शब्द का अर्थ
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तार :
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वि० [सं०√तृ (विस्तार करना)+णिच्+अच्] १. जोर का। ऊँचा। जैसे–तार ध्वनि या स्वर। २. चमकता हुआ। प्रकाशमान। ३. अच्छा। बढ़िया। ४. स्वादिष्ठ। ५. साफ। स्वच्छ। ६. बहुत कम या थोड़ा। अल्प। (क्व०)। उदाहरण–काँचा भड़ाँ कसूर पिण, किलाँ कसूर न तार।–बाँकीदास। पुं० ऊँचाई और नीचाई अथवा कोमलता और तीव्रता के विचार से ध्वनि या स्वर की कोई स्थिति। (पिच)। पुं० [सं० तारा] १. तारा। नक्षत्र। २. आँख की पुतली। ३. ज्योति। प्रकाश। उदाहरण–तेज कि रतन कि तार कि तारा।–प्रिथीराज। ४. ओंकार। प्रणव। ५. शिव। ६. विष्णु। ७. असल या सच्चा मोती। ८. किनारा।तट। ९. राम की सेना का एक बंदर जो तारा का पिता था और बृहस्पति के अंश से उत्पन्न हुआ था। १॰. सांख्य के अनुसार एक प्रकार की गौण सिद्धि जो गुरु से विधिपूर्वक वेदों का अध्ययन करने पर प्राप्त होती है। ११. अठारह अक्षरों का एक वर्ण-वृत्त। १२. संगीत के तीन सप्तकों (सातों स्वरों के समूहों) में से अंतिम और सब से ऊँचा सप्तक जिसका उच्चारण कंठ से आरंभ होकर कपाल के भीतरी स्थानों तक होता है। इसे उच्च भी कहते हैं। पुं० [सं० करताल] करताल या मँजीरा नाम का बाजा। पुं० [सं० ताटंक] कान में पहनने का तांटक नाम का गहना। पुं० [सं० ताड़न] १. डाँट-फटकार। २. डर। भय। पुं,० [फा०] डोरा। तागा। सूत। मुहावरा–तार तार करना-कपड़े आदि के इस प्रकार टुकड़े-टुकड़े करना कि उसके तागे या सूत तक अलग-अलग हो जाएँ। धज्जियाँ उड़ाना। ३. किसी धातु से तैयार किया हुआ डोर या लंबे तागेवाला रूप। जैसे–चाँदी या सोने का तार, सारंगी या सितार का तार। क्रि० प्र०–खींचना। मुहावरा–तार दबकना–गोटा, पट्ठा आदि तैयार करने के लिए चाँदी या सोने का तार पीटकर चिपटा और चौड़ा करना। ४. धातु का वह पतला लंबा खंड जिसके द्वारा बिजली की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर समाचार आदि भेजे जाते हैं। जैसे–सारे भारत में तारों का जाल फैला हुआ है। ५. उक्त के द्वारा भेजा जानेवाला समाचार अथवा वह कागज जिस पर उक्त समाचार लिखा रहता है। जैसे–उनके लड़के के ब्याह का तार आया है। मुहावरा–तार देना-तार के द्वारा किसी के पास कोई समाचार भेजना। ६. सोने-चाँदी के थोड़े से गहने। (तृच्छता-सूचक) जैसे–घर में चार तार थे, वे बेचकर लड़की के ब्याह में लगा दिये। ७. चाँदी। रूपा। (सुनार)। ८. डोरी। रस्सी। (लश०) ९. किसी काम या बात का बराबर कुछ दूरी या समय तक चलता रहनेवाला क्रम। ताँता। सिलसिला। जैसे–आज कई दिनों से पानी का तार लगा है। क्रि० प्र०–टूटना।–बँधना।–लगना। १॰. किसी प्रकार की उद्देश्य-सिद्धि का सुभीता या सुयोग। जैसे–वहाँ तुम्हारा तार न लगेगा। पद–तार-घाट(देखें)। मुहावरा–तार जमना, बँधना, बैठना या लगना-कार्य सिद्धि का सुभीता या सुयोग होना। ११. पहनी जानेवाली चीजों का ठीक नाप जैसे–लड़के के तार का एक कुरता ले आओ। १२. भेद। रहस्य। उदाहरण–जंत्र मंत्र और वेद तंत्र में सबै तार कौ तार।–हरिराम व्यास। |
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तारक :
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वि० [सं०√तृ+णिच्+ण्वुल्-अक] तारने या तैरानेवाला। २. भव-सागर से उद्धार करने वाला। जैसे–तारक मंत्र। पुं० १. आकाश का तारा। नक्षत्र। २. आँख की पुतली। ३. आँख। ४. राम का छः अक्षरों का यह मंत्र ‘ओं रामाय नमः’ जिसे सुनने से मनुष्य का मोक्ष होना माना जाता है। ५. इंद्र का शत्रु एक असुर जिसे नारायण ने नपुंसक का रूप धरकण मारा था। ६. एक असुर जिसे कार्तिकेय ने मारा था जो तारकसुर के नाम से प्रसिद्ध था। ७. भिलावाँ। ८. नाविक। मल्लाह। ९. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में चार सगण और एक गुरु होता है। १॰. एक संकेत या चिन्ह जो ग्रन्थ, लेख आदि में किसी शब्द, पद या वाक्य के साथ लगाया जाता है, जिसका पाद-टिप्पणी में विवरण आदि देना होता है। इसका रूप है–।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तारकजित् :
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पुं० [सं० तारक√जि (जीतना)+क्विप्] कार्तिकेय। |
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तारक-टोड़ी :
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स्त्री० [सं० तारक+हिं० टोड़ी] एक प्रकार की टोड़ी रागिनी जिसमें ऋषभ और कोमल स्वर लगते हैं और पंचम वर्जित होता है। (संगीत रत्नाकर)। |
