना। गले लगाना। २. हाथ ३. दोनों हाथों के कारण, दो कि संख्या का सूचक शब्द। ४. हाथी का सूँड़। ५. वृक्ष की डाली। शाखा। ६. किनारा। सिरा। ७. फेरा। लपेट। ८. ज्यामिति या रेखागणित में किसी क्षेत्र का कोई किनारा या सिरा अथवा उस पर खिंची हुई रेखा। (साइड) जैसे—चतुर्भुज, त्रिभुज् आदि। ९. त्रिभुज का नीचेवाला किनारा या सिरा। आधार। १॰. छाया का मूल आधार। 1१. रेखा गणित में, समकोणों का पूरक कोण। 1२. ज्योतिष में तीन राशियों के अन्तर्गत ग्रहों की स्थितियाँ खगोल का वह अंश जो तीन राशि से कम हो। |
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भुजइल :
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पुं० [सं० भुजंग] भुजंगा नामक पक्षी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भुज-कोटर :
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पुं० [सं० ष० त०] बगल। काँख। |
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भुजग :
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पुं० [सं० भुज√गम्+ड] १. साँप। २. अश्लेषा नक्षत्र। ३. सीमा नामक धातु। |
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भुजग-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] वासुकि। |
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भुजगांतक :
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पुं० [सं० भुजग-अंतक, ष० त०] १. गरुड़। २. मोर। ३. नेवला। |
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भुजगाशन :
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पुं० [सं० भुजग√अश् (भोजन करना)+ल्युट्-अन] भुजगांतक। (दे०) |
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भुजगेंद्र :
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पुं० [सं० भुजग-इंद्र, ष० त०] शेषनाग। वासुकि। |
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भुजगेश, भुजगेश्वर :
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पुं० [सं० भुजग-ईश, भुजग-ईश्वर, ष० त०] भुजगेन्द्र। वासुकि। |
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भुज-ज्या :
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स्त्री० [सं० ष० त०] त्रिकोणमिति में भुज की ज्या। |
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भुज-दंड :
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पुं० [सं० मध्य० स०] बाहुदंड। |
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भुजपात :
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पुं० दे० ‘भूर्जपत्र’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भुज-पाश :
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पुं० [सं० मध्य० स०] किसी के गले में हाथ डालना। गलबाँही। |
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भुज-प्रतिभुज :
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पुं० [सं० द्व० स०] रेखा-गणित में, सरल क्षेत्र की समानांतर या आमने-सामने की भुजाएँ। |
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भुज-बंद :
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पुं०=भुजबंध। |
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भुजबंध :
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पुं० [सं० तृ० स०] १. भुजाओं से किसी को बाँधने की क्रिया या भाव। २. अंगद या बाजूबंद नाम का। (बाँह पर पहनने का) गहना। |
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भुज-बल :
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पुं० [ष० त०] १. बाँहों अर्थात् शरीर में होनेवाला बल। शारीरिक शक्ति। २. शालिहोत्र के अनुसार एक प्रकार की भौंरी जो घोड़े के अगले पैर में ऊपर की ओर होती है। |
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भुजबाथ :
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पुं० [हिं० भुज+बाँधना] गले में हाथ डालकर किया जानेवाला आलिंगन। गलबाँहीं। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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भुजमान :
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पुं० [सं० ष० त०] रेखा-गणित में उन दो रेखाओं में से प्रत्येक रेखा, जो किसी क्षेत्र पर कोई बिन्दु निश्चित करने के लिए खींची जाती है। (आर्डिनेन्ट) |
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भुज-मूल :
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पुं० [सं० ष० त०] १. कन्धा, जहाँ से भुजा का आरंभ होता है। २. काँख। |
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भुजरी :
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स्त्री० [?] १. गेहूँ की वे बालें जो स्त्रियाँ धार्मिक अवसरों (जैसे—नागपंचमी, हरतालिका तीज) पर टोकरियों में रखकर उगाती और नियत समय पर किसी जलाशय या नदीं में प्रवाहित करती हैं। जरई। २. उक्त दो प्रवाह के लिए ले जाने के समय गाये जानेवाले विशिष्ट प्रकार के गीत। |
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भुजवा :
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पुं० [हिं० भूनना] भड़भूँजा। वि० भूँजा हुआ। |
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भुजवाई :
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स्त्री० [हिं० भुजवाना] भुनवाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। भुनाई। |
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भुज-शिखर :
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पुं० [सं० ष० त०] कंधा। |
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भुजा :
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स्त्री० [सं० भुज+टाप्] बाँह। बाहु। मुहा०—भुजा उठा या टेककर (कहना)=प्रण अथवा प्रतिज्ञा करते हुए (कहना)। |
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भुजा-कंट :
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पुं० [ष० त०] हाथ की उँगली का नाखून। |
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भुजाग्र :
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पुं० [सं० भुजा-अग्र, ष० त०] हाथ। |
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भुजा-दल :
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पुं० [ष० त०] कर रूपी पल्लव। |
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भुजाना :
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स०=भुनाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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भुजा-मध्य :
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पुं० [ष० त०] कोहनी। |
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भुजा-मूल :
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पुं० [ष० त०] कंधे का वह अगला भाग जहाँ से हाथ आरंभ होता है। बाहु-मूल। |
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भुजायन :
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पुं० [सं०] १. भुजाओं के रूप में अपने कुछ अंग शरीर के बाहर निकालना। २. दे० ‘विकिरण’। |
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भुजाली :
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स्त्री० [हिं० भुज+आली (प्रत्य०)] १. एक प्रकार की बड़ी टेढ़ी छुरी। २. छोटी बरछी। |
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भुजिया :
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वि० [हिं० भूँजना=भूनना] जो भूनकर तैयार किया या बनाया गया हो। जैसे—भुजिया चावल, भुजिया तरकारी। पुं० १. वह चावल जो धान को उबालकर तैयार किया गया हो। २. वह तरकारी जो सूखी ही भूनकर बनाई जाती है और जिसमें रसा या शोरबा नहीं होता। सूखी तरकारी। |
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भुजिष्य :
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पुं० [सं०√भुज् (भोगना)+किष्यन्] [स्त्री० भुजिष्या] दास। सेवक। |
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भुजिष्या :
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स्त्री० [सं० भुजिष्य+टाप्] १. दासी। २. गणिका। रंडी। वेश्या। |
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भुजेना :
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पुं० [हिं० भूजना] भूना हुआ दाना। चबैना। |
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भुजैल :
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पुं० [सं० भूजना] भुजंगा (पक्षी)। |
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भुजौना :
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पुं० [हिं० भूजना] १. भूना हुआ अन्न। भूना। भूजा। २. वह अन्न या पारिश्रमिक जो भूँजा अन्न भूनने के बदले में लेता है। ३. बड़े सिक्के भुनाने के लिए बदले में दिया जानेवाला धन। भुनाई। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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