शब्द का अर्थ
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दोह :
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पुं०=द्रोह। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दोहग :
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पुं०=दोहगा। (राज०) |
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दोहगा :
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स्त्री० [सं० दुर्भगा] पर-पुरुष के साथ पत्नी के रूप में रहनेवाली विधवा स्त्री। |
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दोहज :
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पुं० [सं०] दूध। |
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दोहड़ा :
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वि०=दोहरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दोहता :
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पुं० [सं० दौहित्र] [स्त्री० दोहती] लड़की का लड़का। नाती। नवासा। |
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दोहती :
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स्त्री० १.=दोस्ती। २.=दोस्ती-रोटी। स्त्री० हिं० ‘दोहता’ का स्त्री०। |
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दोहत्थड़ :
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वि० [हिं० दो+हाथ] दोनों हाथों से किया जाने या होने वाला। जैसे—दोहत्थड़ मार पड़ना। पुं० ऐसा आघात या प्रहार जो दोनों हाथों की हथेलियों से एक साथ हो। क्रि० वि० दोनों हाथों की हथेलियों से एक साथ प्रहार करते हुए। जैसे—दोहत्थड़ छाती या सिर पीटना। |
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दोहत्था :
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वि० [हिं० दो+हाथ] [स्त्री० दोहत्थी] १. दोनों हाथों से किया जानेवाला। जैसे—दुहत्थी मार। २. जिसमें हत्थे या दस्ते लगे हों। दो मूठोंवाला। क्रि० वि० दोनों हाथों से। |
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दोहत्थाशासन :
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पुं०=द्विदल शासन। |
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दोहत्थी :
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स्त्री० [हिं० दो+हाथ] मालखंभ की एक कसरत जिसमें माल खंभ को दोनों हाथों से कुहनी तक लपेटा जाता है और फिर जिधर का हाथ ऊपर होता है उधर की टाँग को उठाकर मालखंभ को पकड़ा जाता या उस पर सवारी की जाती है। |
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दोहद :
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पुं० [सं० दोह√दा (देना)+क] १. गर्भकाल में गर्भवती स्त्री के मन में उत्पन्न होनेवाली अनेक तरह की इच्छाएँ या कामनाएँ। २. वह काम, चीज या बात जिसकी उक्त अवस्था और रूप में इच्छा या कामना होती हो। ३. गर्भवती रहने या होने की दशा में होनेवाली मिचली या ऐसा ही कोई सामान्य शारीरक विकार। डकौना। ४. गर्भवती होने की अवस्था या भाव। ५. गर्भवती होने के चिह्न या लक्षण। ६. भारतीय साहित्य में, कविसमय के अनुसार कुछ विशिष्ट पौधों, वृक्षों आदि के सम्बन्ध में यह मान्यता कि जब वे खिलने या फूलने को होते हैं, तब उनमें गर्भवती स्त्रियों की तरह कुछ इच्छाएँ और कामनाएँ होती हैं जिनकी पूर्ति होने पर वे जल्दी, समय से पहले और खूब अच्छी तरह खिलने या फूलने लगते हैं। जैसे—सुन्दरी स्त्री के पैरों की ठोकर से अशोक, पान की पाक थूकने से मौलसिरी, गाने से गम या नाचने से कचनार लिखने अथवा फलने-फूलने लगते हैं। (दे० ‘वृक्ष दोहद’) ७. फलित ज्योतिष के अनुसार यात्रा के समय ऐसी विशिष्ट चीजें खाने या पीने का विधान जिनसे तिथि, दिशा, वार आदि से संबंध रखनेवाले दोषों का परिहार या शान्ति होती है। |
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दोहदवती :
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स्त्री० [सं० दोहद+मतुप् ङीप्] गर्भवती स्त्री। गर्भिणी। |
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दोहदान्विता :
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स्त्री० [सं० दोहद+अन्वित तृ० त०]= दोहदवती। |
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दोहदी (दिन्) :
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वि० [सं० दोहद+इनि] जिसे प्रबल इच्छा हो। स्त्री० गर्भवती स्त्री। |
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दोहदोहीय :
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पुं० [सं०] एक प्रकार का वैदिक गीत या साम। |
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दोहन :
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पुं० [सं०√दुह् (दुहना)+ल्युट्—अन्] गाय-भैंस आदि के स्तनों से दूध निकालने की क्रिया या भाव। पुं०=दोहनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दोहना :
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स० [सं० दोष+ना] १. दोष लगाना। दूषित ठहराना। २. तुच्छ या हीन ठहराना। स०=दूहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दोहनी :
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स्त्री० [सं० दोहन] १. दूध दुहने की क्रिया या भाव। २. [सं० दोहन+ङीप्] वह पात्र जिसमें दूध दुहा जाता हो। |
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दोहर :
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स्त्री० [हिं० दो+धड़ी=तह] दो पाटोंवाली चादर। दोहरी सिली हुई चादर। |
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दोहर-कम्मा :
