शब्द का अर्थ
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जाँ :
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अव्य० [सं० यंत्र०] जहाँ। उदाहरण–जो वै जाँ गृहि गृहि जगन जागवै।–प्रिथीराज। स्त्री०=जान। वि० [फा० जा] उचित। वाजिब। |
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जाँउत्त :
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पुं०=जामुन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जाँग :
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पुं० [देश०] घोड़ों की एक जाति। स्त्री०=जाँघ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जाँगड़ा :
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पुं० [देश०] प्राचीन काल में राजाओं का यश गानेवाला। भाट या बंदी। |
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जाँगर :
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पुं० [हि० जान या जाँघ] १. देह। शरीर। क्रि० प्र०–=चलना। २. शरीर का बल विशेषतः कोई काम करते समय उसमें लगनेवाला बल। पौरुष। पद–जाँगरचोर-(दे०)। पुं० [देश०] ऐसा डंठल जिसमें से अन्न झाड़ या निकाल लिया गया हो। उदाहरण–तुलसी त्रिलोक की समृद्धि सौज संपदा अकेलि चाकि राखी रासि जांगर जहान भो।–तुलसी। |
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जांगरचोर :
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पुं० [हिं० जाँगर+चोर] वह व्यक्ति जो आलस्य आदि के कारण जान-बूझकर अपनी पूरी शक्ति किसी काम में न लगाता हो। |
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जाँगरा :
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पुं०=जाँगड़ा (भाट)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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जांगल :
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पुं० [सं० जंगल+अण्] १. ऐसा ऊसर तथा निर्जन प्रदेश जिसमें वर्षा कम होने तथा गरमी अधिक पड़ने के कारण वनस्पतियाँ वृक्ष आदि बहुत थोड़े हों। २. उक्त प्रदेश में रहने तथा होनेवाला जीव या वस्तु। जैसे–जल, लकड़ी, हिरन आदि। ३. हिरन आदि पशुओं का मांस। ४. तीतर। वि० १. जंगल संबंधी। २. जंगली या वन्य अर्थात् जो पालतू न हो। |
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जांगलि :
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पुं० [सं० जंगल+इञ्] जांगलिक। |
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जांगलिक :
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वि० [सं० जंगल+ठक्-इक] १. जंगल संबंधी। २. जंगली। पुं० [जंगली+ठन्-इक] १. साँप पकड़ने वाला व्यक्ति। २. साँप के काट खाने पर चढ़नेवाले विष उतारने या दूर करनेवाला। गारुड़ी। |
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जांगली :
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स्त्री० [सं० जांगल+ङीष्] केवाँच। कौंछ। |
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जाँगलू :
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स्त्री० [सं० जांगल] १. जंगल संबंधी। २. जंगली। ३. अशिष्ट और असभ्य। उजडु। |
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जाँगी :
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पुं० [?] नगाड़ा। |
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जांगुल :
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पुं० [सं० जंगल+अण्] १. तोरी नामक पौधा और उसकी फली। २. विष। |
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जांगुलि(क) :
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वि० पुं० [सं० जंगल+इञ्]=जांगलिक। |
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जांगुली :
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स्त्री० [सं० जांगल+ङीप्] वह विद्या या मंत्र-शक्ति जिसके द्वारा विष का प्रभाव को दूर किया जाता है। |
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जाँघ :
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स्त्री० [सं० जंघा=पिंडली] मनुष्यों और चौपायों के घुटने और कमर के बीच का अंग। मुहावरा–(अपनी) जाँघ उघाड़ना या नंगी करना=अपनी बदनामी या कलंक की बात स्वयं करना। उदाहरण–करियै कहा लाज मरियै जब अपनी जाँघ उघारी।–सूर। पद–जाँघ का कीड़ा-बहुत ही तुच्छ और हीन व्यक्ति। |
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जाँघा :
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पुं० [देश०] १. हल। (पूरब) २. कूएँ पर बना हुआ गड़ारी रखने का खंभा। ३. वह धुरा जिसमें उक्त गड़ारी पहनाई जाती है। |
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जांघिक :
