शब्द का अर्थ
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वहंत :
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पुं० [सं०√वह् (ढोना)+झ-अन्त] १. वायु। २. बालक। |
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समानार्थी शब्द-
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वह :
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सर्व० [सं०√वह् (ढोना)+अच्०] १. एक सर्वनाम जो किसी स्थिति या संदर्भ से अनुमानित किया जाता अथवा ज्ञात या सूचित हो। २. पति के लिए प्रयुक्त सर्वनाम। जैसे–वह मुझसे कुछ भी नहीं कह गये थे। पुं० [सं०] १. बैल का कंधा। २. घोड़ा। ३. वायु। हवा। मार्ग। रास्ता। ५. नद। वि० वहन करने अर्थात् उठा या ढोकर ले जानेवाला (यौ० के अन्त में) जैसे–भारवह। |
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वहत :
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पुं० [सं०] १. बैल। २. पथिक। यात्री। |
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वहति :
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पुं० [सं०] १. बैल। २. वायु। ३. परामर्शदाता। |
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वहती :
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स्त्री० [सं०] नदी। |
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वहदत :
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स्त्री० [अ०] १. ‘वहिद’ अर्थात् एक होने की अवस्था या भाव। २. अद्वैतवाद। ३. एकान्तता। |
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वहदानी :
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वि० [अ०] [भाव० वहदानियत] १. वहिद अर्थात् एक संबंध रखनेवाला। २. अद्वैतवाद संबंधी। |
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वहन :
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पुं० [सं०√वह् (ढोना)+ल्युट-अन] १. कहीं से ले जाने के लिए कोई चीज उठाना या लादना। भार ढोना। २. लाक्षणिक अर्थ में कर्त्तव्य आदि के रूप में लिए हुए भार का निर्वाह करना। ३. एक स्थान से दूसरे स्थान पर चीजें ले जाने का साधन। जैसे–नाव आदि। ४. वास्तुकला में खंभे के नौ भागों में से सबसे नीचेवाला भाग। |
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वहनक :
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पुं० [सं०] गाड़ी, ठेला नाव आदि जिस पर भार आदि लादकर कहीं ले जाया जाता है। संवाहक। |
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वहन-पत्र :
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पुं० [सं० कर्म० स०] वह पत्र जिसमें वहन की जानेवाली अर्थात् ढोकर कहीं ले जाई जानेवाली चीजों का विवरण या सूची रहती है। (बिल आफ लेंडिंग)। |
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वहना :
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स० [सं० वहन] १. वहन करना। ढोना। २. कर्तव्य आदि ऊपर लेना अथवा उसका निर्वाह करना। |
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वहनीय :
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वि० [सं०√वह् (ढोना)+अनीयर्] १. वहन करने के योग्य। २. जो वहन किया जाने को हो। |
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वहम :
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पुं० [अ०] मन में प्रायः बनी रहनेवाली कोई ऐसी असंगत या निराधार धारणा जिसके फलस्वरूप अपने अनिष्ट या हानि की संभावना जान पड़ती हो। झूठा शक। मिथ्या संदेह। |
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वहमी :
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वि० [अ०] १. जिसके मन में प्रायः कोई वहम बना रहता हो २. शक्की। |
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वहला :
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स्त्री० [सं० वहल+टाप्] १. शतपुष्पा। २. बड़ी इलायची। ३. दीपक राग की एक रागिनी। |
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वहशत :
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स्त्री० [अ०] १. वहशी अर्थात् जंगली होने की अवस्था या भाव। जंगलीपन। बर्वरता। २. उजड्डपन। ३. पागलपन। बावलापन। ४. अधीरता और विफलता के कारण होनेवाला मानसिक विक्षेप। पागलों का सा आचार-व्यवहार। मुहावरा–वहशत सवार होना=किसी प्रबल मनोवेग के कारण सहसा पागलपन का सा काम करने को उतारू होना। ५. किसी स्थान के उजाड़ या सुनसान होने के कारण छाई रहनेवाली उदासी। खिन्न करनेवाला सन्नाटा। ६. आकार-प्रकार, रूप-रंग आदि का डरावनापन। क्रि० प्र०–छाना।–बरसना। |
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वहशियाना :
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वि० [अ०] वहशियों की तरह का। |
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वहशी :
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वि० [अ०] १. जंगल में रहनेवाला। जंगली। वन्ध। २. (पशु) जो जंगल में घूमता-फिरता और रहता हो। ‘पालतू’ का विपर्याय। ३. (व्यक्ति) जो परम असभ्य तथा असंस्कृत हो। बर्बर। |
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वहाँ :
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अव्य० [हिं० वह] १. उस स्थान में। उस जगह। २. उस अवसर, बिंदु या स्थिति पर। जैसे–उसे इतना बढ़कर रूक जाना चाहिए था, पर वह वहाँ रुका नहीं, बल्कि आगे बढ़ता चला गया। |
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वहा :
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स्त्री० [सं० वह+टाप्] १. नदी। २. पानी की धारा या बहाव। |
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वहाबी :
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पुं० [अ०] १. मौलवी अब्दुलवहाव का चलाया हुआ एक मुस्लिम सम्प्रदाय जो कुरान को मानता है पर हदीसों को नहीं मानता। २. उक्त सम्प्रदाय का अनुयायी। |
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वहा-मापक :
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पुं० [सं०] दे० ‘धारावेगमापी’। |
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वहि :
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अव्य० [सं०√वह्+इसुन्] जो अन्दर न हो। बाहर। (इसके यौ० के लिए दे० ‘बहि’ के यौ०) |