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तारक-तीर्थ :
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पुं० [कर्म० स०] गया। (जहाँ पिंडदान करने से पुरखे तर जाते हैं)। |
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तारक-ब्रह्म :
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पुं० [कर्म० स] ‘ओं रामाय नमः’ का मंत्र। |
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तार-कमानी :
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स्त्री० [हिं० तार+कमानी] नगीने आदि काटने की धनुष के आकार की कमानी जिसमें डोरी के स्थान पर लोहे का तार लगा रहता है। |
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तारकश :
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पुं० [हिं० तार+फा० कश=(खींचनेवाला)] [भाव० तारकशी] वह कारीगर जो धातुओं के तार खींचने या बनाने का काम करता हो। |
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तारकशी :
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स्त्री० [हिं० तारकश] तारकश का काम या पेशा। |
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तारकस :
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पुं०=तारकश। |
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तारकांकित :
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वि० [तारक-अंकित, तृ० त०] (शब्द, पद या वाक्य) जिस पर तारक (चिन्ह) लगा हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तारका :
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स्त्री० [सं० तारक+टाप्] १. तारा। नक्षत्र। २. आँख की पुतली। कनीनिका। ३. इंद्र वारूणी लता। ४. नाराच छंद का दूसरा नाम। ५. बालि की पत्नी का नाम। ६. दे० ‘तारिका’। स्त्री० दे० ‘ताड़का’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तारकाक्ष :
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पुं० [सं० तारक-अक्षि, ब० स०] तारकासुर का बड़ा लड़का। |
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तारकामय :
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पुं० [सं० तारका+मयट्] शिव। महादेव। |
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तारकायण :
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पुं० [सं० तारक+फक्–आयन] विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम। |
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तारकारि :
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पुं० [सं० तारक-अरि, ष० त०] कार्तिकेय। |
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तारकासुर :
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पुं० [सं० तारक-असुर, कर्म० स०] एक असुर जिसका वध कार्तिकेय ने किया था। (शिव पुराण)। |
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तारकिणी :
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वि० [सं० तारकिन्+ङीप्] तारों से भरी। स्त्री० रात। |
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तारकित :
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वि० [सं० तारक+इतच्] तारों से भरा हुआ। |
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तारकी(किन्) :
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वि० [सं० तारका+इनि] [स्त्री० तारकिणी]=तारकित। |
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तार-कूट :
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पुं० [सं० तार-चाँदी+कूट-नकली] चाँदी पीतल आदि के योग से बननेवाली एक मिश्र धातु। |
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तारकेश :
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पुं० [सं० तारक-ईश, ष० त०] चंद्रमा। |
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तारकेश्वर :
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पुं० [सं० तारका-ईश्वर,ष० त०] १. शिव। २. शिव की एक विशिष्ट मूर्ति या रूप। ३. वैद्यक में एक प्रकार का रस (औषध)। |
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तारकोल :
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पुं० [अं० टार-कोल] अलकतरा (दे०)। |
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तार-क्षिति :
