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जोंक  : स्त्री० [सं० जलौका] १. पानी में रहनेवाला एक प्रसिद्ध कीड़ा जो अन्य जीवों के शरीर में चिपक कर उनका रक्त चूसता है। क्रि० प्र०–लगवाना।–लगना। ऐसा व्यक्ति जो अपना काम निकालने के लिए बुरी तरह से पीछे पड़ता हो। ३. सेवार की बनी हुई चीनी साफ करने की एक प्रकार की चलनी या छाननी।
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जोंकी  : स्त्री० [हिं० जोंक] १. जोंक नामका कीड़ा। २. वह जलन जो पशुओं के पेट में पानी के साथ उतर जाने के कारण होती है। ३. पानी में रहनेवाला एक प्रकार का लाल कीड़ा। ४. लोहे का एक प्रकार का काँटा जो तख्तों या पत्थरों को मजबूती के साथ जोड़ने के काम में आता है ५. चित्र कला में ऐसी फंदेदार या लहरिएदार बेल जो देखने में जोंक की तरह जान पड़ती हो।
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जोंग  : पुं० [√जुंग् (वर्जन)+अप्, पृषो० सिद्धि] अगर या अगरु नाम की सुंगधित लकड़ी।
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जोंगट  : पुं० [सं०√जुंग्+अटन्] गर्भिणी स्त्री की इच्छा। दोहद।
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जों जों  : अव्य=ज्यों ज्यों।
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जों तों  : अव्य०=ज्यों त्यों।
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जोंदरी  : स्त्री=जोंधरी (ज्वार)।
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जोंधरा  : पुं० [हिं० जोंधरी] बड़े दानोंवाली ज्वार।
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जोंधरी  : स्त्री० [सं० चूर्ण] एक तरह की ज्वार जिसके दाने अपेक्षया कुछ छोटे होते हैं।
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जोंधैया  : स्त्री० [सं० ज्योत्स्ना] चंद्रमा की चाँदनी। चंद्रिका।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जो  : सर्व० [सं० यत्, प्रा० जो, गु० सि० पं० बं० जे० मरा० जो] एक संबंधवाचक सर्वनाम जिसका प्रयोग पहले कही हुई किसी बात अथवा पहले आई हुई संज्ञा, सर्वनाम या पद के संबंध में कुछ और कहने से पहले किया जाता है। जैसे–वही कविता सुनाइये जो आपने उस दिन सुनाई थी। वि० किसी अज्ञात या अनिश्चित बात का सूचक विशेषण जैसे–(क) जो बात कहनी हो कह डालो। (ख) जो चाहों सो करो। अव्य० [सं० यद्] यदि। अगर। (पुं० हिं)
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जोअना  : स०=जोवना (देखना)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोइ  : स्त्री० [सं० जाया] पत्नी। भार्या। स्त्री। स्त्री० [?] बड़ा खेमा या तंबू। डिं०)। सर्व० =जो।
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जोइगर  : पुं० [हिं० जोइ+फा० गर] वह जिसकी पत्नी जीवित या वर्त्तमान हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोइनि  : स्त्री० [सं० योनि] १. योनि। २. खान।
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जोइसी  : पुं०=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोई  : स्त्री० [सं० जाया] पत्नी। स्त्री०। उदाहरण–तुमहिं पुरुष हमही तोर जोई।–कबीर। अव्य०=जो ही। स्त्री० [फा०] १. ढूँढ़ने की क्रिया या भाव। जैसे–ऐबजोई। २. अनुकूल प्रसन्न या सन्तुष्ट रखने की क्रिया या भाव। जैसे–दिलजोई।
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जोउ  : सर्व० अव्य०=जो।
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जोक  : स्त्री०=जोंक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोख  : स्त्री० [हिं० जोखना] जोखने अर्थात् तौल या वजन करने की क्रिया या भाव।
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जोखता  : स्त्री०=जोषिता (पत्नी)।
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जोखना  : स० [सं० जोषण] १. तौलना। वजन करना। २. किसी बात पर मन ही मन अच्छी तरह विचार करके उसका ऊँच-नीच या भला–बुरा समझना।
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जोखम  : स्त्री०=जोखिम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोखा  : पुं० [हिं० जोखना] १. जोखने अर्थात् तौलने की क्रिया, भाव। जैसे–लेखा-जोखा स्त्री० [सं० योषा] स्त्री।