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वहित :
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भू० कृ० [सं० अव√हा (त्याग करना)+क्त, अलोप] १. बहन किया हुआ या ढोया हुआ। २. ज्ञात। ३. विख्यात। ४. प्राप्त। |
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वहित्र :
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पुं० [सं०] वहन करने का उपकरण। जैसे–गाड़ी जहाज, नाव रथ आदि। |
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वहिनी :
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स्त्री० [सं० वह+इनि+ङीष्] नौका। नाव। |
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वहिरंग :
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वि० पुं०=वहिरंग। |
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वहिर्गत :
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वि०=बहिर्गत। |
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वहिर्द्वार :
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पुं०=बहिर्द्वार। |
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वहिर्भूत :
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वि०=बहिर्भूत (बहिर्गत)। |
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वहिष्करण :
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पुं०=बहिष्करण। |
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वहिष्कार :
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पुं०=बहिष्कार। |
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वहिष्ठ :
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वि० [सं० वह+इष्ठन्] अधिक भार वहन करनेवाला। |
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वहीं :
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अव्य० [हिं० वहाँ+ही] १. उसी स्थान पर। उसी जगह। २. उसी बिंदु समय या स्थिति पर। |
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वही :
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सर्व० [हिं० वह+ही] उस वस्तु या तृतीय व्यक्ति की ओर निश्चित रूप से संकेत करनेवाला सर्वनाम,जिसके संबंध में कुछ कहा जा चुका हो। निश्चित रूप से पूर्वोक्त। जैसे– यह वही किताब है जो तुम ले गये थे। स्त्री० [अ०] ईश्वर की कही हुई बात। देव-वाणी। |
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वहीरु :
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पुं० [सं०] १. रक्तवाहिनी नाड़ियों का एक वर्ग। शिरा। २. स्नायु ३. माँसपेशी। पट्ठा। |
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वहूदक :
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पुं० [सं०ब०स०] चार प्रकार के संन्यासियों में से एक। |
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वह्रि :
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पुं० [सं०√वह (धारण करना)+नि] 1,०अग्नि। २. तीन प्रकार की अग्नियों के आधार पर तीन की संख्या का सूचक शब्द। ३. चित्रक। चीता। ४. भिलावाँ। ५. मित्रविंदा के गर्भ से उत्पन्न श्रीकृष्ण का एक पुत्र। |
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वह्रिकर :
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पुं० [सं० वह्रि√कृ+अच्] १. विद्युत। बिजली। २. जठ राग्नि। ३. चकमक पत्थर। |
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वह्रिकुमार :
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पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार के देवगण। |
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वह्रि-दैवत :
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वि० [सं० ब० स०] अग्निपूजक। |
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वह्रिनी :
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स्त्री० [सं०] जटामासी। |
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वह्रिवीज :
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पुं० [सं०] १. स्वर्ण। सोना। २. बिजौरा नीबू। |
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वह्रिभूतिक :
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पुं० [सं० ब० स०] चाँदी। |
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वह्रिभोग :
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पुं० [सं० ष० त०] घी। |
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वह्रिमंथ :
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पुं० [सं०]=अग्निमंथ वृक्ष। |
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वह्रिमित्र :
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पुं० [सं०] वायु। हवा। |
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वह्रिमुख :
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पुं० [सं०] देवता। |
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वह्रिरेता (तस्) :
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पुं० [सं०] शिव। |
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वह्रिलोह :
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पुं० [सं०] ताभ्र। ताँबा। |
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वह्रिलोहक :
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पुं० [सं०] काँसा। |
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वह्रिशिखा :
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स्त्री० [सं० ब० स०] १. कलिहारी या कलियारी नाम का विष। २. घी। ३. प्रियवंद। ४. गजपीपल। |
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वह्रिश्वरी :
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स्त्री० [सं० ष० त०] लक्ष्मी। |
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वह्य :
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पुं० [सं०√वह् (ढोना)+मक्] १. वाहन। यान। २. गाड़ी। शकट। वि० वहनीय। |
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वह्यक :
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वि० [सं० वह्य+कन्]=वाहक। |
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