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पुं० [सं० ब० स०] पश्चिम दिशा में एक देश जहाँ म्लेच्छों का निवास है। (बृहत्संहिता)। |
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तारख :
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पुं० [सं० तार्क्ष्य] गरुड़ (डिं०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तारखी :
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पुं० [सं० तार्क्ष्य] घोड़ा (डिं०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तारघर :
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पुं० [देश०] वह कार्यालय जहाँ से तार द्वारा समाचार भेजे जाते और आये हुए समाचार लोगों के पास भेजे जाते हैं। |
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तार-घाट :
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पुं० [हिं० तार+घात] तार लगने अर्थात् कार्य सिद्ध होने की संभावना या घाट अर्थात् संभावित स्थिति। जैसे–हो सके तो वहाँ हमारा भी कुछ तार-घाट लगाओ। |
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तार-चरबी :
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पुं० [देश०] मोम चीना का पेड़। |
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तार-जाली :
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स्त्री० [हिं०] बहुत ही पतले तारों से बनी हुई जाली जिसका उपयोग यांत्रिक और रासायनिक कार्यों में होता है। (वायर गेज)। |
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तारण :
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पुं० [सं०√तृ+णिच्+ल्युट्–अन] १. जलाशय आदि से तारने या पार करने की क्रिया या भाव। २. कठिनता, संकट आदि से उद्धार करने की क्रिया। निस्तार। ३. भव-सागर से पार करने करके मोक्ष दिलाने की क्रिया या भाव। ४. [√तृ+णिच्+ल्यु–अन] विष्णु। ५. साठ संवत्सरों में से एक संवत्सर। वि० १. तारने या पार करनेवाला। २. उद्धार या निस्तार करनेवाला। |
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तारणी :
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स्त्री० [सं० तारण+ङीप्] कश्यप की एक पत्नी जिसके गर्भ से याज और उपयाज उत्पन्न हुए थे। |
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तार-मंडुल :
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पुं० [सं०, ब० स०] सफेद ज्वार। |
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तारतम्य :
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पुं० [सं० तारतम+ष्यञ्] [वि० तारतम्यिक] १. ‘तर’ और ‘तम’ होने की अवस्था या भाव। एक दूसरे की तुलना में घट और बढ़कर होने की अवस्था या भाव। २. उक्त प्राकर की दृष्टि से की जानेवाली तुलना या पारस्परिक मिलान। ३. उक्त प्रकार के विचारों से लगाया जानेवाला क्रम या सिलसिला। |
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तारतम्य-बोध :
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पुं० [ष० त०] आपेक्षिक स्थितियों या चीजों के घट-बढ़ होने का ज्ञान। सापेक्ष संबध का ज्ञान। |
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तार-तार :
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पुं० [सं०, प्रकार अर्थ में द्वित्य] सांख्य के अनुसार एक गौण सिद्धि जो आगम या शास्त्र अच्छी तरह समझ-बूझकर पढ़ने से प्राप्त होता है। वि० [हिं०] १. जो इस प्रकार फटा या फाडा़ गया हो कि उसके तार या सूत अलग-अलग हो गये हों अर्थात् जिसके बहुत से छोटे-छोटे टुकड़े या धज्जियाँ हो गई हों। २. पूरी तरह से छिन्न-भिन्न। |
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तार-तोड़ :
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पुं० [हिं० तार+तोड़ना] कपड़ों आदि पर किया हुआ काराचोबी या जरदोजी का काम। |
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तारदी :
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स्त्री० [सं० तरदी+अण् (स्वार्थं में)+ङीष्०] १. काँटेदार पेड़। २. तरदी वृक्ष। |
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तारन :
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पुं० [हिं० तर-नीचे] १. छत या छाजन की ढाल अर्थात् नीचे की ओर का उतार। २. छाजन के वे बाँस जो कौड़ियों के नीचे रहते हैं। वि० पुं०–तारण। |