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जोखाई  : स्त्री० [ हिं० जोखना] जोखने या तौलने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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जोखिउँ  : स्त्री०=जोखिम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जोखिता  : स्त्री० [सं० योषिता] पत्नी। स्त्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जोखिम  : स्त्री० [सं० जोषण] [वि० जोखिमी] १. ऐसी स्थिति जिसमें लाभ या हित की संभावना तो हो, पर साथ ही अहित, संकट या हानि की संभावना भी कम न हो। जैसे–जिस काम में जोखिम हो, उसमें बहुत सोच-सझकर हाथ डालना चाहिए। क्रि० प्र०–उठाना।–में डालना या पड़ना।–सहना। पद–जान जोखिम=ऐसी स्थिति जिसमें प्राण तक जाने की संभावना हो। जोखिम धनी–सिर=एक पद जिसका प्रयोग व्यापारिक क्षेत्रों में माल बेचने या भेजने के समय लिखा-पढ़ी में यह सूचित करने के लिए होता है कि यदि रास्ते में हानि होगी तो उसका जिम्मेदार खरीदने वाला होगा। (ओनर्स रिस्क)। २. अर्थ-शास्त्र में, ऐसा काम जिसके लिए बहुत अधिक धन-शक्ति तथा साहस की अपेक्षा हो, फिर भी जिसकी सिद्धि अनिश्चित हो। झोंकी। (देखें)। ३. कोई ऐसा बहुमूल्य पदार्थ जिसके नष्ट होने या हारे जाने की संभावना हो। जैसे–जोखिम (गहने, धन आदि) साथ में ले चलना ठीक नहीं है।
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जोखिमी  : वि० [हिं० जोखम] जिसमें कोई जोखिम हो या हो सकती हो। जिसमें बहुत कुछ अहित, संकट या हानि की संभावना हो। जोखिम का। जैसे–जोखिमी काम, जोखिमी माल।
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जोखुआ  : पुं० [हिं० जोखना+उआ (प्रत्यय)] माल जोखने या तौलने वाला। बया। वि० जोखा या तौला हुआ। जैसे–जोखुआ अनाज।
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जोखुवा  : पुं०=जोखुआ।
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जोखों  : स्त्री=जोखिम।
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जोगंधर  : पुं० [सं० योगधर] शत्रु के अस्त्रों से आत्म-रक्षा करने की एक प्राचीन युक्ति।
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जोग  : पुं० [सं० योग] १. एक प्रकार का गीत जो कन्या और वर दोनों पक्षों में विवाह से पहले गाये जाते हैं, जिनमें प्रायः वैवाहिक विधियों का वर्णन होता है। २. जादू। टोना। (पूरब)। मुहावरा–जोग करना=जादू या टोना करना। ३. दे ‘योग’। ४. दे० ‘जोड़’। वि० ‘योग्य’। अव्य० पुरानी चाल की चिट्ठी पत्रियों में, के लिए। को। जैसे–पत्री भाई किशनचन्द्र जोग लिखा काशी से।–
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जोगड़ा  : पुं० [हिं० जोगी+डा (प्रत्यय)] १. जोगी। (उपेक्षासूचक)। २. बना हुआ जोगी। नकली या बनावटी योगी।
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जोगन  : स्त्री०=जोगिन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोगनिया  : स्त्री०=जोगिनिया।
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जोगनैर  : पुं० [सं० योगिनीपुर] दिल्ली। उदाहरण–जोगनैर जोतिग कहै, प्रभुस् होइ प्रथुराव।–चंद्रवरदाई।
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जोगमाया  : स्त्री=योगमाया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोगवना  : स० [सं० योग+अवना (प्रत्यय)] १. योगियों का योगाभ्यास करना। २. उक्त के आधार पर कोई कठिन काम परिश्रम तथा यत्नपूर्वक करना। ३. यत्नपूर्वक कोई चीज सम्हाल कर रखना। ४. एकत्र या संचित करना। ५. किसी का आदर या सम्मान करने के लिए उसकी अच्छी बुरी सभी तरह की बातें मानना, सहना या सुनना। ६. पूरा करना। ७. परखना। ८. प्रतीक्षा करना। रास्ता देखना।
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जोगवाट  : पुं=जोगौटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोगसाधन  : पुं० [सं० योगसाधन] १. तपस्या। २. परिश्रम पूर्वक किया जानेवाला कोई काम।
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जोगा  : वि० [सं० योग्य] किसी काम के लिए उपयुक्त, योग्य या लायक। यौ० के अन्त में। (स्त्रियाँ) जैसे–मरने–जोगा। पुं० [देश०] अफीम छानने पर उसमें से निकलनेवाली मैल। खूदड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोगाड़  : पुं०=जुगाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोगानल  : स्त्री० [सं० योगानल] वह अग्नि, जो योगबल से उत्पन्न की गई हो।
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जोगिंद  : पुं० १.=योगीन्द्र। २. महादेव। (डिं०)
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जोगि  : स्त्री०=योगिन।
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जोगिणी  : स्त्री=योगिनी।
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जोगिन  : स्त्री० [सं० योगिनी] १. योग साधनेवाली विरक्त स्त्री। २. जोगियों या योगियों की तरह आचार-विचार गेरुए वस्त्र पहनने और नियम, व्रत आदि का पालन करते हुए संयमपूर्वक रहनेवाली स्त्री। विशेषतः किसी प्रकार के आराधन या प्रेम से युक्त उक्त प्रकार की स्त्री। ३. एक प्रकार की रण देवी। ४. पिशाचिनी। ५. एक प्रकार का झाड़ीदार पौधा जिसमें नीले रंग के फूल लगते हैं। ६. दे.योगिनी।
