शब्द का अर्थ
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परिधर्म :
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पुं० [सं० परि√घृ (बहना)+मन्] एक तरह का यज्ञ-पात्र जिसमें मदिरा आदि बनाई जाती थी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
परिधर्म्य :
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पुं० [सं० परिघर्म+यत्] यज्ञ में काम आनेवाला एक प्रकार का पात्र। |
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समानार्थी शब्द-
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परिध :
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स्त्री०=परिधि। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधन :
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पुं० [सं० परिधान] कमर और उससे निचला भाग ढकने के लिए पहना जानेवाला कपड़ा। अधोवस्त्र। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधर्षण :
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पुं० [सं० परि√धृष् (झिड़कना)+ल्युट्—अन] १. आक्रमण। २. अपमान। तिरस्कार। ३. दूषित या बुरा व्यवहार। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधान :
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पुं० [सं० परि√धा (धारण करना)+ल्युट्—अन] १. शरीर पर वस्त्र आदि धारण करना। कपड़े ओढ़ना या पहनना। २. वे कपड़े जो शरीर पर धारण किये या पहने जायँ। पोशाक। ३. कमर के नीचे पहनने या बाँधने का कपड़ा। जैसे—धोती, लुंगी आदि। ४. प्रार्थना स्तुति आदि का अंत या समाप्ति। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधानीय :
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वि० [सं० परि√धा+अनीयर्] [स्त्री० परिधानीया] जो परिधान के रूप में धारण किया जा सके पहने जाने के योग्य (वस्त्र) |
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समानार्थी शब्द-
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परिधाय :
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पुं० [सं० परि√धा+घञ्] १. कपड़ा। वस्त्र। २. पहनने के कपड़े। परिधान। पोशाक। ३. वह स्थान जहाँ जल हो। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधायक :
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वि० [सं० परि√धा+ण्वुल्—अक] १. ढकने, लपेटने या चारों ओर से घेरनेवाला। पुं० १. घेरा। २. चहारदीवारी। प्राचीर। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधायन :
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पुं० [सं० परि√धा+णिच्+ल्युट्—अन] १. पहनना। २. पोशाक। |
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परिधारण :
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पुं० [सं० प्रा० स०] [वि० परिधार्य, परिधृत] १. अच्छी तरह किया जानेवाला धारण। २. अपने ऊपर उठाना, लेना या सहना। ३. बचाकर या रक्षित रूप में रखना। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधावन :
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पुं० [सं० प्रा० स०] बहुत अधिक या बहुत तेज दौड़ना। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधि :
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स्त्री० [सं० परि√धा+कि] १. वृत्त की रेखा। २. किसी गोलाकार वस्तु के चारों ओर खिंची हुई वृत्ताकार रेखा। (सरकम्फरेन्स) ३. वह गोलाकार मार्ग जिस पर कोई चीज चलती, घूमती या चक्कर लगाती हो। ४. प्रायः गोलाकार माना जानेवाला कोई ऐसा वास्तविक या कल्पित घेरा, जो दूसरे बाहरी क्षेत्रों से अलग हो। कुछ विशेष लोगों या कार्यों का स्वतंत्र क्षेत्र। वृत्त। (सर्किल) ५. सूर्य या चन्द्रमा के आस-पास दिखाई पड़नेवाला घेरा। परिवेश। मंडल। ६. किसी वस्तु की रक्षा के लिए बनाया हुआ घेरा। बड़ा चहारदीवारी। नियत या नियमित मार्ग। ८. वे तीन खूँटे जो यज्ञ-मंडप के आस-पास गाड़े जाते थे। ९. क्षितिज। १॰. परिधान। ११. दे० ‘परिवेश’। |
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समानार्थी शब्द-
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परिधिक :
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वि० [सं०] १. परिधि-संबंधी। २. जिसका कार्य-क्षेत्र किसी विशेष परिधि में हो। जैसे—परिधिक निरीक्षक। (सर्किल इंस्पेक्टर) |
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परिधिस्थ :
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वि० [सं० परिधि√स्था (ठहरना)+क] जो किसी परिधि में स्थित हो। पुं० १. नौकर। सेवक। २. वह सेना जो रथ और रथी की रक्षा के लिए नियुक्त रहती थी। |
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परिधीर :
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वि० [सं० प्रा० स०] बहुत अधिक धीरजवाला। परम धीर। |
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परिधूपित :
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भू० कृ० [सं० प्रा० स०] धूप से अच्छी तरह बसाया या सुगंधित किया हुआ। |
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परिधूमन :
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पुं० [सं० परिधूम, प्रा० स०,+क्विप्+ल्युट्—अन] १. डकार। २. सुश्रुत के अनुसार तृष्णा रोग का एक उपद्रव जिसमें एक विशेष प्रकार की कै होती है। |
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परिधूसर :
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वि० [सं० प्रा० स०] १. धूल से भरा हुआ। जिसमें खूब धूल लगी हो। २. धूल के रंग का। मटमैला। |
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परिधेय :
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वि० [सं० परि√धा (धारण)+यत्] जो परिधान के रूप में काम आ सके। जो पहना जा सके या पहने जाने योग्य हो। पुं० १. पहनने के कपड़े। परिधान। पोशाक। २. अंदर या नीचे पहनने का कपड़ा। जैसे—गंजी, लहँगा या साया। |
