शब्द का अर्थ
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देश :
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पुं० [सं०√दिश् (बताना)+अच्] १. सब ओर फैला हुआ वह विस्तृत अवकाश जिसके अंतर्गत दिखाई देने वाली सभी चीजें रहती है। २. उक्त का कोई परिमित या सीमित अंश या भाग। जैसे—तारों का देश। ३. जगह। स्थान। ४. किसी अंग या पदार्थ के आस-पास का स्थान। जैसे—उदर देश, कटि देश, ललाट देश। ५. कोई विशिष्ट भू-भाग या खंड जिसका प्रक्रतिक या कृत्रिम आधारों पर विभाजन हुआ हो तथा जहाँ कुछ विशिष्ट जातियाँ, कुछ विशिष्ट भाषा-भाषी तथा कुछ विशिष्ट परंपराओं और संस्कृतियों वाले लोग रहते है। ६. उक्त लोग। ७. किसी का अथवा उसके पूर्वजों का जन्म स्थान। जैसे—छुट्टियों में वे देश चले जाते हैं। ८. संगीत में संपूर्ण जाति का एक राग। ९. जैन शास्त्रानुसार चौथा पंचक जिसके द्वारा अर्थानुसंधान पूर्वक तपस्या अर्थात गुरु, जन, गुहा, श्मशान, और रुद्र की वृद्धि होती है। |
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देशक :
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पुं० [सं०√दिश्+ण्वुल्—अक] १. देश का शासक। २. मार्ग दर्शक। ३. उपदेश करनेवाला। उपदेशक। |
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देश-कली :
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स्त्री० [सं०] एक रागिनी जिसमें गांधार, कोमल और बाकी सब स्वर शुद्ध लगते हैं। |
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देशकारी :
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स्त्री० [सं०] संगीत में, संपूर्ण जाति की एकरागिनी जो मेघराग की भार्या कही गई है। यह वर्षा ऋतु में दिन के पहले पहर में गाई जाती है। |
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देशगांधार :
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पुं० [सं०] एक राग जो सबेरे एक दंड से पाँच दंड तक गाया जाता है। |
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देश-चरित्र :
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पुं० [ष० त०] देश की प्रथा। रवाज। (कौं०) |
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देश-चारित्र :
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पुं० [ष० त०] जैन शास्त्रानुसार गार्हस्थ्य धर्म जिसके बारह भेद हैं। |
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देशज :
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वि० [सं० देश√जन् (उत्पत्ति)+ड] (शब्द) जो देश में ही उपजा या बना हो। जो न तो विदेशी हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। पुं० ऐसा शब्द जो न संस्कृत हो, न संस्कृत का अपभ्रंश हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो, बल्कि किसी प्रदेश के लोगों ने बोल-चाल में जों ही बना लिया हो। विशेष—यह शब्दों के तीन प्रकारों या विभागों में से एक है। शेष दो विभाग तत्सम और तद्भव है। |
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देशज्ञ :
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पुं० [सं० देश√ज्ञा (जानना)+क] किसी देश की दशा, रीति, नीति आदि सब बातें जाननेवाला। |
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देश-धर्म :
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पुं० [ष० त०] किसी विशिष्ट देश की रीति, नीति, आचार, व्यवहार आदि। |
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देशना :
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स्त्री० [सं०] १. उपदेश। (जैन) २. कोई ऐसी बात जिसके अनुसार कोई काम करने को कहा जाय। हिदायत। |
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देश-निकाला :
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पुं० [हिं० देश+निकालना] १. देश से निकालने की क्रिया या भाव। २. अपराधी विशेषतः देशद्रोही को दिया जानेवाला वह दंड जिसमें वह देश के बाहर निकाल दिया जाता है। क्रि० प्र०—देना।—मिलना। |
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देश-पति :
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पुं० [ष० त०] १. देश का स्वामी; राजा। २. देश का प्रधान शासक। राष्ट्रपति। |
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देश-पाली :
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स्त्री० [सं०] देशकारी (रागिनी)। |
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देश-पीड़न :
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पुं० [ष० त०] सारी प्रजा पर होनेवाला अत्याचार। राष्ट्र को कष्ट पहुँचाना। (कौ०) |
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देश-भक्त :
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पुं० [ष० त०] वह व्यक्ति जिसे अपना देश परम प्रिय हो तथा जो उसकी स्वतन्त्रता और स्वार्थो को सर्वोपरी समझता हो। ऐसा व्यक्ति किसी अच्छे उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सब-कुछ उत्सर्ग करने को प्रस्तुत रहता हो। |
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देश-भक्ति :
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स्त्री० [ष० त०] देशभक्त होने की अवस्था, गुण या भाव। |
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देश-भाषा :
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स्त्री० [ष० त०] वह भाषा जो किसी विशिष्ट देश या प्रांत में ही बोली जाती हो। जैसे—पंजाबी, बँगला, पराठी आदि। |
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देश-मल्लार :
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पुं० [सं०] संपूर्ण जाति का एक राग। |
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देशराज :
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पुं० [सं०] राजा परमाल (प्रमर्दि देव) के एक सामंत जो आल्हा और ऊदल के पिता थे। |
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देशस्थ :
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वि० [सं० देश√स्था (ठहरना)+क] १. देश में स्थिति। २. देश में रहनेवाला। पुं० महाराष्ट्र ब्राह्मणों का एक भेद। |
