शब्द का अर्थ
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चंड :
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वि० [सं०√चंड (क्रोध करनना)+अच्] [स्त्री० चंडा] १. बहुत अधिक तेज या प्रखर। बहुत उग्र या तीव्र। २. प्रबल। बलवान। ३. बहुत कठिन। विकट। ४. उग्र, उद्धत या क्रोधी स्वभाव वाला। पुं० १. ताप। गरमी। २. क्रोध। गुस्सा। ३. शिव। ४. कार्तिकेय। ५. यम का एक दूत। ६. एक दैत्य जो दुर्गा के हाथों से मारा गया था। ७. शिव का एक गण। ८. एक भैरव का नाम। ९. विष्णु का एक पारिषद। १॰. इमली का पेड़। ११. राम की सेना का एक बंदर। १२. कुबेर के आठ पुत्रों में से एक जो शिवपूजन के लिए सूँघकर फूल लाया था और इसी पर पिता के शाप से जन्मांतर में कंस का भाई हुआ था और कृष्ण के हाथों से मारा गया था। |
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चंडकर :
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पुं० [ब० स०] सूर्य। |
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चंडकौशिक :
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पुं० [कर्म० स०] १. एक मुनि का नाम। २. राजा हरिशचंद्र के चरित्र से संबंध रखनेवाला एक प्रसिद्ध नाटक। ३. वह साँप जिसने महावीर स्वामी के दर्शन करके दूसरों को काटना छोड़ दिया था। (जैन)। |
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चंडता :
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स्त्री० [सं० चंड+तल्-टाप्] चंड होने की अवस्था या भाव। |
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चंडत्व :
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पुं० [सं० चंड+त्व]=चंडता। |
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चंड-दीधिति :
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पुं० [ब० स०] सूर्य। |
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चंड-नायिका :
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स्त्री० [कर्म० स०] १. दुर्गा। २. तात्रिकों की आठ नायिकाओं में से एक जो दुर्गा की सखी कही गई है। |
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चंड-भार्गव :
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पुं० [कर्म० स०] च्यवन वंशी एक ऋषि जो महाराज जनमेजय के सर्प-यज्ञ के होता हुए थे। |
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चंड-मुंड :
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पुं० [द्व० स०] चंड और मुंड नाम के दो राक्षस जो दुर्गा के हाथों मारे गये थे। |
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चंड-मुंडा :
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स्त्री० [सं० चंडमुंड+अच्-टाप्] चामुंडा देवी। |
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चंडमुंडी :
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स्त्री० [सं० चंडमुंड+अच्-ङीष्] तांत्रिकों की एक देवी। |
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चंड-रसा :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक नगण और एक यगण होता है। इसी को चौबंसा, शशिवदना और पादांकुलक भी कहते हैं। |
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चंड-रुद्रिका :
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स्त्री० [कर्म० स०] तंत्र में एक प्रकार की सिद्धि जो अष्ट नायिकाओं के पूजन से प्राप्त होती है। |
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चंडवती :
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स्त्री० [सं० चंड+मतुप्-म=व-ङीप्] १. दुर्गा। २. तांत्रिकों की आठ नायिकाओं में से एक। |
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चंड-वात :
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पुं० [कर्म० स०] कुछ अधिक तेज चलनेवाली वह आँधी जिसके बीच-बीच में कुछ वर्षा भी होती है। तूफान। (टाइफून) |
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चंड-वृष्टि-प्रयात :
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पुं० [चंड-वृष्टि, कर्म० स० चंडवृष्टि-प्रयात, ष० त०] एक प्रकार का दंडक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण (।।।) और सात रगण (ऽ।ऽ) होते हैं। |
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चंडांशु :
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पुं० [चंड अशु, ब० स०] सूर्य। |
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चंडा :
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स्त्री० [सं० चंड+टाप्] १. उग्र स्वभाववाली स्त्री। २. तांत्रिकों की आठ नायिकाओं में से एक। ३. केवाँच। कौंछ। ४. चोर नामक गंध द्रव्य। ५. सफेद दूब। ६. सौंफ। ७. सोआ नाम का साग। ८. एक प्राचीन नदी। |
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चंडाई :
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स्त्री० [सं० चंड=तेज] १. चंडता। २. शीघ्रता। जल्दी। ३. उतावली। ४. प्रबलता। तेजी। ५. अत्याचार। उपद्रव। |
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चंडात :
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पुं० [सं० चंड√अत् (गति)+अण्. उप० स०] एक प्रकार की सुगंधित घास। |
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चंडातक :
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पुं० [सं०√अत्+ण्वुल्-अक, चंडा-आतक, ष० त०] एक प्रकार की छोटी कुरती या चोली। |
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चंडाल :
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वि० [सं०√चंड् (कोप)+आलञ्] [स्त्री० चंडालिन, चंडालिनी]=चांडाल। वि० बहुत ही निकृष्ट या नृशंस् कर्म करनेवाला। पुं० १. एक बहुत निकृष्ट या निम्न जाति जिसकी उत्पत्ति शूद्र पिता तथा ब्राह्मणी माता से मानी जाती है। २. उक्त जाति का पुरुष। |
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चंडाल-कंद :
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पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का कंद जो कफ-पित्त नाशक तथा रक्त शोधक माना जाता है। |
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चंडालता :
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स्त्री० [सं० चंडाल+तल्-टाप्] चंडाल या चांडाल होने की अवस्था, गुण या भाव। |
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चंडालत्व :
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पुं० [सं० चंडाल+त्व]=चंडालता। |
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चंडाल-पक्षी (क्षिन्) :
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पुं० [कर्म० स०] कौआ। |
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चंडाल-बाल :
