शब्द का अर्थ
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रौटि :
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स्त्री० [हिं० रोना] खेलते हुए बच्चों में से किसी का चिढ़ या रूठ कर रोने का सा मुँह बना लेना, और कुढ़ या चिढ़ जाना। उदाहरण—रौटि करत तुम खेलत ही मै।—सूर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौंद :
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स्त्री० [हिं० रौंदना] रौंदने की क्रिया या भाव। स्त्री० [अं० राउंड] पहरेदार या सिपाहियों का गश्त लगाना। |
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रौंदन :
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स्त्री०=रौंद। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौंदना :
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स० [सं० मर्दन] १. किसी चीज को पैरों से इस प्रकार दबाना अथवा उस पर इस प्रकार चलना कि वह टुकड़े-टुकड़े हो जाय अथवा बहुत ही विकृत हो जाय। २. पैरों से बहुत अधिक मार-मार कर अंजर-पंजर ढीले करना। संयो० क्रि०—डालना। |
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रौंदी :
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स्त्री० [हिं० रौंदना] चौपायों के रहने का घेरा या बाड़ा। |
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रौंस :
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स्त्री० [फा० रविश] १. गति। चाल। २. चाल-ढाल। तौर-तरीका। रंग-ढंग। ३. मकान का ऐसा धज्जा, जिस पर लोग आ-जा सकें। ४. बगीचे की क्यारियों के बीच बना हुआ आने-जाने का मार्ग। |
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रौंसा :
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पुं० [सं० लोमश, रोमश=रोएँवाला] १. केवाँच। काँछ। २. बोड़ा। लोबिया। |
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रौ :
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स्त्री० [फा०] १. गति। चाल। २. पानी का बहाव। ३. किसी प्रकार के मनोवेग की गति अथवा प्रवृत्ति। किसी काम या बात की धुन। जैसे—उस समय तुम रौ में आगे बढते चले गए, मेरी बात तुमने नहीं मानी। वि० [फा०] १. चलनेवाला। जैसे—पेश-रौ=आगे चलनेवाला, जैसे—खुद रौ=आप से आप उगने और बढ़नेवाला। पुं० [देश] एक प्रकार का पेड़। पुं० =रव (शब्द)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौक्म :
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वि० [सं० रुक्म+अण्] १. रूक्म संबंधी। २. सोने का बना हुआ। |
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रौक्ष्य :
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पुं० [सं०√रूक्ष्+ष्यञ्] रूखा पन। रूखाई। रूक्षता। |
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रौखुर :
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स्त्री० [देश०] वह भूमि जिसकी मिट्टी बाढ़ के कारण बलुई हो गई हो। |
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रौगन :
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पुं० =रोगन। |
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रौचनिक :
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वि० [सं० रोचना+ठक्—इक] १. गोरोचन या रोली संबंधी। २. गोरोचन या रोली से बना या रँगा हुआ। |
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रौच्य :
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पुं० [सं० रुचि+ष्यण्] बेल की शाखा का दंड धारण करनेवाला संन्यासी। |
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रौजन :
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पुं० [फा० रौजा] १. छिद्र। बिल। सूराख। २. दरज। दरार। ३. गवाक्ष। झरोखा। वातायन। |
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रौजा :
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पुं० [अ० रौजा] १. बाग। बगीचा। २. किसी बड़े आदमी की कब्र के ऊपर बनी हुई बड़ी इमारत। समाधि। जैसे—ताजबीबी का रौजा। पुं० दे० ‘रोजा’। |
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रौत :
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पुं० [हिं० रावत] ससुर। |
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रौताइन :
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स्त्री० [हिं० राव, रावत] १. राव या रावत की पत्नी। ठकुराइन। २. स्त्रियों के लिए आदरसूचक संबोधन। |
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रौताई :
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स्त्री० [हि० रावत+आई (प्रत्यय)] १. राव या रावत होने की अवस्था, पद या भाव। २. रावतों या बड़े आदमियों की सी अकड़ या ऐंठ। उदाहरण—रौताई और कूसल खेमा।—जायसी। |
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रौदा :
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पुं० [?] एक प्रकार का चावल। उदाहरण—झिनवा रौदा, दाउद खानी।—जायसी। पुं० =रौदा। (धनुष की डोरी)। |
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रौद्र :
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वि० [सं० रुद्र+अण्] [भाव० रुद्रता] १. रुद्र संबंधी। रुद्र का। २. बहुत ही उग्र, प्रचंड भीषण या विकट। ३. बहुत अधिक क्रोध या कोप का परिचायक अथवा सूचक। पुं० १. क्रोध। गुस्सा। रोष २. आतप। धाम। धूप। ३. यमराज। ४. प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र। ५. साहित्य में नौ रसों में से एक जो किसी प्रकार का अत्याचार, अन्याय, अपमान, अशिष्टता आदि का व्यवहार देखकर उसे रोकने या उसका प्रतिकार करने के विचार से, मन में होनेवाले क्रोध से उत्पन्न होता है। ६. गरमी। ताप। ७. ग्यारह मात्राओं वाले छंदों की संज्ञा। ८. साठ संवत्सरों में से ५४ वाँ संवत्सर। ९. दे० ‘रौद्र-केतु’। |
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रौद्र-केतु :
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पुं० [सं० कर्म० स०] आकाश के पूर्व दक्षिण में शूल के अगले भाग के सामने कपिश (कपासी) रूक्ष (रूखा) ताम्रवर्ण किरणों से युक्त एक केतु (बृहत्संहिता)। |
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रौद्रता :