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जोगिनिया  : स्त्री० [सं० जोगिन]=जोगिन।
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जोगिया  : वि० [हिं० जोगी+इया (प्रत्यय)] १. जोगी संबंधी। जोगी का। जैसे–जोगिया भेस। २. योगियों के वस्त्रों के रंग का। मटमैलापन लिए हुए। गेरुआ। गैरिक। जैसे–जोगिया कपड़ा पुं० १. गेरू के रंग की तरह का एक प्रकार का लाल रंग जो कुछ मटमैलापन लिए हुए रहता है। २. जोगीड़ा। ३. जोगी। ४. संपूर्ण जाति का एक राग जो प्रातः काल गाया जाता है।
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जोगींद्र  : पुं०=योगींद्र।
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जोगी  : पुं० [सं० योगी] १. नाथ पंथी जंगम शैव साधु। २. इस वर्ग के कुछ गृहस्थ जो प्रायः सारंगी पर भजन गाकर भीख माँगते हैं। ३. संपूर्ण जाति का एक राग जो प्रातः काल गाया जाता है। जोगिया राग। ४. रहस्य संप्रदाय में मन। ५. दे० ‘योगी’।
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जोगीड़ा  : पुं० [हिंजोगी+डा (प्रत्यय)] १. होली के दिनों में गाया जानेवाला एक प्रकार का गँवारू गाना। २. उक्त गीत गाने–बजानेवाला व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का दल।
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जोगीश्वर  : पुं०=योगेश्वर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोगेश्वर  : पुं०=योगेश्वर।
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जोगोटा  : वि०=जोगड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोगौटा  : पुं० [सं० योगपट्ट] १. जोगी। २. योगियों की वह चादर जिसे वे योग साधना करते समय सिर से पैर तक ओढ़ते हैं। ३. जोगियों की झोली।
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जोग्य  : वि० [भाव० जोग्यता] योग्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोजन  : पुं०=योजन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोट  : पुं० [सं० योटक] १. जोड़ा। जोड़ी। २. संगी। साथी। ३. झुंड। ४. समूह। उदाहरण–बाहर जुन्हाई जगी जोतिन की जोट ही।–देव। वि० बराबरी का।
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जोटा  : पुं० [सं० योटक] १. दो चीजों का जोड़ा। २. संगी। साथी। ३. पशुओं की पीठ पर लादा जानेवाला दोहरा थैला या बोरा। गोन। ४. दे० ‘जोड़ा’। वि० [स्त्रीजोटी] १. बराबरी का। २. साथ रहने या होनेवाला।
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जोटिंग  : पुं० [सं० जोट्√इग् (प्रकाशित करना)+अच्, पृषो] शंकर। शिव।
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जोटी  : स्त्री०=जोड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोड़  : पुं० [सं० जुड़] १. जुड़ने या जुड़े होने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. दो वस्तुओं का आपस में इस प्रकार जुड़ा, मिला या सटा होना कि वे या तो एक हो जायँ या देखने में एक जान पड़े। ३. वह संधि या स्थान जहाँ दो या अधिक चीजें आपस में मिली या सटी हुई हों। जैसे–हड्डियों का जोड़, पहुँचे और बाँह का जोड़, तख्तों या पत्थरों में का जोड़। क्रि० प्र०–उखड़ना–बैठाना।–लगाना। ४. वह अंग या अंश जो किसी दूसरी चीज के साथ जोड़ा या उसमें लगाया गया हो। ५. दो या अधिक चीजों का आपस में जोड़ने या मिलाने पर उनके संधि स्थान में दिखाई देनेवाला चिन्ह या लक्षण। जैसे–कुरसी के हत्थे में का जोड़ साफ दिखाई पड़ता है। पद–जोड़-तोड़। (दे०) ६. ऐसा मिलान या संयोग जो उपयुक्त, तुल्य अथवा सुन्दर जान पड़े। जैसे–उन दोनों पहलवानों का जोड़ तो अच्छा है। ७. उक्त के आधार पर होनेवाली बराबरी। गुण, धर्म आदि के विचार से होनेवाली समानता। जैसे–उस लड़के के साथ तुम्हारा क्या जोड़ है। क्रि० प्र०–बैठाना। मिलना। ८. एक ही तरह की अथवा साथ-साथ काम में आनेवाली दो या अधिक चीजें। जैसे–एक जोड़ कपड़ा (अर्थात् कुरता, टोपी और धोती अथवा कमीज, या कोट, टोपी और पायजामा) भी साथ रख लो। ९. दे० ‘जोड़ा’। १॰. गणित में, दो या दो से अधिक अंकों, संख्याओं आदि के जुड़े हुए होने या जोड़ने की क्रिया, अवस्था या भाव। ११. इस प्रकार जोड़ने से प्राप्त होनेवाली संख्या। १२. धन आदि का संग्रह।
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जोड़ती  : स्त्री० [हिं० जोड़+ती (प्रत्यय)] जोड़ (गणित का)।
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जोड़-तोड़  : पुं० [हिं०] १. कभी जोड़ने और कभी तोड़ने की क्रिया या भाव। २. कौशल या धूर्त्तता से की जानेवाली ऐसी युक्तियाँ जिनसे कहीं कोई क्रम या परम्परा जुड़ती और कहीं टूटती हो। कार्य साधन के लिए चालाकी और दाँव-पेंच से मिली हुई कार्रवाई। क्रि० प्र०–बैठाना।–लगाना।