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तारना :
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स० [सं० तारण] १. ऐसा काम या यत्न करना जिससे कोई (नदी नाला आदि) तक कर उसके पार उतर जाय। पार लगाना। २. डूबते हुए को सहारा देकर किनारे पर पहुँचाना। ३. भव-सागर में जनमने-मरने में मुक्त करना। मोक्ष या सदगति देना। |
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तार-पत्र :
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पुं० [सं०] भारतीय सेना में प्रचलित एक प्रकार का पत्र (चिट्ठी) जो स्वदेश की सीमा के अन्तर्गत एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है। (पोस्टग्राम)। |
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तारपीन :
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पुं० [अं० टरपेंटाइन] चीड़ के पेड़ से निकला हुआ एक तरह का तेल (टरपेन्टाइन) |
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तार-पुष्प :
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पुं० [सं० ब० स०] कुंद का पेड़। |
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तारबर्फी :
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पुं० [हिं० तार+फा० बर्फी=बिजली का] धातु का वह तार जिसके द्वारा बिजली की शक्ति से समाचार दूर तक भेजे जाते हैं। |
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तार-माक्षिक :
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पुं० [सं० उपमि० स०] रूपामक्खी नाम की उपधातु। |
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तारयिता(तृ) :
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पुं० [सं०√तृ+णिच्+तृच्०] [स्त्री० तारयितृ+ङीप्, तारयित्री] १. तारनेवाला। २. उद्दार करनेवाला। ३. मोक्ष देनेवाला। |
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तारल्य :
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पुं० [सं० तरल+ष्यञ्] १. तरल होने की अवस्था या भाव। तरलता। २. चंचलता। |
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तार-विमला :
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स्त्री० [सं० उपमि० स०] रूपामक्खी नामक उपधातु। |
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तार-सार :
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पुं० [सं० ब० स०] एक उपनिषद्। |
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तारहीन :
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वि० [हिं० तार+सं० हीन] १. जिसमें तार न हो। २. (सूचना, समाचार आदि) जो बिजली के द्वारा तार-हीन प्रणाली से आवे या जाय। बिना तार की सहायता के भेजा जानेवाला। पुं० विद्युत की सहायता से समाचार भेजने की एक प्रणाली या प्रक्रिया जिसमें समाचार, सूचनाएँ आदि भेजनेवाले और पानेवाले स्थानों के बीच में तार का संबंध नहीं रहता। (वायरलेस) |
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तारा :
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पुं० [सं० तार+टाप्] १. आकाश में चमकनेवाला नक्षत्र। सितारा। मुहावरा–तारा टूटना-तारे का आकाश से अपनी कक्षा से निकलकर पृथ्वी पर या आकाश में किसी ओर गिरना। तारा डूबना=(क) किसी तारे या नक्षत्र का अस्त होना। (ख) शुक्र का अस्त होना। (शुक्रास्त में हिंदुओं के यहाँ मंगल कार्य नहीं किये जाते) तारा सी आँखें हो जाना=इतनी ऊँचाई या दूरी पर पहुँच जाना कि तारे की तरह बहुत छोटा जान पड़ने लगे। तारे खिलना या छिटकना-आकाश में तारों का चमकते हुए दिखाई देना। तारे गिनना-चिंता, विकलता आदि से नींद न आने के कारण कष्टपूर्वक जाग कर रात बिताना। (आकाश के) तारे तोड़ लाना-कठिन से कठिन अथवा प्रायः असंभव से काम कर दिखाना। तारे दिखाई देना=दुर्बलता, रोग आदि के कारण आँखों के सामने रह-रहकर प्रकाश के छोटे-छोटे कण दिखाई देना। तारे दिखाना-प्रसूता स्त्री को छठी के दिन बाहर लाकर आकाश की ओर इसलिए तकाना कि भूत-प्रेत आदि का बाधा दूर हो जाय। (मुसल०)। पद–तारों की छाँह=इतने तड़के या सबेरे कि तारों का धुँधला प्रकाश दिखाई दे। २. आँख की पुतली। जैसे–यह लड़का हमारी आँखो का तारा है। ३. किस्मत या भाग्य जिसका बनना-बिगड़ना आकाश के तारों या नक्षत्रों की स्थिति का परिणाम या फल माना जाता है। सितारा। (मुहा० के लिए दे० ‘सितारा’ के मुहा०) पुं० [?] सिर पर पगड़ी की तरह बाँधा जानेवाला पुरानी चाल का चीरा। पुं०=ताला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं०] १. बृहस्पति की स्त्री जिसे चंद्रमा ने अपने पास रख लिया था। २. तांत्रिकों की दस महाविद्याओं में से एक। ३. जैनों के अनुसार एक देवी या शक्ति। ४. बालि नामक बंदर की स्त्री जिसने बाल के मारे जाने पर उसके भाई सुग्रीव के साथ विवाह कर लिया था। |
