शब्द का अर्थ
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शयंड :
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पुं० [सं०√शी (शयन करना)+अण्डन्] १. एक प्राचीन जनपद। २. उक्त जनपद का निवासी। |
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समानार्थी शब्द-
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शय :
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पुं० [सं०√शी (शयन करना)+अच्] १. शय्या। २. निद्रा। नींद। ३. सांप। ४. पण। शर्त। ५. हाथ। स्त्री० [अ० शै] १. वस्तु। २. बाधा। (भूत-प्रेत की)। स्त्री०=शह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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शयथ :
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पुं० [सं० शी+अथच्] १. गहरी नींद। २. मृत्यु। मौत। ३. यम। ४. साँप। ५. सूअर। ६. मछली। |
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शयन :
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पुं० [सं०√शी+ल्युट-अन] १. निद्रित होने या सोने की क्रिया। २. खाट। शय्या। ३. विस्तर। बिछौना। ४. स्त्री० प्रसंग। मैथुन। संभोग। |
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शयन आरती :
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स्त्री० [सं० शयन+आरती] देवताओं की वह आरती जो रात में उन्हें सुलाने के समय की जाती है। |
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शयन-कक्ष :
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पुं० [सं० ष० त०] सोने का कमरा या घर। शयनागार। |
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शयन-गृह :
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पुं० [सं० ष० त०] सोने का स्थान। शयन मंदिर। शयनागार। |
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शयन-बोधिनी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी। |
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शयन-मंदिर :
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पुं० [सं० ष० त०] सोने का स्थान। सोने का कमरा। शयन-गृह। शयनागार। |
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शयनागार :
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पुं० [सं० ष० त०] सोने का स्थान। शयन मंदिर। शयन गृह। |
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शयनासन :
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पुं० [सं० ष० त०] १. वह आसन या बिस्तर जिस पर कोई सोता हो। २. खाट, चारपाई चौकी पीढ़ा आदि वे सब उपकरण जिन पर लोग बैठते, लेटते या सोते हैं। |
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शयनिका :
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स्त्री० [सं० शयन+कन्-टाप्, इत्व] १. शयनागार। २. आज-कल रेलगाड़ी का वह डिब्बा जिसमें यात्रियों के सोने की व्यवस्था रहती है (स्लीपर)। |
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शयनीय :
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वि० [सं०√शी (शयन करना)+अनीयर्] सोने के योग्य। (स्थान)। |
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शयनैकादशी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी। |
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शयाक :
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पुं० [सं०√शी (शयन करना)+शानच्+कन्, शी+आनकवी] १. सर्प। साँप। २. गिरगिट। |
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शयालु :
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वि० [सं० शी+आलुच्] नींद से भरा हुआ। निद्रालु। पुं० १. अजगर। २. कुत्ता। ३. गीदड़। |
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शयित :
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भू० कृ० [सं०√शी (शयन करना)+क्त] १. सोया हुआ। सुस्त। २. लेटा या लेटाया हुआ। ३. आड़े बल में रखा हुआ। पुं० १. अजगर। २. लिसोड़ा। |
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शयिता (तृ) :
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वि० [सं०√शी (शयन करना)+तृच्] सोनेवाला। |
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शय्या :
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स्त्री० [सं० शीक+क्यप्-टाप्] १. खाट। पलंग। २. पलंग पर बिछा हुआ बिछौना। |
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शय्यागत :
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वि० [सं० द्वि० त० स०] शय्या पर पड़ा हुआ। पुं० रोगी। |
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शय्या-दान :
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पुं० [सं० ष० त० स०] मृतक की प्रेत-आत्मा की शांति के उद्देश्य से महापात्र को दिया जानेवाला पलंग तथा बिछावन। |
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शय्या-पाल :
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पुं० [सं० शय्या√पाल् (पालन करना)+अच्] वह जो राजाओं आदि के शयनागार की व्यवस्था तथा रक्षा करता हो। |
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शय्या-मूत्र :
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पुं० [सं० ष० त० स०] बालकों का वह रोग जिसके कारण वे सोये सोये बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं। |
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शय्या-व्रण :
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पुं० [सं० मध्य० स०] रोगी के बहुत दिनों तक शय्या ग्रस्त रहने के कारण उसकी पीठ आदि के छिल जाने से होनेवाला घाव। बिस्तर घाव (बेड-सोर)। |
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शयिका :
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स्त्री० [सं० शायिक-टाप्] १. शयन। २. निद्रा। ३. दे० ‘शयनिका’। |
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