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जोड़न  : स्त्री० [हिं० जोड़ना] १. जोड़ने की क्रिया या भाव। २. वह दही या और कोई खट्टा पदार्थ जो दूध में उसे जमाकर दही बनाने के लिए मिलाया जाता है। जामन।
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जोड़ना  : स० [सं०√जुड्, हिं० जोड़+ना (प्रत्य०)] १. दो या अधिक चीजों को किसी क्रिया या युक्ति से आपस में इस प्रकार साथ बैठाना, लगाना या सटाना कि वे या तो एक हो जायँ या एक के समान काम दें और जान पड़े। अच्छी तरह दृढ़तापूर्वक किसी के साथ मिलाना। जैसे–लकड़ी के तख्ते और पाये जो कर कुरसी या मेज बनाना, कपड़े के टुकड़े जोड़कर कुरता या चादर बनाना, लेई से फटे हुए कागज या पुस्तक के पन्ने जोड़ना। २. किसी चीज में का टूटा हुआ अंग या अंश उसमें फिर से इस प्रकार जडना, बैठाना या लगाना कि वह चीज फिर से पूरी हो जाय और पहले की तरह काम देने लगे। जैसे–पैर या हाथ की टूटी हुई हड्डी जोड़ना। ३. किसी चीज के भिन्न-भिन्न या संयोजक अंगों को इस प्रकार क्रम से यथा-स्थान बैठाना, रखना या लगाना कि वह चीज पूरी तरह तैयार होकर अपना काम करने लगे। जैसे–घड़ी या पुरजे या छापे के अक्षर जोड़ना दीवार बनाने के लिए ईंटे, पत्थर आदि (मसाले से) जोड़ना। ४. पहले से जो कुछ रहा हो अथवा मूलतः जो कुछ हो, उसमें अपनी ओर से कुछ और मिलाना या लगाना। वृद्धि करना। बढ़ाना। जैसे–उसने वहाँ का हाल कहते समय अपनी तरफ से भी कई बातें जोड़ दी थी। ५. एक ही तरह की बहुत सी चीजें इकट्ठी करके एक केन्द्र में लाना या एक स्थान पर रखना। एकत्र या संगृहीत करना। जैसे–धन-संपत्ति जोड़ना, संग्रहालय के लिए चित्र, पुस्तकें, मूर्तियाँ आदि जोड़ना। उदाहरण–कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी,जोड़ जमी में धरता है। ६. गणित में दो या अधिक संख्याओं का योग-फल प्रस्तुत करना। मीजान लगाना। ७. लिखना-पढ़ना सीखने अथवा साहित्यिक रचना का अभ्यास करने के लिए अक्षर, पद, वाक्य आदि उपयुक्त क्रम से बैठाना, रखना या लिखना। जैसे–अक्षर जोड़कर शब्द बनाना, शब्द जोड़कर कविता का चरण या पंक्ति बनाना। ८. किसी के साथ किसी प्रकार का संबंध स्थापित करना। जैसे–किसी के साथ नाता या मित्रता जोड़ना। ९. अग्नि, दीपक आदि के संबंध में, जलनेवाली चीज के साथ अग्नि का संयोग कराना। जैसे–रसोई बनाने के लिए आग जोड़ना, प्रकाश करने के लिए दीआ जोड़ना। १॰. गाड़ी, हल आदि के संबंध में, घोड़े या बैल लाकर आगे बाँधना। जोतना। (क्व०) जैसे–तुरंत रथ जोड़ा गया और वे चल पड़े।
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जोड़ला  : वि=जुड़वाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोडवाँ  : वि०=जुड़वाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोड़वाई  : स्त्री० [हिं० जोड़वाना] जोड़वाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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जोड़वाना  : स० [हिं० जोड़ना का प्रे०] जोड़ने का काम दूसरे से कराना। किसी से कुछ जोड़ने में प्रवृत्त करना।
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जोड़ा  : पुं० [हिं० जोड़ना] [स्त्री० जोड़ी] १. प्रायः एक साथ रहने, साथ-साथ काम आने या साथ रहने पर उपयुक्त जान पड़ने वाले दो पदार्थ या व्यक्ति। जोड़ी। युग्म। जैसे–धोतियों का जोड़, हाथ में पहनने के कड़ों या पहुँचियों का जोड़ा। क्रि० प्र०–मिलाना।–लगाना। २. एक साथ पहने जानेवाले दो या अधिक कपड़े। जोड़। पद–जोड़ा–जामा। (दे०)। ३. एक ही प्रकार के जीवों, पशु-पक्षियों आदि के नर और मादा का युग्म। जैसे–वर और कन्या का जोड़ा, शेर और शेरनी का जोड़ा, बिच्छुओं और साँपों का जोड़ा। मुहावरा–जोड़ा खाना=पशु-पक्षियों का मैथुन या संभोग करना। ४. दोनों पैरों में पहनने के दोनों जूते। ५. वह जो किसी दूसरे की बराबरी या समता का हो। जोड़। ६. दे० ‘जोड़’।
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जोड़ाई  : स्त्री० [हिं० जोड़ना+आई (प्रत्यय)] १. जोड़ने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. दीवार बनाने के समय क्रम से रखने या लगाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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जोड़ा-जामा  : पुं० [हिं० जोड़ा+फा० जामः] १. विवाह के समय वर के पहनने के सब कपड़े जो प्रायः उसकी ससुराल से आते हैं। २. पहनने के वे कपड़े जो राजाओं आदि से लोगों को पुरस्कार स्वरूप मिलते थे। खिलअत।
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जोड़ासंदेश  : पुं० [देश०] छेने की एक बँगला मिठाई।