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तारा-कूट :
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पुं० [ष० त०] वर-कन्या के शुभाशुब फल को सूचित करनेवाला एक कूट जिसका विचार विवाह स्थिर करने से पहले किया जाता है। (फलित ज्योतिष) |
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ताराक्ष :
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पुं० [सं० तार-अक्षि, ब० ष०] तारकाक्ष दैत्य। |
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तारा-ग्रह :
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पुं० [सं० मयू० स०] मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि इन पाँच ग्रहों का समूह। (बृहत्संहिता) |
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ताराज :
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पु० [फा०] लूट-पाट। २. ध्वसं। नाश। बरबादी। |
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तारात्मक-नक्षत्र :
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पुं० [सं० तारा-आत्मन्, ब० स० कप्, तारात्मक-नक्षत्र, कर्म० स०] आकाश में क्रांति, वृत्त के उत्तर और दक्षिण दिशाओं के तारों का समूह जिनमें अश्विनी, भरणी आदि नक्षत्र हैं। |
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ताराधिप :
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पुं० [तारा-अधिप, ष० त०] १. चंद्रमा। २. शिव। ३. बृहस्पति। ४. तारा के पति बालि और सुग्रीव। |
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ताराधीश :
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पुं० [तारा-अधीश, ष० त०]=ताराधिप। |
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तारा-नात :
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पुं० [ष० त०]=ताराधिप। |
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तारा-पति :
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पुं० [ष० त०]=ताराधिप। |
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तारा-पथ :
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पुं० [तारा-पथिन्, ष० त० समा० अच्] आकाश। |
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तारापीड़ :
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पुं० [तारा-आपीड़, ष० त०] १. चंद्रमा। २. अयोध्या के एक प्राचीन राजा। |
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तारा-पुंज :
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पुं० [ष० त०] पास-पास और सदा साथ रहनेवाले विशिष्ट तारों का वर्ग या समूह। (एस्टेरिज्म) |
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ताराभ :
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पुं० [तारा-आभा, ब० स०] पारद। पारा। |
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तारा-भूषा :
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स्त्री० [ब० स०] रात्रि। रात। |
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ताराभ्र :
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पुं० [तार-अभ्र,कर्म० स] कपूर। |
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तारा-मंडल :
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पुं० [ष० त०] १. नक्षत्रों का समूह या घेरा। २. पुरानी चाल का एक प्रकार का बूटीदार कपड़ा। ३. एक प्रकार की आतिशबाजी जिसमें जगह-जगह चमकतें हुए तारें दिखाई पड़ते हैं। |
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तारा-मंडूर :
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पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का मंडूर जो अनेक द्रव्यों के योग से बनाया जाता है। (वैद्यक)। |
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तारा-मृग :
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पुं० [मध्य० स०] मृगशिरा नक्षत्र। |