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पुं० [हिं० दोहरा+काम] व्यर्थ परिश्रम करके दोबारा किया जाने वाला ऐसा काम जो पहली बार ही ठीक तरह से किया जा सकता था। |
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दोहराना :
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स० [हिं० दोहरा] १. दोहरा करना। २. दोबारा करना। दोहराना। अ० १. दोहरा होना। २. दोबारा किया जाना। दोहराया जाना। |
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दोहरक :
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पुं० [हिं० दो+हरा (प्रत्य०)] [स्त्री० दोहरी] १. दो तहों, परतों या पल्लोंवाला। २. जो दो बार किया जाय या किया जाता हो। जैसे—दोहरी सिलाई। ३. दुगुना। दूना। ४. दो पक्षों पर लागू होनेवाला (कथन)। पुं० १. लगे हुए पानों के दो बीड़े जो एक ही पत्ते में लपेटे हुए हों। २. कतरी हुई सुपारी। पुं० [दोहा] दोहे की तरह का एक छन्द जो दोहे के विषम पादों में एक एक मात्रा घटा देने से बनता है। |
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दोहराई :
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स्त्री० [हिं० दोहराना] १. दोहराने की क्रिया या भाव। दोबारा कोई काम करना। २. किसी काम को अधिक ठीक बनाने के लिए उसे अच्छी तरह देखना। ३. दोहराने के बदले में मिलनेवाला पारिश्रमिक। |
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दोहराना :
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स० [हिं० दोहरा] १. किसी चीज को दो तहों या परतों में मोड़ना। दोहरा करना। २. कोई काम या बात फिर से उसी प्रकार करना या कहना। पुनरावृत्ति करना। ३. किये हुए काम को फिर से आदि से अंत तक इस दृष्टि से देखना कि उसमें कहीं कोई कसर या भूल तो नहीं रह गयी है। संयो० क्रि०—जाना।—डालना।—देना। |
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दोहरापाट :
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पुं० [हिं० दोहरी+पट] कुश्ती का एक पेंच। |
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दोहल :
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पुं० [सं० दोह√ला (लेना)+क] दोहद। (दे०) |
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दोहलवती :
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वि० [सं० दोहल+मतुप् ङीप्]=दोहदवती। |
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दोहला :
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वि० स्त्री० [हिं० दो+हल्ला] दो बार की ब्याही हुई (गाय या भैंस)। (गौ या भैंस) जो दो बार बच्चा दे चुकी हो। |
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दोहली :
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वि० [सं०] १. अशोक वृक्ष। २. आक। मदार। स्त्री० [?] ब्राह्मण को दान करके दी हुई जमीन। |
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दोहा :
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पुं० [सं० दोधक या द्विपदा] १. चार चरणोंवाला एक प्रसिद्ध छंद जिसके पहले और तीसरे चरणों में १३-१३ और दूसरे तथा चौथे चरणों में ११-११ मात्राएँ होती हैं। २. संगीत में, संकीर्ण राग का एक भेद। |
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दोहाई :
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स्त्री०=दुहाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दोहाक :
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पुं०=दोहाग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दोहाग :
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पुं० [सं० दौर्भाग्य] दुर्भाग्य। बदनसीबी। |
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दोहागा :
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पुं० [हिं० दोहाग] [स्त्री० दोहागिन] अभागा। बदकिस्मत। |
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दोहान :
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पुं० [देश०] गौ का जवान बछड़ा। |
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दोहाव :
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पुं०=दुहाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दोहित :
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पुं०=दोहता (दौहित्र)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दोही (हिन्) :
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वि० [सं०√दुह+घिनुण्] दूहनेवाला। पुं० ग्वाला। स्त्री० [हिं० दो] एक प्रकार का छंद जिसके पहले और तीसरे चरण में १५-१५ और दूसरे तथा चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में एक लघु होना आवश्यक है। |
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दोहिया :
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पुं० [?] एक प्रकार का पौधा। वि० [हिं० दूहना] दूहनेवाला। |
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दोहुर :
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स्त्री० [देश०] अधिक बलुई जमीन। |
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दोह्य :
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वि० [सं०√दुह+ण्यत्] जो दूहा जा सके। दूहे जाने के योग्य। पुं० १. दूध। २. ऐसे मादा पशु जो दूहे जाते या दूध देते हों। |
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दोह्या :
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स्त्री. [सं० दोह्य+टाप्] गाय। |
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