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जोड़ी  : स्त्री० [हिं० जोड़ा] १. एक ही आकार-प्रकार, गुण और धर्मवाली दो चीजें। जैसे–मुगदरों की जोड़ी। २. संग-साथ रहनेवाले दो जीवों विशेषतः एक ही जाति के एक नर और एक मादा (जीवों) की सामूहिक संज्ञा। जैसे–बैलों की जोड़ी, भैसों की जोड़ी। ३. वह गाड़ी जिसे दो घोड़े या दो बैल खींचते हैं। जैसे–पहले के रईस जोड़ी पर निकला करते थे। ४. एक साथ रहनेवाले दो मुगदर जो कसरत करने के समय दोनों हाथों में पकड़ कर घुमाये जाते हैं। क्रि० प्र०–भाँजना। ५. एक में बँधी हुई कटोरियों के तरह की वे दोनों चीजें जो गाने-बजाने के समय ताल देने के काम आती हैं। मंजीरा। क्रि० प्र०–बजाना। ६. दे० ‘जोड़’।
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जोड़ी की बैठक  : स्त्री० [हिं० जोड़ी=मुगदर+बैठक=कसरत] वह बैठकों (कसरत) जो मुदगरों की जोड़ी पर हाथ टेक कर की जाती है।
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जोड़ीदार  : पुं० [हिं० जोड़ा+फा० दार] वह जो किसी के साथ उसकी बराबरी का होकर रहता हो। वि० मुकाबले का।
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जोड़ीवाल  : पुं० [हिं० जोड़ा+वला (प्रत्यय)] १. गाने-बजानेवालों के साथ जोड़ी या मंजीरा बजानेवाला। २. दे० ‘जोड़ीदार’।
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जोड़ुआ  : पुं० [हिं० जोड़ा+उआ (प्रत्यय)] पैर में पहनने का चाँदी का एक प्रकार का सिकड़ीदार गहना। वि०=जुड़वाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोड़ू  : स्त्री०=जोरू।
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जोत  : स्त्री० [हिं० जोतना] १. जोतने की क्रिया या भाव। २. वह विशिष्ट अधिकार जो किसी असामी को कोई जमीन जोतने-बोने पर उसके संबंध में प्राप्त होता है। क्रि० प्र०–
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जोतखी  : पुं०=ज्योतिषी।
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जोतगी  : पुं०=ज्योतिषी।
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जोतदार  : पुं० [हिं० जोत+दार] वह असामी जो दूसरों की भूमि पर खेतीबारी करता हो।
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जोतना  : स० [सं० योजन या युक्त, प्रा० जुत्त+ना] १. कोई चीज घुमाने या चलाने के लिए उसके आगे कोई पशु लाकर बाँधना। जैसे–एक्के, गाड़ी आदि में घोड़ा (या घोड़े) अथवा कोल्हू, मोट, रथ आदि में बैल जोतना। विशेष–इस क्रिया का प्रयोग स्वयं उन यानों के संबंध में भी होता है जिनके आगे पशु बाँधे जाते हैं (जैसे–एक्का, गाड़ी या रथ जोतना) और उन पशुओं के संबंध में भी होता है जो उनके बाँधे जाते है (जैसे–घोड़ा या बैल जोतना)। २. उक्त के आधार पर किसी को जबरदस्ती या विवश करके किसी काम में लगाना। जैसे–शिक्षक ने लड़कों को भी उस काम में जोत दिया। ३. खेत को बोये जाने के योग्य बनाने के लिए उसमें हल चलाना। ४. एक दम से, ऊपर से या कहीं से कोई चीज या बात लाकर उसी का क्रम चलाने लगना। जैसे–तुम अपनी ही जोतते रहोगे या दूसरे किसी को भी कुछ करने (या कहने) दोगे।
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जोतनी  : स्त्री० [हिं० जोतना] जुए में लगी हुई वह रस्सी जो जोते जाने वाले पशु के गले में बाँधी जाती है।
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जोतसी  : पुं=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतांत  : स्त्री० [हिं० जोतना] खेत में मिट्टी की ऊपरी तह।
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जोता  : पुं० [हिं० जोतना] १. जुआँठे में बँधी हुई वह रस्सी जिसमें बैलों की गरदन फँसाई जाती है। २. करघे में दोनों ओर बँधी हुई वह रस्सियाँ जो ताने के दोनों सिरों पर सूतों को यथा स्थान रखने के लिए बँधी रहती है। ३. वह बड़ी धरन या शहतीर जो खंभों या उनकी पंक्तियों पर इसलिए रखते है कि उसके ऊपर और इमारत उठाई जा सके। वि० जोतनेवाला (यौ० के अंत० में)। जैसे–हल जोता–हल जोतनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=किसान (खेतिहर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोताई  : स्त्री० [हिं० जोतना+आई (प्रत्यय)] जोते जाने या जोतने की अवस्था, क्रिया भाव या मजदूरी।
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जोताना  : स० [हिं० जोतना का प्रे.रूप] जोतने का काम किसी दूसरे से कराना।
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जोति  : स्त्री० [सं० ज्योति] १. किसी देवी-देवता के सामने जलाया जानेवाला दीया। जोत। क्रि० प्र०–जलाना। २. दे० ज्योति। स्त्री० [हिं० जोतना] ऐसी भूमि जो जोती-बोई जाती हो या जोती-बोई जा सकती हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिक  : पुं=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिख  : पुं=ज्योतिष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिखी  : पुं०=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिलिंग  : पुं०=ज्योतिर्लिंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिवंत  : वि० [सं० ज्योतिवान्] १. ज्योति अर्थात् प्रकाश से युक्त। प्रकाशमान्। २. चमकदार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिष  : पुं०=ज्योतिष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिषी  : पुं०=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिस  : पुं०=ज्योतिष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोतिहा  : पुं० [हिं० जोतना+हा (प्रत्य०)] १. खेत जोतनेवाला मजदूर। २. कृषक। खेतिहर।