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तारायण :
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पुं० [तारा-अयन, ष० त० णत्व] आकाश। |
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तारारि :
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पुं० [तारा-अरिस, ष० त०] विटमाक्षिक नाम की उपधातु। |
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तारावती :
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स्त्री० [सं० तारा+मतुप्+ङीष्] एक दुर्गा। |
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समानार्थी शब्द-
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तारावली :
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स्त्री० [तारा-आवली, ष० त०] तारों की पंक्ति। |
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ताराहर :
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पुं० [सं० तारा√हृ (हरना)+अच्] १. सूर्य। २. दिन। |
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तारा-हार :
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पुं० [ब० स०] वह जिसके गले में तारों या नक्षत्रों का हार हो। |
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तारिक :
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पुं० [सं० तार+ठन्-इक] १. नाव से नदी पार करने का भाड़ा। २. नदी आर-पार करने का महसूल। |
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समानार्थी शब्द-
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तारिका :
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स्त्री० [सं० तांडिका, ड–र] ताड़ नामक वृक्ष का रस। ताड़ी। स्त्री० [सं० तारका] १. आज-कल सिनेमा आदि की प्रसिद्ध और सफल अभिनेत्री। २. दे० ‘तारका’। |
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समानार्थी शब्द-
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तारिका-धूलि :
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स्त्री० [सं०] सारे विश्व में, तारों तारिकाओं के बीच के अवकाश में सब जगह व्याप्त एक प्रकार की बहुत ही बारीक तथा सूक्ष्म धूल या रज। (स्टार डस्ट)। |
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समानार्थी शब्द-
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तारिणी :
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वि० स्त्री० [सं०√तृ (तरना)+णिच्+णिनि+ङीप्] तारने या उद्धार करनेवाली। स्त्री० १. एक प्रकार की बहुत लंबी पुरानी नाव जो ४८ हाथ लंबी ५ हाथ चौंड़ी और ५ हाथ ऊँची होती थी। २. दे० ‘तारा’ (देवी)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तारित :
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वि० [सं०√तृ+णिच्+क्त] १. पार कराया हुआ। २. जिसका उद्धार किया गया हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तारी :
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स्त्री० [देश०] एक चिड़िया। स्त्री० [फा० तारीक का संक्षि० रूप] १. अंधकार। अँधेरा। २. बेहोशी। मूर्च्छा। ३. किसी प्रकार के ध्यान में मग्न होने के समय की तन्मयता। उदाहरण–सुन्नि समाधि लागि गौ तारी। जायसी। ४. समाधि। उदाहरण–हाट बजोर लावै तारी।–कबीर। ५. उत्कट इच्छा। लगन। उदाहरण–लागी दरसन की तारी।-मीराँ। स्त्री० [सं०तडित्] बिजली। विद्युत। स्त्री०१.-ताली। २.=ताड़ी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तारीक :
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वि० [फा०] [भाव० तारीकी] १. काला। स्याह। २. अंधकारपूर्ण। अँधेरा। धुँधला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तारीकी :
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स्त्री० [फा०] १. कालिमा। स्याही। २. अन्धकार। अँधेरा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तारीख :
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स्त्री० [अ०] १. गिनती के हिसाब से पड़नेवाला महीने का दिन जो संख्याओं में सूचित किया जाता है। दिनांक। (डेट) जैसे–(क) अगस्त की १५वीं तारीख को भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। (ख) मुकदमा ७ तारीख को पेश होगा २.घटना के घटित होने, लेख्य आदि के लिखे जाने का दिन जो कहीं अंकित होता है। जैसे–इस किताब पर तारीख नहीं लिखी है। ३. दे० तवारीख (इतिहास)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तारीखी :
