शब्द का अर्थ
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देवांगना :
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स्त्री० [देव-अंगना ष० त०] १. देवता की स्त्री। २. स्वर्ग में रहने वाली स्त्री। ३. अप्सरा। |
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समानार्थी शब्द-
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देवांतक :
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पुं० [देव-अंतक ष० त०] रावण का एक पुत्र जिसे हनुमान् ने युद्ध में मारा था। |
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देवांध (स्) :
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पुं० [देव-अंधस् ष० त०] १. अमृत। २. देवता का नैवेध या भोग। |
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देवांश :
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पुं० [देव-अंश ष० त०] १. किसी वस्तु का वह अंश जो देवताओं को समर्पित किया गया हो अथवा किया जाना चाहिए। २. ईश्वर का अंशावतार। |
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देवा :
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स्त्री० [सं० देव+टाप्] १. पद्मचारिणी लता। २. पटसन पुं०=देव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० [हिं० देना] देनेवाला। देवैया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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देवाक्रीड़ :
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पुं० [देव-आक्रीड ष० त०] देवताओं और इंद्र का बगीचा, नंदनवन। |
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देवागार :
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पुं० [देव-आगार ष० त०] १. देवतओं के रहने का स्थान; स्वर्ग। देवालय। मंदिर। |
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देवाजीव :
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पुं० [सं० देव,आ√जीव् (जीना)+अच्]=देवाजीवी। |
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देवाजीवी (विन्) :
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पुं० [सं० देव-आ√जीव्+णिनि] १. वह जिसकी जीविका देवताओं के द्वारा या उनके सहारे चलती हो। २. पंडा या पुरोहित। |
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देवाट :
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पुं० [सं० देव-आट ब० स०] हरिहर-क्षेत्र तीर्थ का पुराना नाम। |
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देवातिदेव :
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पुं० [सं० देव-अति√दिव+अच्] विष्णु। |
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देवात्मा (त्मन्) :
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पुं० [देव-आत्मन् ब० स०] १. वह जिसकी आत्मा देवताओं की तरह पवित्र और शुद्ध हो। २. अश्वत्थ। पीपल। |
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देवाधिदेव :
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पुं० [सं० देव-अधिदेव ष० त०] १. विष्णु। २. शिव। |
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देवाधिप :
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पुं० [सं० देव-अधिप ष० त०] १. परमेश्वर। २. देवताओं के अधिपति, इन्द्र। ३. द्वापर के एक राजा। |
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देवान :
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पुं०=दीवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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देवानां-प्रिय :
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पुं० [सं० अलुक् स०] १. देवताओं को प्रिय। २. बडों के लिए प्रयुक्त होनेवाला एक आदर-सूचक विशेषण पद जो उनके परम भाग्यशाली और श्रेष्ठ होने का सूचक होता है। ३. मूर्ख। बेवकूफ। पुं० बकरा, जो देवताओं को बलि चढ़ाया जाता था। |
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देवाना :
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पुं० [?] एक प्रकार की चिडिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=दीवाना। स०=दिलाना। |
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देवानुग :
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पुं० [देव-अनुग ष० त०] १. देवता का सेवक। २. विद्याधर, यक्ष आदि उपदेव जो देवताओं का अनुगमन करते हैं। |
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देवानुचर :
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पुं० [देव-अनुचर ष० त०]=देवानुग। |
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देवानुयायी (यिन्) :
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पुं० [देव-अनुयायिन् ष० त०]= देवानुग। |
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देवान्न :
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पुं० [देव-अन्न ष० त०] हवि। चरु। |
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देवाब :
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स्त्री० [देश०] धौंमर, गोंद, चूनें, बीझन आदि के योग से बनाई जानावाली एक तरह की लेई। |
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देवाभरण :
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पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग। |
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देवाभियोग :
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पुं० [देव-अभियोग ष० त०] जैनों के अनुसार वह स्थिति जिसमें कोई देवता शरीर में प्रविष्ट होकर अनुचित कामों की ओर प्रव्रत्त करता है। |
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देवाभीष्टा :
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स्त्री० [देव-अभीष्टा ष० त०] पान की लता। तांबूली। |
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देवायतन :
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पुं० [देव-आयतन ष० त०] देवता के रहने का स्थान; स्वर्ग। २. देवालय। मंदिर। |
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देवायु (स्) :
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स्त्री० [देव-आयुस् ष० त०] देवताओं का जीवनकाल जो बहुत लंबा होता है। |
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देवायुध :
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पुं० [देव-आयुध ष० त०] १. देवताओं का अस्त्र। दिव्य-अस्त्र। २. इन्द्र-धनुष। |
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देवारण्य :
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पुं० [देव-अरण्य ष० त०] १. देवताओं का वन या उपवन। २. एक प्राचीन तीर्थ। (महाभारत) |
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देवाराधन :
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पुं० [देव-आराधन ष० त०] देवताओं का आराधन, पूजन आदि। |
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देवारि :
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स्त्री० [देव-अरि ष० त०] देवताओं के शत्रु, असुर। स्त्री०=दीवार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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देवारी :
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[सं० दावाग्नि] कछारों में दिखाई देनेवाला लुक। छलावा। उदा०—जानहुँ मिरिग देवारी मोहे।—जायसी। स्त्री०=दीवाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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देवार्पण :
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पुं० [देव-अर्पण च० त०] देवताओं के निमित्त किया जानेवाला अर्पण या उत्सर्ग। |
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देवार्ह :
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पुं० [सं० देव√अर्ह् (योग्य होना)+अण्] सुरपर्ण। माचीपत्र। |
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देवाल :
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वि० [हिं० देना] १. देनेवाला। देवैया। २. दूसरो को कुछ देने की प्रव्रत्ति रखनेवाला। स्त्री०=दीवार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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देवालय :
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पुं० [देव-आलय ष० त०] १. देवताओं के रहने का स्थान; स्वर्ग। २. वह स्थान जहाँ किसी देवता की प्रतिमा प्रतिष्ठित हो। मंदिर। |
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देवाला :
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पुं० १. दिवाला। २. देवालय। |
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देवाली :
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स्त्री०=दीवाली। |
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देवा-लेई :
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स्त्री० [हिं० देना+लेना] १. किसी के कुछ देने और उससे कुछ लेने की क्रिया या भाव २. बराबर परस्पर कुछ लेते-देते रहने का बरताव। लेन-देन का व्यवहार। |
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देवावसथ :
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पुं० [देव-आवसथ ष० त०] १. देवता के रहने का स्थान। २. मंदिर। |
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देवावास :
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पुं० [देव-आवास ष० त०] १. देवता का मंदिर। २. पीपल का पेड़। |
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देवावृध् :
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पुं० [सं० देव√वृध् (बढ़ना)+क्विप्] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम। |
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देवाश्व :
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पुं० [देव-अश्व ष० त०] इंद्र का घोड़ा। उच्चैःश्रवा। |
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देवाहार :
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पुं० [देव-आहार ष० त०] १. देवताओं का आहार या भोजन। २. अमृत। |
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