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जोती  : स्त्री० [हिं० जोतना या जोत] १. घोड़े, बैल आदि की लगाम। रास। २. चक्की में की वह रस्सी जो उसके बीचवाली कीली और हत्थे में बँधी रहती है। ३. वह रस्सी जो खेत सींचने की दौरी में बँधी रहती है। ४. वह रस्सी जिससे तराजू के पल्ले बँधे रहते हैं। स्त्री०=ज्योति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोत्स्ना  : स्त्री०=ज्योत्स्ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोध  : पुं=योद्धा।
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जोधन  : स्त्री० [हिं० योग+धन] वह रस्सी जिससे जूए के ऊपर और नीचे वाले भाग आपस में बँधे रहते हैं।
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जोधा  : पुं०=योद्धा।
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जोधार  : पुं० [हिं० जोधा] योद्धा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोन  : स्त्री०=योनि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोनरी  : स्त्री०=जोन्हरी (ज्वार)।
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जोना  : स० [हिं० जोवना] १. देखना। २. प्रतीक्षा करना। बाट देखना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोनि  : स्त्री०=योनि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोन्ह  : स्त्री० [सं० ज्योत्स्ना] चंद्रमा की चाँदनी। चंद्रिका। ज्योत्स्ना।
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जोन्हरी  : स्त्री [?]=जोंधरी (ज्वार)।
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जोन्हाई  : स्त्री० [सं० ज्योत्स्ना]=जोन्ह।
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जोन्हार  : पुं०=जोंधरी (ज्वार)।
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जोन्हि  : स्त्री०=जुन्हाई (चाँदनी)।
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जोप  : पुं०=यूप (यज्ञ का)।
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जोपै  : अव्य० [हिं० जो+पर] १. अगर। यदि। २. यद्यपि।
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जोफ़  : पुं० [अ०] १. वृद्धावस्था। बुढ़ापा। २. शारीरिक दुर्बलता। कमजोरी। जैसे–जिगर, दिमाग या मेदे का जोफ।
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जोबन  : पुं० [सं०] १. युवा होने की अवस्था या भाव। यौवन। २. युवावस्था में होनेवाली तेज, लावण्य और सौन्दर्य मिश्रित शारीरिक गठन। जैसे–पेड़ या पौधे में जोबन आना। मुहावरा–जोबन पर आना=पूर्ण यौवनावस्था प्राप्त करना। ३. युवा स्त्रियों में स्पष्ट दिखाई देनेवाला आकर्षक और मोहक रूप या रौनक। सौन्दर्य। क्रि० प्र०–आना।–उतरना।–चढ़ना।–ढलना। मुहावरा–(किसी का) जोबन लूटना=किसी स्त्री के साथ भोग-विलास करना। (बाजारू)। ४. स्त्रियों के कुच। स्तन। ५. एक प्रकार का पौधा और उसका फूल।
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जोबना  : स०=जोवना। पुं०=जोबन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोम  : पुं० [अ० जोम] १. उमंग। उत्साह। २. आवेश। जोश। ३. शक्ति आदि का अभिमान। घमंड। क्रि० प्र०–दिखाना। ४. तीक्ष्णता। तीव्रता। पुं० [?] १. झुंड। २. समूह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोय  : स्त्री० [सं० जाया] १. जोरू। पत्नी। २. औरत। स्त्री। सर्व० १.=जो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) २.=जिस।
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जोयण  : पुं०=योजन।
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जोयना  : स० [सं० ज्योति] आग, दीया, आदि जलाना। उदाहरण–दीपक जोय कहा करूँ सजनि पिय परदेश रहावे।–मीराँ। स०=जोबना (देखना)।
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जोयसी  : पुं०=ज्योतिषी।
