शब्द का अर्थ
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तीक्ष्ण :
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वि० [सं०√तिज्(तीखा करना)+वस्न, दीर्घ] १. (पदार्थ) जिसका स्वाद चरपरा, झालदार या हलकी चुनचुनी उत्पन्न करनेवाला हो। तीखे स्वादवाला। जैसे–प्याज, लहसुन आदि। २. (शस्त्र) जिसकी धार बहुत चोखी या तेज अथवा नोक बहुत पैनी हो। जैसे–तलवार, बरछी आदि। ३. जिसकी गति या वेग बहुत अधिक हो। प्रचंड। जैसे–तीक्ष्ण वायु। ४. जिसका परिणाम या प्रभाव बहुत उग्र या तीव्र हो। जैसे–तीक्ष्ण स्वभाव। ५. जो किसी बात में औरों से बहुत चढ़-चढ़कर हो या अधिक गहराई तक पहुँच सके। जैसे–तीक्ष्ण बुद्धि। ६. (कथन) जो अप्रिय और कटु हो। जैसे–तीक्ष्ण वचन। ७. आत्मत्यागी। ८. जो कभी आलस्य न करता हो। निरालस्य। ९. जिसे सहना कठिन हो। जैसे–तीक्ष्ण ताप या शीत। पुं० [सं०] १. उत्ताप। गरमी। २. जहर। विष। ३. वत्सनाभ। बछनाग। ४. मृत्यु। मौत। ५. युद्ध। लड़ाई। ६. महामारी। मरी। ७. चव्य। चाब। ८. मुष्यक। मोखा। ९. जवाखार। १॰.सफेद कुश। ११.समुद्री नमक। करकच। १२. कुदरू गोंद। १३. इस्पात। १४. शास्त्र। १५. योगी। १६. ज्योतिष में मूल आर्द्रा, ज्येष्ठा और अश्लेषा नक्षत्र। १७. पूर्वा और उत्तरा भाद्रपदा, ज्येष्ठा, अश्विनी और रेवती नक्षत्रों में बुध की गति। |
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समानार्थी शब्द-
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तीक्ष्ण-कंटक :
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पुं० [ब० स०] १. धतूरे का पेड़। २. बबूल का पेड़। ३. करील का पेड़। ४. इंगुदी या हिंगोट का पेड़। |
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तीक्ष्ण-कंटक :
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स्त्री० [सं० तीक्ष्णकंटक+टाप्] एक प्रकार का वृक्ष जिसे कंकारी कहते हैं। तीक्ष्ण-कंद |
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तीक्ष्णक :
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पुं० [सं० तीक्ष्ण+कन्] १. मोखा वृक्ष। २. सफेद सरसों। |
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तीक्ष्ण-कल्क :
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पुं० [ब० स०] तुंबरू का पेड़। |
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तीक्ष्ण-कांता :
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स्त्री० [कर्म० स०] पुराणानुसार तारा देवी का एक नाम। |
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तीक्ष्ण-क्षीरी :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] बंसलोचन। |
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तीक्ष्ण-गंध :
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पुं० [ब० स०] १. शोभांजन। सहिंजन। २. लाल तुलसी। ३. सफेद तुलसी। ४. छोटी उलायची। ५. लोबान। |
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तीक्ष्ण-गंधक :
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पुं० [सं० तीक्ष्ण+गंध+कन्] सहिंजन। |
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तीक्ष्णगंधा :
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स्त्री० [सं० तीक्ष्णगंध+टाप्] १. राई। २. छोटी इलायची। ३. सफेद बच। ४. जीवंती। ५. कंथारी का वृक्ष। |
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तीक्ष्ण-तंडुला :
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स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] तीक्ष्ण होने की अवस्था या भाव। |
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तीक्ष्ण-ताप :
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पुं० [ब० स०] महादेव। शिव। |
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तीक्ष्ण-तेल :
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पुं०=तीक्ष्ण-तैल। |
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तीक्ष्ण-तैल :
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पुं० [सं० तीक्ष्ण+तैलच्] १. सरसों का तेल। २. सेहुड़ का दूध। ३. मद्य। शराब। ४. राल। |
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तीक्ष्ण-दंत :
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वि० [ब० स०] जिसके दांत बहुत तेज या नुकीली हों। |
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तीक्ष्ण-दंष्ट्र :
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वि० [ब० स०] तीखे या तेज दाँतोवाला। पुं०-बाघ (हिंसक जंतु)। |
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तीक्ष्ण-दृष्टि :
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वि० [ब० स०] जिसकी दृष्टि तीक्ष्ण हो। सूक्ष्म दृष्टिवाला। (व्यक्ति)। |
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तीक्ष्ण-धार :
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वि० [ब० स०] जिसकी धार बहुत तेज हो। पुं० खड्ग, तलवार आदि शास्त्र। |
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तीक्ष्ण-पत्र :
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वि० [ब० स०] जिसके पत्तों के पार्श्व तेज धारवाले हों। पुं० एक प्रकार का गन्ना। २. धनिया। |
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तीक्ष्ण-पुष्प :
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पुं० [सं० ब० स०] लबंग। लौंग। |
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तीक्ष्ण-पुष्पा :
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स्त्री० [सं० तीक्ष्णपुष्प+टाप्] केतकी। |
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तीक्ष्ण-प्रिय :
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पुं० [कर्म० स०] जौ। |
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तीक्ष्ण-फल :
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पुं० [ब० स०] तुबुरू। धनिया। |
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तीक्ष्ण-फला :
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स्त्री० [सं० तीक्ष्णफल+टाप्] राई। |
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तीक्ष्ण-बुद्धि :
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वि० [ब० स०] (व्यक्ति) जिसकी बुद्धि प्रखर हो। |
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तीक्ष्ण-मंजरी :
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स्त्री० [ब० स०] पान का पौधा। |
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तीक्ष्ण-मूल :
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वि० [ब० स०] जिसकी जड़ में से उग्र या तेज गंध आती हो। पुं० १. कुलंजन। २. सहिंजन। |
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तीक्ष्ण-रश्मि :
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वि० [ब० स०] जिसकी किरणें बहुत तेज हों पुं० सूर्य। |
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तीक्ष्ण-रस :
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पुं० [ब० स०] १. जवाखार। यवक्षार। २. शोरा। |
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तीक्ष्ण-लौह :
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पुं० [कर्म० स०] इस्पात। |
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तीक्ष्ण-शूक :
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पुं० [ब० स०] यव। जौ। |
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तीक्ष्ण-सारा :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] शीशम् का पेड़। |
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तीक्ष्णांशु :
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पुं० [तीक्ष्ण-अंशु, ब० स०] सूर्य। |
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तीक्ष्णा :
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स्त्री० [सं० तीक्ष्ण+टाप्] १. बच। २. केवांच। कौंछ। ३. बड़ी माल-कंगनी। ४. मिर्च। ५. सर्पकाली नामक पौधा। ६. अत्यम्लपर्णी नाम की लता। ७. जोंक। ८. तारा देवी के एक नाम। |
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तीक्ष्णाग्नि :
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स्त्री० [तीक्ष्ण-अग्नि, कर्म० स०] १. प्रबल जठराग्नि। २. अजीर्ण या अपच नाम का रोग। |
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तीक्ष्णाग्र :
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वि० [तीक्ष्ण-अग्र, ब० स०] १. प्रबल जठराग्नि। २. अजीर्ण या अपच नाम का रोग। |
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तीक्ष्णायस :
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वि० [तीक्ष्ण-आयस, कर्म० स०] इस्पात। लोहा। |
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