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वि० [सं० जंघा+ठन्-इक] १. जाँघ संबंधी। २. बहुत तेज चलनेवाला। पुं० १. ऐसा जीव जो बहुत तेज चलता हो। जैसे–ऊँट, हिरन, हरकारा आदि। २. मृगों की एक जाति। श्रीकारी जाति के मृग। |
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जाँघिया :
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पुं० [सं० जाँघ+इया (प्रत्यय)] १. कमर में पहना जानेवाला एक प्रकार का सिला हुआ छोटा पहनावा जिससे दोनों चूतड़ और जाँगे ढकी रहती है। २. मालखंभ की एक प्रकार की कसरत। |
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जाँघिल :
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वि० [सं० जंघा+इलच्] बहुत तेज दौड़नेवाला। वि० [देश०] खाकी या मटमैले रंग की एक शिकारी चिड़िया। वि० [हिं० जाँघ] चलने में जिसका पैर कुछ लचकता हो। (पशु) स्त्री० [देश०] खाकी या मटमैले रंग की एक शिकारी चिड़िया। |
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जाँच :
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स्त्री० [हिं० जाँचना] १. जाँचने की क्रिया या भाव। (क) वस्तु के संबंध में, उसकी शुद्धता या उसमें के शुद्ध अंश का किसी प्रक्रिया से पता लगाना। (ख) बात के संबंध में, उसकी सत्यता का पता लगाना। (ग) घटना आदि के संबंध में, उसके घटित होने के कारण पता लगाना। (घ) कार्य के औचित्य या अनैचित्य का पता लगाना। (ङ) व्यक्ति के संबंध में, उसकी कार्य कुशलता, योग्यता स्थिति आदि का पता लगाना। २. अनुसंधान या छान-बीन करने काकाम। ३. पूछ-ताछ। |
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जांचक :
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पुं० दे० ‘याचक’। वि० [हिं० जाँचना] जाँचनेवाला। वि०=याचक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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जाँचकता :
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स्त्री० [हिं० जाँचक+ता (प्रत्यय)] जाँचक होने की अवस्था या भाव। |
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जांचना :
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स० [सं० याचन] १. किसी प्रक्रिया, प्रयोग आदि द्वारा (क) किसी वस्तु की प्रामाणिकता शुद्धता आदि का पता लगाना, जैसे–घी, तेल या दूध जाँचना। (ख) किसी मिश्रण के संयोजक तत्त्वों अथवा उसमें मिली हुई अन्य वस्तुओं का पता लगाना। जैसे–खन थूक या पेशाब जाँचना। २. किसी बात, सिद्धांत आदि की उपयुक्तता सत्यता का पता लगाना। जैसे–कवित्त की परिभाषा जाँचना। ३. घटना आदि के घटित होने के कारणों का पता लगाना। ४. किसी कृत्य या क्रिया के औचित्य, अनौचित्य अथवा ठीक होने या न होने का पता लगाना। जैसे–हिसाब जाँचना। ५. किसी की शारीरिक या मानसिक कार्य-कुशलता, योग्यता, समर्थता स्थिति आदि का पता लगाना। जैसे–(क) डाक्टर का रोगी को जाँचना। (ख) सेना में भरती करने से पहले रंग-रूटों को जाँचना। ६. अनुसंधान या छान-बीन करना। ७. पूछ-ताछ करना। ८. याचना करना। मांगना। स० [सं० यातना](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. यातना या कष्ट देना। २. नष्ट करना। उदाहरण–ह्नै गई छान छपा छपाकर की छबि जामिनि जोन्ह मनौ जम जांची।–देव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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जाँजरा :
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वि० [सं० जर्ज्जर] जीर्ण-शीर्ण। जर्जर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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जाँझ ( ा) :
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पुं० [सं० झंझा] वह गहरी वर्षा जिसके साथ तेज हवा भी चल रही हो। |
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जाँट :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़। रोया। |
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जाँत :
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पुं०=जाँता। |
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जांतव :
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वि० [सं० जंतु+अण्] १. जीव-जंतुओं से सम्बन्धित। २. जीव जंतुओं से उत्पन्न होने या मिलने वाला। जैसे–जांतव विष। |
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जांतविक :
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वि० [सं० जंतु+ठक्-इक]=जांतव। |
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जाँता :
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पुं० [सं० यंत्रम्; पा० यन्तम्; प्रा० यन्तम्; प्रा० जन्तम्, बँ० जात, जाति, सि० जण्डु, मरा० जातें] १. गेहूँ आदि पीसने की हाथ से चलाई जानेवाली पत्थर की बड़ी चक्की जो प्रायः किसी स्थान पर गाड़ दी जाती है। २. सोनारों, तारकसों आदि का जंती नामक औजार। |