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देशांकी :
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स्त्री० [?] एक प्रकार की रागिनी। |
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देशांतर :
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पुं० [सं० देश-अंतर; मयू० स०] [वि० देशांतरी, भू० कृ० देशांतरित] १. अपने अथवा प्रस्तुत देश से भिन्न, अन्य या दूसरा देश परदेश। विदेश। २. दे० ‘देशांतरण’। ३. भूगोल में, याम्योतर रेखा के विचार से निश्चित की हुई किसी स्थान की पूर्वी या पश्चिमी दूरी जो अक्षांश की परह संख्या-सूचक अंशों में बताई जाती है। (लांगी च्यूड) |
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देशांतरण :
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पुं० [सं० देशांतर+णिच्+ल्युट्—अन] १. एक देश को छोडकर दूसरे देश में जाना तथा उसमें जाकर रहना। २. राज्य की ओर से दिया जानेवाला निर्वासन का दंड। |
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देशांतर सूचक यंत्र :
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पुं० [सं०] किसी स्थान का देशांतर सूचित करनेवाला एक प्रकार का यंत्र जिसका उपयोग मुख्यतः समुद्री जहाजों पर देशांतर जानने के लिए किया जाता है। (क्रोनोमीटर) |
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देशांतरित :
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भू० कृ० [सं० देशांतर+णिच्+क्त] १. जो किसी दूसरे देश जा बसा हो। २. जिसे देश-निकाले का दंड मिला हो। ३. जो किसी दूसरे देश में पहुँचा या भेज दिया गया हो। |
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देशांतरित-पण्य :
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पुं० [कर्म० स०] दूर देश से आया हुआ माल। विदेशी माल। (कौ०) |
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देशांतरी (रिन्) :
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वि०, पुं० [सं० देशांतर+इनि] विदेशी। |
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देशांश :
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पुं०=देशांतर। |
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देशाका :
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पुं० [सं०] एक प्रकार की रागिनी। |
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देशाक्षी :
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स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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देशाखी :
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स्त्री० [सं०] षाड़व जाति की एक रागिनी जो हनुमत् के मत से हिंडोल की दूसरी रागिनी है। |
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देशाचार :
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पुं० [सं० देश-आचार ष० त०] किसी विशिष्ट देश के रीति-रिवाज। |
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देशाटन :
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पुं० [सं० देश-अटन, स० त०] भिन्न-भिन्न देशों में घूम-घूमकर की जानेवाली यात्रा या पर्यटन। |
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देशावकाशिक (व्रत) :
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पुं० [सं०] जैन शास्त्रानुसार, एक प्रकार का शिक्षा-व्रत जिसमें स्वार्थ के लिए सब दिशाओं में आने-जाने के जो प्रतिबंध हैं उनकी ओर भी कठोरता तथा दृढ़ता से पालन किया जाता है। |
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देशावली :
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स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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देशिक :
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वि० [सं० देश+ठन्—इक] किसी विशिष्ट देश या प्रदेश से संबंध रखने या उसकी सीमा में होनेवाला। (इन्टरनल)। पुं० पथिक बटोही। |
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देशित :
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भू० कृ० [सं०√दिश्+णिच्+क्त] १. जिसे आदेश दिया गया हो। आदिष्ट। २. जिसे उपदेश दिया गया हो। उपदिष्ट। ३. जिसे कोई बात बतलाई या समझाई गई हो। |
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देशिनी :
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स्त्री० [सं०√दिश्+णिनि—ङीप्] १. सूची। सूई। २. तर्जनी उँगली। |
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देशी :
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वि० [सं० देशीय] १. देश संबंधी। देश का। जैसे—देशी भाषा। २. किसी व्यक्ति की दृष्टि से, स्वयं उसके देश में बहने, रहने या होनेवाला। स्वदेशी। जैसे—देशी माल। पुं० १. संगीत के दो भेदों में से एक (दूसरा भेद ‘मार्गी’ कहलाता है)। २. एक प्रकार का ताण्डव नृत्य जिसमें अभिनय कम और अंग-विक्षेप अधिक होता है। स्त्री एक रागिनी जो हनुमत के मत से दीपक राग की भार्या है और जो ग्रीष्मकाल में मध्याह्र के समय गाई जाती है। |
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देशी-राज्य :
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पुं० दे० ‘रियासत’। |
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देशीय :
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वि० [सं० देश+छ—ईय] देश में होने अथवा उसके भीतरी भागों से संबंध रखनेवाला। |
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देश्य :
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वि० [सं०] १. किसी देश, प्रान्त या स्थान से संबध रखने या उसमें होनेवाला। देशी। २. प्रान्तीय या स्थानीय। ३. [√दिश्+ण्यत्] (तथ्य) जो प्रमाणित किया जाने को हो। पुं० १. देश का निवासी। २. ऐसा गवाह जिसने कोई घटना अपनी आँखों से देखी हो। प्रत्यक्षदर्शी। ३. न्याय में ऐसा कथन या तथ्य जो प्रमाणिक किया जाने को हो। पूर्व-पक्ष। |
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