शब्द का अर्थ
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शुक्र :
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वि० [सं० शुच्+रक्] १. चमकीला। देदीप्यमान। २. साफ। पुं० १. अग्नि। आग। ३. हमारे सौर ग्रह का एक प्रमुख तथा बहुत चमकीला ग्रह जो कभी-कभी दिन के प्रकाश में भी दिखाई देता है। तथा जो पुराणानुसार दैत्यों का गुरु कहा जाता है। विशेष—यह सूर्य से ६७,०००,००० मील दूर है। यह सूर्य का पूरा चक्कर प्रायः २०० से कुछ अधिक दिनों में लगाता है। ३. शुद्ध और स्वच्छ सोम। ४. सोना। स्वर्ण। ५. धन-संपत्ति। दौलत। ६. सार भाग। सत्त। ७.पुरुष का वीर्य। ८.पौरुष। ९.पुतली या चीता नामक वृक्ष। १॰. एरंड। रेंड। ११. आँख की पुतली का फूली नामक रोग। १२. दे० ‘शुक्रवार’। पुं० [अ०] किसी उपकार या लाभ के लिए किया जानेवाला कृतज्ञता का प्रकाश। जैसे—शुक्र है आप आ तो गये। |
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समानार्थी शब्द-
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शुक्र-कर :
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वि० [सं० शुक्र√कृ (करना)+अच्] वीर्य बनानेवाला। पुं० मज्जा, जिससे शुक्र या वीर्य का बनना कहा गया है। (वैद्यक) |
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शुक्र-कृच्छ्र :
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पुं० [सं० ब० स०] मूत्रकृच्छ रोग। सूजाक। |
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शुक्रगुजार :
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वि० [अ० शुक्र+फा० गुज़ार] [भाव० शुक्रगुजारी] १. किसी का शुक्र अर्थात् आभार माननेवाला। २. आभार प्रकट या प्रदर्शित करनेवाला। |
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शुक्रगुज़ारी :
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स्त्री० [अ+फा०] शुक्रगुजार होने की अवस्था या भाव। आभार प्रकट या प्रदर्शित करना। |
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शुक्रज :
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पुं० [सं० शुक्र√जन् (उत्पन्न करना)+ड] १. पुत्र बेटा। २. जैन देवताओं का एक वर्ग। वि० शुक्र से उत्पन्न। |
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शुक्र-ज्योति :
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स्त्री० [सं० ब० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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शुक्र-दोष :
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पुं० [सं० ब० स०] नपुंसकता। |
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शुक्र-पुष्प :
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पुं० [सं० ब० स०] १. कटसरैया। २. सफेद अपराजिता। |
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शुक्र-प्रमेह :
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पुं० [सं० ब० स०] वीर्य के क्षय होने का एक रोग। धातु का गिरना। |
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शुक्रभुज् :
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पुं० [सं० शुक्र√भुज् (खाना)+क्विप्] मोर। मयूर। |
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शुक्रभू :
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पुं० [सं० शुक्र√भू (होना)+क्विप्] भज्जा। |
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शुक्रमेह :
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पुं० [सं०] वीर्य के क्षय होने का एक रोग। |
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शुक्रल :
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वि० [सं० शुक्र√ला (लेना)+क०] १. जिसमें शुक्र या वीर्य हो। १. शुक्र या वीर्य उत्पन्न करने या बढ़ानेवाला। |
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शुक्रवार :
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पुं० [सं० ष० त० ब० स० मध्यम० स० वा] सप्ताह का छठा दिन। बृहस्पतिवार के बाद का शनिवार से पहले का दिन। जुमेरात। |
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शुक्र-वासर :
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पुं० [ष० त० स०] शुक्रवार। |
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शुक्र-शिष्य :
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पुं० [सं०] १. शुक्राचार्य। २. असुर। |
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शुक्र-स्तंभ :
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पुं० [सं० ब० स०] काम का वेग रोकने के फलस्वरूप होनेवाली नपुंसकता। |
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शुक्रांग :
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पुं० [सं० ब० स०] मयूर। मोर। |
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शुक्राचार्य :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. असुरों के देवता जो महर्षि भृगु के पुत्र थे और युद्ध में मरे हुए असुरों को मंत्र-बल से फिर से जिला देते थे। पुराणों के अनुसार वामन रूप धारण करके विष्णु ने इन्हें काना कर दिया था। २. काना या एकाक्ष व्यक्ति। (व्यंग्य) |
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शुक्राणु :
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पुं० [सं० ष० त०] नर या पुरुष के वीर्य का वह अणु जो मादा या स्त्री के अंड अथवा गर्भ में प्रविष्ट होकर संतान उत्पत्ति का कारण होता है (स्पर्म)। |
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शुक्राना :
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पुं० [फा० शुक्रानः] वह धन जो किसी को शुक्रिया अदा करते समय दिया जाता है। जैसे—वकील या डाक्टर को दिया जानेवाला शुक्राना। |
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शुक्रिम :
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वि० [सं० शुक्र+इमनिच्]=शुक्रल। |
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शुक्रिंय :
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वि० [सं० शुक्र+घ—इय] १. शुक्र संबंधी। शुक्र का। २. जिसमें शुद्ध रस हो। ३. शुक्र बढ़ानेवाला। |
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शुक्रिया :
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पुं० [फा० शुक्रियः] किसी के उपकार या अनुग्रह के बदले में कृतज्ञता प्रकट करते समय कहा जानेवाला शब्द। धन्यवाद। क्रि० प्र०—अदा करना। |
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