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जाँपना :
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स० [? अथवा हिंदी चाँपना का अनु०] चाँपना। दबाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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जाँपनाह :
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पुं=जहाँपनाह। |
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जाँब :
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पुं० [सं० जाँबब] जामुन का वृक्ष और उसका फल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जाँबव :
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पुं० [सं० जंबू+अण] १. जामुन का वृक्ष और उसका फल। वि० १. जामुन संबंधी। २. जामुन के रस से बना हुआ। जैसे–शराब, सिरका आदि। |
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जाँबवंत :
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पुं०=जाँबवान्। |
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जाँबवक :
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पुं० [जंबू+वुञ्-अक] =जांबव। |
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जांबवती :
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स्त्री० [सं० जांबवत्+अण्-ङीप्] १. द्वापर युग के जांबवान की वह कन्या जिसके साथ श्रीकृष्ण ने विवाह किया था। २. नागदौनी। |
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जाँबवान्(वत्) :
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पुं० [सं०] राम की सेना का एक रीछ जो राजा सुग्रीव का मंत्री था। |
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जाँबवि :
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पुं० [सं० जंबू+इञ्] वज्र। स्त्री० जांबवती। |
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जांबवौष्ठ :
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पुं० [सं० जाबंव-ओष्ठ, ब० स०] दे० जांबोष्ठ। |
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जाँ-बाज :
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वि० [फा०] [स्त्री० जांबाजी] प्राणों की बाजी लगानेवाला। प्राण तक देने को तैयार रहनेवाला। |
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जांबीर :
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पुं० [सं० जंबीर+अण्] जंबीरी नीबू। |
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जांबील :
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पुं० [सं०] घुटने पर की गोल हड्डी। चक्की। |
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जाँबु :
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पुं०=जामुन। |
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जांबूमाली(लिन्) :
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पुं० [सं०] एक राक्षस जिसका वध हनुमान जी ने अशोक वाटिका में किया था। |
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जांबुवत् :
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पुं०=जांबवान्। |
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जांबुवान :
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पुं०=जांबवान्। |
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जांबू :
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पुं०=जंबू (द्वीप)। |
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जांबूनद :
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पुं० [सं० जंबू-नदी+अण्] १. धतूरा। २. सोना। |
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जांबोष्ठ :
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पुं० [सं० जांबवौष्ठ] एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र जिसकी सहायता से फोड़ों आदि को जलाया या दागा जाता था। (शल्य चिकित्सा)। |
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जाँय :
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क्रि० वि० [फा० बेजा] व्यर्थ। बे-फायदे। उदाहरण–भरतहिं दोसु देइ को जायँ।–तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जाँर :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़। |
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जाँवत :
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वि० [सं० यावत्] १. सब। २. जितना। उदाहरण–जाँवत गरब गहीलि हुति।–जायसी। |
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जाँवर :
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पुं० [हिं० जाना] गमन। जाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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