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स्त्री० [सं० रौद्र+तल्+टाप्] १. रुद्र होने की अवस्था, भाव या गुण। २. भयंकरता। भीषणता। ३. प्रखरता। प्रचंडता। |
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रौद्र-दर्शन :
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वि० [सं० ब० स०] देखने में डरावना। भीषण आकृति या रूपवाला। जिसे देखने से डर लगे। |
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रौद्रार्क :
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पुं० [सं० रौद्र-अर्क, उपमित० स०] १. १३ मात्राओं के छंदों की संज्ञा। |
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रौद्री :
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स्त्री० [सं० रौद्र+ङीष्] १. रुद्र की पत्नी, गौरी। २. गांधार स्वर की दो श्रुतियों में से पहली श्रुति। |
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रौन :
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पुं० =रमण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौनक :
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स्त्री० [अ० रौनक] १. सुन्दर वर्ण और आकृति या रूप। २. चमक-दमक और उसके कारण होनेवाली शोभा। जैसे—यह सुनते ही उनके चेहरे पर रौनक आ गई। ३. प्रसन्न वदन लोगों की चहल-पहल या जमघट। बहार। जैसे—सन्ध्या को इस बाजार में बहुत रौनक रहती है। |
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रौनकी :
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वि० [हिं० रौनक] १. रौनक लगनेवाला। २. (स्थान) जहाँ रौनक हो। |
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रौना :
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पुं० [फा० रवाना] द्विरागमन। गौना। मुकाबला। अ०=रोना। पुं० =रावण (उपेक्षासूचक)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौनी :
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स्त्री०=रमणी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौप्य :
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पुं० [सं० रुप्य+अण्] चाँदी। रूपा। वि० चाँदी का बना हुआ। |
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रौमक :
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पुं० [सं० रूमा+वुञ्—अक] साँभर नमक। |
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रौम-लवण :
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पुं० [सं० कर्म० स०] साँभर नमक। |
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रौर :
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स्त्री०=रोर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौरव :
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वि० [सं० रुरु+अण्] १. रुरु मृग-सम्बन्धी। रुरु मृग का। २. भयंकर। ३. घोर। भीषण। ४. धूर्त और बेईमान। ५. अपनी बात पर दृढ़ रहनेवाला। पुं० पुराणानुसार पाँचवाँ नरक जो बहुत भीषण कहा गया है। |
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रौरा :
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पुं० =रौला। वि० रावरा (आपका)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौराना :
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स० [हिं० रोर, रोरा] व्यर्थ बोलना या हल्ला करना। प्रलाप करना। बकना। |
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रौरि :
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स्त्री०=रोर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौरे :
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सर्व० [हिं० राव, रावल] आप (आदरसूचक संबोधन)। |
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रौलांग :
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पुं० [?] [स्त्री० रौलांगी] जोगी। |
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रौला :
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पुं० [सं० रवण] १. शोर। हल्ला। २. झंझट। बखेड़ा। ३. ऐसा उपद्रव जिसमें खूब हुल्लड़ हो, और यह पता न लगे कि क्या हुआ। क्रि० प्र०—मचना।—मचाना। |
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रौलि :
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स्त्री० [देश०] १. तमाचा। थप्पड़। २. घोल (सिर पर मारी जानेवाली)। |
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रौशन :
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वि० =रोशन। |
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रौशनदार :
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पुं० =रोशनदान। |
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रौशनाई :
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स्त्री०=रोशनाई। |
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रौशनी :
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स्त्री०=रोशनी। |
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रौस :
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स्त्री०=रौंस। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रौसली :
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स्त्री० [देश] एक प्रकार की चिकनी उपजाऊ मिट्टी जिसे बरसाती नदी अपने किनारों पर छोड़ जाती है। |
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रौसा :
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पुं० =रौंस। पुं० =रौंसा (केवाँच)। |
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रौहाल :
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पुं० [देश] १. घोड़ा। २. घोड़ों की जाति। ३. घोड़ों की एक प्रकार की गति या चाल। |
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रौहिण :
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पुं० [सं० रोहिण+अण्] चंदन। |
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रौहिणेय :
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पुं० [सं० रोहिणी+ठक्—एय] रोहिणी के पुत्र, बलराम। २. बुध ग्रह। ३. पन्ना या मरकत नामक रत्न। ४. गौ का बच्चा। बछड़ा। वि० रोहिणी संबंधी। |
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