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वैर  : पुं० [सं० वीर+अण्] शत्रुता का वह उत्कृष्ट या तीव्र रूप जो प्रायः जाग्रत रहता और बहुत कुछ स्थायी या स्वाभाविक होता है। विशेष—‘वैर’ या ‘शत्रुता’ का अंतर जानने के लिए देखें ‘शत्रुता’ का विशेष।
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वैरक्त  : पुं० [सं० विरक्त+अण्] विरक्त होने की अवस्था या भाव। विरक्तता।
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वैरता  : स्त्री० [सं० वैर+तल्+टाप्] वैर का भाव। पूर्ण शत्रुता।
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वैरल्य  : पुं० [सं० विरल+ष्यञ्] १. विरलता। २. एकांत स्थान।
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वैर-शुद्धि  : स्त्री० [सं०] वैरी से उसके लिए किये गए अपकार का बदला लेने के लिए उसका कोई अपकार करना। वैर का बदला चुकाना।
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वैरस्य  : पुं० [सं० विरस+ष्यञ्] १. विरक्त होने का भाव। विरसता। २. अनिच्छा।
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वैराग  : पुं०=वैराग्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वैरागिक  : वि० [सं० विराग+ठञ्-इक] १. विराग संबंधी। २. विराग उत्पन्न करनेवाला।
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वैरागी  : वि० [सं० वैराग्य+इनि] जिसके मन में विराग उत्पन्न हुआ हो। जिसका मन संसार की ओर से हट गया हो। विरक्त। जैसे—बंदा वीर वैरागी। पुं० उदासीन वैष्णवों का एक संप्रदाय।
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वैराग्य  : पुं० [सं० विराग+ष्यञ्] १. वह अवस्था जिसमें मन में किसी के प्रति राग-भाव नहीं होता। २. मन की वह वृत्ति जिसके कारण संसार की विषय-वासना तुच्छ प्रतीत होती है और व्यक्ति संसार की झंझटें तोड़कर एकांत में रहता है और ईश्वर का भजन करता है। विरक्ति।
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वैराज  : पुं० [सं० विराज+अण] १. विराट् पुरुष। परमात्मा। २. एक मनु का नाम। ३. पुराणानुसार सत्ताइसवें कल्प का नाम। ४. पितरों का एक वर्ग। ५. वैराग्य। (दे०)।
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वैराजक  : पुं० [सं० वैराज+कन्, अथवा वि√राज् (सुशोभित होना)+ण्वुल्-अक+अण्] उन्नीसवाँ कल्प (पुरा०)।
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वैराज्य  : पुं० [सं० विराज+ष्यञ्] १. ऐसी शासन-प्रणाली जिसमें दो प्रभु-सत्ताएँ किसी राष्ट्र का शासन सूत्र सँभाले रहती हैं। २. ऐसा देश जिसमें उक्त प्रकार की शासन-प्रणाली प्रचलित हो।
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वैराट  : वि० [सं० विराट+अण्] १. विराट संबंधी। विराट का। २. लंबा-चौड़ा। विस्तृत। पुं० १. महाभारत का विराट पर्व। २. बीरबहूटी। इन्द्रगोप।
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वैराटक  : पुं० [सं० वैराट+कन्] शरीर के किसी अंग में होनेवाली जहरीली गाँठ या गिलटी। (सुश्रुत)
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वैरिंचि  : वि० [सं० विरिच+इञ्] विरिंचि या ब्रह्मा-संबंधी। ब्रह्मा का।
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वैरिंच्य  : पुं० [सं० विरिंच+ष्यञ्] ब्रह्मा की संतान सनक सनन्दन आदि ऋषि।
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वैरि  : पुं० [सं० वैर+इनि] वैरी शत्रु। दुश्मन।
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वैरी  : पुं० [सं० वैरिन्] वह जिसके साथ वैर-भाव हो। दुश्मन।
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वैरूपाक्ष  : पुं० [सं० विरूपाक्ष+अण्] विरूपाक्ष के गोत्र या वंश में उत्पन्न।
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वैरूप्य  : पुं० [सं० विरूप+ष्यञ्] विरूप होने की अवस्था या भाव। विरूपता। २. विकृति। ३. बेढंगापन।
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वैरेचन  : वि० [सं० विरेचन+अण्] विरेचन-संबंधी। विरेचन का।
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वैरोचन  : वि० [सं० विरोचन+अण्] १. विरोचन से उत्पन्न। २. सूर्यवंश में उत्पन्न। पुं० १. बुद्ध का एक नाम। २. राजा बलि का एक नाम। ३. सूर्य का एक नाम। ४. सूर्य का एक पुत्र। ४. अग्नि का एक पुत्र।
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वैरोचनि  : पुं० [सं० विरोचन+इञ्] १. बुद्ध का एक नाम। २. राजा बलि का एक नाम। ३. सूर्य का एक पुत्र।
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वैरोद्धार  : पुं० [सं० ष० त०]=वैर-शुद्धि।
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वैरोधक, वैरोधिक  : वि० [सं०] अनुकूल न पडनेवाला अथवा विरोधी सिद्ध होनेवाला।
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