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जोर  : पुं० [फा० ज़ोर] [वि० जोरदार, जोरावर] १. शरीर का बल या शक्ति। ताकत। मुहावरा–(किसी चीज पर) जोर डालना या देना=शरीर का बार आश्रित या स्थिर करना। २. शारीरिक बल या शक्ति के फल-स्वरूप दिखाई देनेवाला उत्साह तेज, दृढ़ता, सामर्थ्य आदि। ओज। मुहावरा–किसी काम के लिए जोर करना, बाँधना, मारना या लगाना=विशेष शक्ति लगाकर प्रयत्न करना। जैसे–तुम लाख जोर मारो पर होगा कुछ नहीं। ३. आर्थिक, मानसिक, शारीरिक या और किसी प्रकार की योग्यता या सामर्थ्य। जैसे–धन का जोर, विद्या का जोर आदि। ४. कोई ऐसी क्रियात्मक, प्रबल शक्ति जो अपना गुण, प्रभाव या फल स्पष्ट दिखाती हो। जैसे–दवा नशे या बीमारी का जोर। मुहावरा–जोर करना या बाँधना=उग्र, उत्कट या विकट रूप धारण करना। जैसे–शहर में आजकल हैजे ने जोर बाँधा है। ५. अति, वेग आदि के रूप में दिखाई देनेवाली क्रिया की प्रबलता। जैसे–नदी में पानी के बहाव का जोर, आँधी या तूफान के समय हवा का जोर। पद–जोरों का-बहुत उग्र, प्रबल या विकट। जैसे–जोरों की वर्षा। ६. किसी कृति में दिखाई देनेवाली रचना कौशल, विशिष्ट दक्षता या योग्यता अथवा आकर्षक, उत्साहवर्धक या मनोरंजन तत्त्व। ओज। दम। जैसे–कलम, कविता या कहानी का जोर। ७. अनुभूति, आग्रह तर्क आदि में दिखाई देनेवाला बल या शक्ति। जैसे–किसी बात पर दिया जानेवाला जोर, खून या मुहब्बत का जोर। ८. उत्कर्ष, प्रबलता, वृद्धि आदि की ओर होनेवाली प्रवृत्ति। मुहावरा–जोर में आना या जोरों में होना=जल्दी-जल्दी बढ़ना या तेज होना। जैसे–(क) अब यह पेड़ जोरों में आया है, अगले साल खूब फलेगा। (ख) आज-कल शहरों में चोरियाँ और देहातों में डाके खूब जोरों पर है। ९. ऐसा आधार या साधन जिससे किसी को कुछ विशेष बल या साहस प्राप्त हो। सहारा। जैसे–उनकी यह सारी उछल-कूद राजकीय अधिकारियों के जोर पर है। १॰. अधिकार। वश। ११. कसरत। व्यायाम। जैसे–जैसे–अखाड़े में लड़के जोर करने जाते हैं। १२. किसी अंग से अधिक अथवा अनुचित रूप से काम लिए जाने के फलस्वरूप होनेवाला हानिकारक परिणाम या प्रभाव। जैसे–आँखों या आँतों पर जोर पड़ना। १३. शतरंज के खेल में, वह स्थिति जिसमें किसी मोहरे को मुफ्त में या व्यर्थ मारे जाने से रोकने के लिए कोई और मोहरे भी किसी तरफ लगा रहता है। जैसे–घोड़े पर हाथी का जोर है, हमारा घोड़ा मारोगे तो तुम्हारा वजीर मरेगा। मुहावरा–जोर पहुँचाना=उक्त के आधार पर ऐसा काम करना जिससे किसी पर दबाव या प्रभाव पड़े। जैसे–अफसर या हाकिम पर जोर पहुँचाना। वि० अपने कार्य, फल आदि के विचार से असाधारण तेज या बहुत अधिक। काफी। खूब। जैसे–चना जोर गरम। उदाहरण–तौ मै बहुत कठोर जोर इन चने चबाये।–दीनदयालगिरी। पुं० =जोड़ (जोड़ी या युग्म)।
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जोरई  : स्त्री० [हिं० जोड़] १. एक ही में बँधे हुए दो बाँस जिसके सिरे पर मोटी रस्सी का फंदा लगा रहता है। २. हरे रंग का एक प्रकार का कीड़ा।
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जोरदार  : वि० [फा०] १. (व्यक्ति) जिसमें जोर अर्थात् बल हो। २. (बात) जो तत्त्वपूर्ण या प्रभावशाली हो।
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जोरन  : स्त्री०=जोड़न। (देखें)।
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जोरना  : स० १=जोड़ना। २. =जोतना।
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जोर शोर  : पुं० [फा०] किसी काम को पूरा करने के लिए लगाया जानेवाला जोर और दिखाया जानेवाला उत्साह तथा प्रयास।
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जोरा  : पुं०=जोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोराजोर  : पुं०=जोर-शोर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोरा जोरी  : स्त्री० [फा० जोर] किसी से हठात् कुछ लेने या छीन लेने के लिए किया जानेवाला प्रयत्न। जबरदस्ती। क्रि० वि० बलपूर्वक। बलात्।
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जोरावर  : वि० [फा०] १. बलवान्। २. जबरदस्त। शक्तिशाली।
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जोरावरी  : स्त्री० [फा०] १. जोरावर या बलवान होने की अवस्था, गुण या भाव। २. जबरदस्ती। धींगा-धींगी।
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जोरिल्ला  : पुं० [देश०] एक प्रकार का गंध बिलाव।
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जोरी  : स्त्री० १.=जोरावरी। २.=जोड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोरू  : स्त्री० [हिं० जोड़ा] पत्नी। भार्या। स्त्री। पद–जोरू का गुलाम=ऐसा व्यक्ति जो पत्नी के वश में रहकर उसके कहे अनुसार चलता हो। स्त्री-भगत। जोरू-जाँता–पत्नी, घर-गृहस्थी और बाल-बच्चे।
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जोल  : पुं० [?] झुंड। समूह। पुं०=जोर। (क्व०)
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जोलाह  : पुं=जुलाहा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोलाहल  : स्त्री०=ज्वाला।