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परिध्वंस :
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पुं० [सं० प्रा० स०] १. पूरी तरह से होनेवाला ध्वसं या नाश। सर्व-नाश। २. ध्वंस। नाश |
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परिध्वस्त :
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भू० कृ० [सं० प्रा० स०] जिसका पूरी तरह से ध्वंस या नाश हो चुका हो या किया जा चुका हो। |
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परिध :
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स्त्री०=परिधि। |
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पुं० [सं० परिधान] कमर और उससे निचला भाग ढकने के लिए पहना जानेवाला कपड़ा। अधोवस्त्र। |
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पुं० [सं० परि√धृष् (झिड़कना)+ल्युट्—अन] १. आक्रमण। २. अपमान। तिरस्कार। ३. दूषित या बुरा व्यवहार। |
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परिधान :
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पुं० [सं० परि√धा (धारण करना)+ल्युट्—अन] १. शरीर पर वस्त्र आदि धारण करना। कपड़े ओढ़ना या पहनना। २. वे कपड़े जो शरीर पर धारण किये या पहने जायँ। पोशाक। ३. कमर के नीचे पहनने या बाँधने का कपड़ा। जैसे—धोती, लुंगी आदि। ४. प्रार्थना स्तुति आदि का अंत या समाप्ति। |
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परिधानीय :
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वि० [सं० परि√धा+अनीयर्] [स्त्री० परिधानीया] जो परिधान के रूप में धारण किया जा सके पहने जाने के योग्य (वस्त्र) |
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पुं० [सं० परि√धा+घञ्] १. कपड़ा। वस्त्र। २. पहनने के कपड़े। परिधान। पोशाक। ३. वह स्थान जहाँ जल हो। |
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परिधायक :
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वि० [सं० परि√धा+ण्वुल्—अक] १. ढकने, लपेटने या चारों ओर से घेरनेवाला। पुं० १. घेरा। २. चहारदीवारी। प्राचीर। |
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पुं० [सं० परि√धा+णिच्+ल्युट्—अन] १. पहनना। २. पोशाक। |
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परिधारण :
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पुं० [सं० प्रा० स०] [वि० परिधार्य, परिधृत] १. अच्छी तरह किया जानेवाला धारण। २. अपने ऊपर उठाना, लेना या सहना। ३. बचाकर या रक्षित रूप में रखना। |
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पुं० [सं० प्रा० स०] बहुत अधिक या बहुत तेज दौड़ना। |
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परिधि :
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स्त्री० [सं० परि√धा+कि] १. वृत्त की रेखा। २. किसी गोलाकार वस्तु के चारों ओर खिंची हुई वृत्ताकार रेखा। (सरकम्फरेन्स) ३. वह गोलाकार मार्ग जिस पर कोई चीज चलती, घूमती या चक्कर लगाती हो। ४. प्रायः गोलाकार माना जानेवाला कोई ऐसा वास्तविक या कल्पित घेरा, जो दूसरे बाहरी क्षेत्रों से अलग हो। कुछ विशेष लोगों या कार्यों का स्वतंत्र क्षेत्र। वृत्त। (सर्किल) ५. सूर्य या चन्द्रमा के आस-पास दिखाई पड़नेवाला घेरा। परिवेश। मंडल। ६. किसी वस्तु की रक्षा के लिए बनाया हुआ घेरा। बड़ा चहारदीवारी। नियत या नियमित मार्ग। ८. वे तीन खूँटे जो यज्ञ-मंडप के आस-पास गाड़े जाते थे। ९. क्षितिज। १॰. परिधान। ११. दे० ‘परिवेश’। |
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परिधिक :
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वि० [सं०] १. परिधि-संबंधी। २. जिसका कार्य-क्षेत्र किसी विशेष परिधि में हो। जैसे—परिधिक निरीक्षक। (सर्किल इंस्पेक्टर) |
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परिधिस्थ :
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वि० [सं० परिधि√स्था (ठहरना)+क] जो किसी परिधि में स्थित हो। पुं० १. नौकर। सेवक। २. वह सेना जो रथ और रथी की रक्षा के लिए नियुक्त रहती थी। |
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परिधीर :
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वि० [सं० प्रा० स०] बहुत अधिक धीरजवाला। परम धीर। |
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परिधूपित :
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भू० कृ० [सं० प्रा० स०] धूप से अच्छी तरह बसाया या सुगंधित किया हुआ। |
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परिधूमन :
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पुं० [सं० परिधूम, प्रा० स०,+क्विप्+ल्युट्—अन] १. डकार। २. सुश्रुत के अनुसार तृष्णा रोग का एक उपद्रव जिसमें एक विशेष प्रकार की कै होती है। |
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परिधूसर :
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वि० [सं० प्रा० स०] १. धूल से भरा हुआ। जिसमें खूब धूल लगी हो। २. धूल के रंग का। मटमैला। |
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वि० [सं० परि√धा (धारण)+यत्] जो परिधान के रूप में काम आ सके। जो पहना जा सके या पहने जाने योग्य हो। पुं० १. पहनने के कपड़े। परिधान। पोशाक। २. अंदर या नीचे पहनने का कपड़ा। जैसे—गंजी, लहँगा या साया। |
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पुं० [सं० प्रा० स०] १. पूरी तरह से होनेवाला ध्वसं या नाश। सर्व-नाश। २. ध्वंस। नाश |
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भू० कृ० [सं० प्रा० स०] जिसका पूरी तरह से ध्वंस या नाश हो चुका हो या किया जा चुका हो। |
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