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पुं० [हिं० चंडाल+बाल] कुछ लोगों के माथे पर उगनेवाला वह कड़ा और मोटा बाल जो अशुभ फलदायक माना जाता है। |
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चंडाल-वल्लकी :
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स्त्री०=चंडाल-वीणा। |
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चंडाल-वीणा :
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स्त्री० [ष० त०] एक प्रकार का चिकारा या तँबूरा। |
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चंडालिका :
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स्त्री० [सं० चंडाल+ठन्-इक,टाप्] १.दुर्गा। २. चंडालवीणा। ३. एक प्रकार का वृक्ष जिसकी पत्तियाँ दवा के काम आती है। |
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चंडालिनी :
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पुं० [सं० चंडाल+इनि-ङीष्] १.चंडाल वर्ण की स्त्री। २. बहुत ही दुष्ट और निकृष्ट स्वभाववाली स्त्री। ३. वह दोहा जिसके आरंभ में जगण पड़ा हो (अशुभ) |
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चंडावल :
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पुं० [हिं० चंड+अवलि] १. सेना के पीछे का भाग। पीछे रहनेवाले सिपाही। ‘हरावल’ का विपर्याय। २. बहुत बड़ा योद्धा या वीर। ३. पहरेदार। संतरी। |
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चँडासा :
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पुं० [हिं० चाँड़=जल्दी+आसा (प्रत्यय)] किसी काम के लिए मचाई जाने वाली जल्दी। मुहावरा–चँडासा चढ़ाना=(क) बहुत जल्दी मचाना। (ख) कोई ऐसा काम या युक्ति करना जिससे किसी को विवश होकर कोई काम जल्दी करना पड़े। |
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चंडाह :
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पुं० [देश०] गाढ़े की तरह का एक मोटा कपड़ा। |
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चंडि :
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स्त्री० [सं०√चंड्+इन्]=चंडिका। |
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चंडिक :
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वि० [सं० चंड+ठक्-इक] [स्त्री० चंडिका] १. कर्कश स्वभाववाला और दुष्ट। २. जिसके लिंग के आगे का चमड़ा कटा हो। जिसका खतना हुआ हो। |
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चंडिक-घंट :
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पुं० [चंडिका-घंटा, ब० स०] शिव। |
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चंडिका :
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स्त्री० [सं० चंडिक+टाप्] १. दुर्गा का एक रूप। २. बहुत कर्कश और दुष्ट स्त्री। ३. गायत्री देवी। वि० कर्कश, दुष्टा और लड़ाकी। |
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चंडिमा (मन्) :
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स्त्री० [सं० चंड+इमानिच] १. गरमी। ताप। २. उग्रता। तीव्रता। ३. क्रोध। गुस्सा। ४. निष्ठुरता। ५. आवेश। जोश। |
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चंडिल :
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पुं० [सं०√चंड्+इलच्] १. रूद्र। २. बथुआ नाम का साग। ३. नापित। हज्जाम। |
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चंडी :
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स्त्री० [सं० चंड+ङीष्] १. दुर्गा का वह रूप जो उन्होंने महिषासुर के वध के लिए धारण किया था। २. बहुत ही उग्र स्वभाववाली, कर्कशा और दुष्टा स्त्री। ३. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः दो नगण, दो सगण और एक गुरु होता है। |
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चंडी-कुसुम :
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पुं० [ब० स०] १. कनेर का वह पौधा जिसमें लाल रंग के फूल लगते हों। २. [मध्य० स०] उक्त प्रकार का फूल। |
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चंडी-पति :
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पुं० [ष० त०] शिव। |
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चंडीश :
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पुं० [चंडी-ईश, ष० त०] शिव। |
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चंडीसुर :
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पुं० [सं० चंडीश्वर] एक प्राचीन तीर्थ स्थल। |
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चंडु :
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पुं०[सं०√चंड्+उन्] १. चूहा। २. छोटा बंदर। |
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चंडू :
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पुं० [सं० चंड=तीक्ष्ण से प्रायः] अफीम से बनाया हुआ एक प्रकार का अवलेह जो नशे के लिए तमाकू की तरह पीया जाता है। |
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चंडूखाना :
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पुं० [हिं० चंडू+खाना] वह स्थान जहाँ लोग इकट्ठे होकर चंडू पीते हैं। पद-चंडूखाने की गप=बिलकुल झूठी और बे-सिर पैर की खबर या गप। |
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चंडूबाज :
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पुं० [हिं० चंडू+फा० बाज (प्रत्यय)] वह व्यक्ति जो प्रायः चंडू पीता हो। |
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चंडूल :
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पुं० [देश०] १. मधुर स्वरवाली खाकी रंग की एक चिड़िया जो झाड़ियों, पेड़ों आदि में सुन्दर घोंसला बनाकर रहती है। २. बहुत बड़ा बेवकूफ या भद्दा आदमी। |
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चंडेश्वर :
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पुं० [चंड-ईश्वर, कर्म० स०] शिव का एक रूप। |
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चंडोग्रा :
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स्त्री० [चंमडा-उग्रा, कर्म० स०] दुर्गा का एक रूप या शक्ति। |
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चंडोदरी :
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स्त्री० [चंड-उदर, ब० स० ङीष्] एक राक्षसी जिसे रावण ने सीता को समझाने के लिए नियत किया था। |
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चंडोल :
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पुं० [सं० चन्द्र-दोल] १. हाथी के हौदे की तरह की एक प्रकार की पालकी जिसे चार आदमी उठाते हैं। २. मिट्टी का एक प्रकार का खिलौना। चौघड़ा। |
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