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वि०=तवारीखी (ऐतिहासिक)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तारीफ :
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स्त्री० [अ०] १. लक्षणों आदि से युक्त परिभाषा। २. उक्त प्रकार की परिभाषा से युक्त वर्णन या विवरण। ३. प्रशंसा। श्लाघा। ४. प्रशंसनीय काम या बात। ५. विशिष्टता। जैसे–यहीं तो आप में तारीफ हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तारीफी :
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स्त्री०=तारीफ (प्रशंसा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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तारुण :
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वि० [सं० तारुण+अञ्] जवान। युवा। |
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तारुण्य :
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वि० [सं० तरुण+ष्यञ्] तरुण होने की अवस्था, गुण या भाव। तरुणता। यौवन। |
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तारु :
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पुं० [हिं० तरना=तैरना] तैरनेवाला। तैराक। उदाहरण–तारु कवण जु समुद्र तरै।–प्रिथीराज। पुं० ताल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तारेय :
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पुं० [सं० तारा+ढक्–एय] १. तारा का पुत्र अंगद। २. बृहस्पति (की स्त्री तारा) का पुत्र बुध। |
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तार्किक :
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वि० [सं० तर्क+ठक्-इक] तर्क संबंधी। तर्क का। पुं० १. वह जो तर्क शास्त्र का अच्छा ज्ञाता हो। २. तत्त्ववेत्ता। ३. वे नास्तिक (आध्यक्षिक से भिन्न) जो केवल तर्क के आधार पर सब बातें मानते हों। इनमें दो भेद हैं–क्षणिकावानी (बौद्ध) और स्याद्वाद्वी (जैन)। |
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तार्क्ष :
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पु० [सं० तृण+अण्] १. कश्यप। २. कश्यप के पुत्र गरुड़। |
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तार्क्षज :
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पुं० [सं० तार्क्ष√जन्(पैदा होना)+ड] रसाजन। |
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तार्क्षी :
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स्त्री० [सं० तार्क्ष+ङीष्] पाताल गारुड़ी लता। छिरेटी। छिरिहटा। |
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तार्क्ष्य :
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पुं० [सं० तृक्ष+यञ्] १. तृक्ष मुनि के गोत्रज। २. गरुड़ और उनके बड़े भाई अरुण। ३. घोड़ा। ४. रसांजन। ५. साँप। ६. एक प्रकार का साल वृक्ष। अश्वकर्ण। ७. महादेव। शिव। ८. सोना। स्वर्ण। ९. रथ। १॰. एक प्राचीन पर्वत। |
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तार्क्ष्यज :
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पुं० [सं० तार्क्ष्य√जन्+ड०] रसौंत। रसांजन। |
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तार्क्ष्य-प्रसव :
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पुं० [ब० स०] अश्वकर्ण वृक्ष। |
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तार्क्ष्य-शैल :
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पुं० [सं० मध्य० स०+अण्] रसांजन। रसौंत। |
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तार्क्ष्यी :
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स्त्री० [सं० तार्क्ष्य+ङीप्] एक प्रकार की जंगली लता। |
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तार्प्य :
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पुं० [सं० तृपा+ष्यञ्] तृपा नामक लता से बनाया हुआ वस्त्र जिसका व्यवहार वैदिक काल में होता था। |
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तार्य :
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वि० [सं० तृ+णिच्+यत्] १. पार करने योग्य। २. विजित करने योग्य। पुं० [तर+ष्यञ्] नाव आदि का किराया। |
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