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जोलाहा  : पुं०=जुलाहा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोली  : वि० [हिं० जोड़ी] १. वह जिसके साथ बहुत मेल-जोल हो। संगी। साथी। २. बराबरी का। समवयस्क। ३. प्रायः साथ रहनेवाला। जैसे–हम जोली। स्त्री० [हि० झोली] १. जाली या किरमिच का बना हुआ एक प्रकार का बिस्तर जिसके दोनों सिरों पर अदवान की तरह कई रस्सियाँ होती हैं और जो वृक्षों आदि में लटकाकर काम में लाया जाता है। २. वह रस्सी जो जहाजों के पाल चढ़ाने-उतारने के काम में आती है। (लश०) ३. रस्सों के सिरों को बाँधने के लिए उनमें लगाई जानेवाली एक प्रकार की गाँठ।
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जोलो  : पुं० [?] अंतर। फरक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जोवण  : पुं०=यौवन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जोवना  : स० [सं० जुषण=सेवन] १. ध्यानपूर्वक देखना। २. प्रतीक्षा करना। जोहना। 3. तलाश करना। ढूँढ़ना।
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जोवारी  : स्त्री० [देश०] मैना पक्षी की एक जाति।
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जोश  : पुं० [फा०] १. आँच या गरमी के कारण द्रव-पदार्थ में आनेवाला उफान। उबाल। क्रि० प्र०–खाना।–देना। २. वह मनोयोग जिसके कारण मनुष्य अकर्मण्यता, आलस्य या तटस्थता छोड़कर किसी कार्य में आवेश, उत्साह या तत्परतापूर्वक अग्रसर या प्रवृत्त होता है। क्रि० प्र०–आना।–दिलाना। पद–खून का जोश-प्रेम का वह वेग जो अपने कुल, परिवार या वंश के किसी मनुष्य के प्रति हो। जैसे–वह उसके खून का जोश ही या जिससे वह अपने लड़के (या भाई) को बचाने के लिए जलते हुए मकान में घुस गया था। जोश-खरोश-बहुत उत्सुकतापूर्ण आवेश या मनोवेग।
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जोशन  : पुं० [फा०] १. बाँह पर पहनने का एक प्रकार का गहना। २. कवच। जिरहबक्तर। (क्व०)
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जोशाँदा  : पुं० [फा०] १. ओषधियों, जड़ी-बूटियों आदि को उबालकर बनाया हुआ काढ़ा। २. एक में मिली हुई वे सब ओषधियाँ जिनका काढ़ा बनाया जाता है। जैसे–जोशाँदे की पुड़िया।
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जोशी  : पुं०=जोषी।
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जोशीला  : वि० [फा० जोश+ईला (प्रत्यय)] १. (व्यक्ति) जो जोश में हो अथवा जिसे बहुत जल्दी जोश आ जाता हो। २. जोश में आकर अथवा दूसरों को जोश में लाने के लिए कहा या किया हुआ। जैसे–जोशीला भाषण।
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जोषक  : पुं० [सं०√जुष्+ण्वुल-अक] सेवक।
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जोषण  : पुं० [सं०√जुष्+ल्युट्-अन] १. प्रेम। प्रीति। २. सेवा।
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जोषा  : स्त्री० [सं० जोष+टाप्] नारी। स्त्री।
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जोषिका  : स्त्री० [सं० जोषक+टाप्, इत्व] १. स्त्री। २. कलियों का गुच्छा।
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जोषिता  : स्त्री० [सं०=योषिता, पृषो० य को ज] औरत। नारी। स्त्री।
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जोषी  : पुं० [सं० ज्योतिषी] १. गुजराती, महाराष्ट्र आदि ब्राह्मणों की एक जाति का अल्ल। २. दे० ‘ज्योतिषी’।
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जोस  : पुं०=जोश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोसीड़ा  : पुं० [सं० ज्योतिषी] १. पुरोहित। उदाहरण–जोसिड़ा ने लाख बधाई रे।–मीराँ।
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जोह  : स्त्री० [हिं० जोहना] १. जोहने की क्रिया या भाव २. खोज। तलाश। ३. प्रतीक्षा। ४. कृपापूर्ण दृष्टि। कृपा-दृष्टि।
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जोहड़  : पुं० [देश०] कच्चा तालाब।
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जोहन  : स्त्री० [हिं० जोहना] जोहने की क्रिया या भाव। दे० ‘जोह’।
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जोहना  : स० [सं० जुषण=सेवन] १. अच्छी तरह ध्यानपूर्वक देखना। २. कुछ ढूँढ़ने या पाने के लिए इधर-उधर देखना। तलाश करना। ढूँढ़ना। ३. प्रतीक्षा करना। रास्ता देखना।
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जोहर  : पुं०=जोहड़। पुं०=जौहर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोहार  : स्त्री० [सं० जुषण=सेवन] मुख्यतः क्षत्रियों में प्रचलित एक प्रकार का अभिवादन या नमस्कार। पुं०=जौहर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जोहारना  : अ० [हिं०] प्रणाम या नमस्कार करना। अभिवादन करना।
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