शब्द का अर्थ
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खूँ :
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पुं० [फा०] खून। रक्त। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
खूँखार :
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वि० [वि० खूँखार] [भाव० खूँखारी] १.खून-पीने या पान करनेवाला। हिंसक। २. बहुत बड़ा क्रूर या निर्दय। |
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खूँट :
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पुं० [सं० खंड] १. कपड़े आदि का छोर या सिरा। २. किसी ओर का भाग या सिरा। प्रांत। ३. ओर। तरफ। दिशा। ४. खंड। भाग। ५. भारी, चौकोर या गोल पत्थर जो मकान की मजबूती के लिए कोनों पर लगाया जाता है। ६. देवी-देवताओं को चढ़ाने के लिए बनाई हुई छोटी पूरी। ७. लकड़ी पर लगनेवाला महसूल। पुं० [देश०] १. घी, आदि तौलने की आठ सेर की एक तौल। २. कान में पहनने का गहना। स्त्री० [हिं० खोट] कान का मैल। स्त्री० [हिं० खुटना=समाप्त होना] कोई ऐसी कमी या त्रुटि जिसकी पूर्ति करना आवश्यक हो। |
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खूँटना :
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स० [सं० खंड=तोड़ना] १. अलग करने के लिए तोड़ना। खोंटना। जैसे–फूल या मेंहदी खूँटना। २. दबी हुई चीज या बात ऊपर या सामने लाने के लिए प्रयत्न करना। ३. चिढ़ाने या तंग करने के लिए छेड़-छाड़ करना। उदाहरण–उनको अधिक खूँटा जाता था।–वृंदावनलाल। अ०[सं० ] खतम या समाप्त करना। खुटना। उदाहरण-खरोई खिसाने खैचिं बसन न खूँटो है।–केशव। |
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खूँटा :
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पुं० [सं० क्षोड़] [स्त्री० अल्पा० खूँटी] १. पत्थर, लकड़ी लोहे आदि का वह टुकड़ा जो जमीन में खड़ा गाड़ा गया हो और जिसमें गाय, भैंस अथवा खेमों, नावों आदि की रस्सी बाँधी जाती हो। मुहावरा–खूँटा गाड़ना=(क) केन्द्र निश्चित या निर्धारित करना।(ख) सीमा या हद बाँधना। २. रहस्य सम्प्रदाय में मन, जिससे वृत्तियाँ बँधी रहती हैं। |
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खूँटी :
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स्त्री० [हिं० खूँटा का स्त्री० अल्पा०] १. जमीन आदि में गाड़ा जानेवाला छोटा खूँटा। जैसे–खेमे की खूँटी, खड़ाऊ की खूँटी। २. खेतों में खूँटों की भाँति निकले हुए (फसल के) वे डंठल जो फसल काट लेने पर बचे रहते हैं। ३. दीवार में कोई चीज टाँगने, बाँधने, लटकाने आदि के लिए गाड़ी जानेवाली कील आदि। ४. दाढ़ी पर के बालों के वे छोटे-छोटे अंश या अंकुर जो उस्तरे से दाढ़ी बनाने पर भी बचे रहते हैं। मुहावरा–खूँटी निकालना वा लेना=इस प्रकार मूँड़ना कि बाल त्वचा के बाहर निकला हुआ न रह जाए। ५. नील की फसल एक बार कट जाने पर उसी जगह आप से आप उगने वाली उसकी दूसरी फसल। दोरेजी। ६. किसी चीज के विस्तार का अंतिम अंश या भाग। सीमा। हद। |
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खूँटी उखाड़ :
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पुं० [हिं० खूँटी+उखाड़ना] घोड़े की एक भौरी। (कहते है कि जिस घोड़े के शरीर पर यह भौरी होती है, वह खूँटे से बँधे रहने पर बहुत उपद्रव करता है।) |
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खूँटीगाड़ :
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पुं० [हिं० खूँटी+गाड़ना] घोड़े की एक भौंरी (कहते है कि जिस घोड़े के शरीर पर यह भौंरी होती है, वह सदा खूँटे से बँधा रहना ही पसंद करता है।) |
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खूँड़ा :
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पुं० [सं० क्षोड़=खूँटा] जुलाहों का लोहे का वह पतला छड़ जिसमें वे नारा लगा कर तानते हैं। वि० दे० ‘खोड़ा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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खूँड़ी :
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स्त्री० [हिं० खूँड़ा] वह पतली लकड़ी जिसकी सहायता से जुलाहे ताना कसते हैं। |
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खूँद :
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स्त्री० [हिं० खूँदना] खड़े हुए घोड़े के खूँदने अर्थात् जमीन पर बार-बार पैर पटकने की क्रिया या भाव। |
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खूँदना :
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अ० [सं० खंडन-तोड़ना] [भाव० खूँद] १. चंचल या तेज घोड़ों का खड़े रहने की दशा में पैर उठा-उठाकर जमीन पर पटकना। २. जमीन पर पैर इस प्रकार पटकना कि उसका कुछ अंश खुद या कट जाए। उदाहरण-आजु नराएन फिर जग खूँदा।–जायसी। ३. पैरों से कुचलना या रौंदना। ४. अव्यवस्थित या तितर-बितर करना। अ०-कूदना। उदाहरण-चढ़ै तो जाइ बारवह खूँदी।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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खूँभी :
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स्त्री०=खुत्थी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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खूँ-रेजी :
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स्त्री० [फा०] रक्तपात (दे०)। |
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