शब्द का अर्थ
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शीत :
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वि० [√श्यै (स्पर्श करना)+क्त] १. ठंढ़ा। शीतल। २. शिथिल। सुस्त। पुं० १. जाड़ा। ठंढ़। सरदी। २. जाड़े का मौसम। ३. जुकाम। प्रतिश्याय। ४. कपूर। ५. दालचीनी। ६. बेंत। ७. लिसोड़ा। ८. नीम। ९. ओस। १॰. कोहरा। तुषार। ११. पित्तपापड़ा। १२. एक प्रकार का चंदन। १३. जल। पानी। |
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शीतक :
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वि० [शीत्√कृ (करना)+ड] १. ठंड या ठंडक उत्पन्न करनेवाला। २. आलसी। पुं० [सं० शीत√कृ (करना)+ड] १. शीतकाल। जाड़े का मौसम। २. बिच्छू। ३. वन-सनई। ४. एक प्रकार का चन्दन। ५. शीत विशेषतः ठंडक उत्पन्न करनेवाला एक यंत्र जिससे गर्मी के दिनों में कमरे ठंढे रखे जाते हैं। (कूलर)। |
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शीत-कटिबंध :
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पुं० [सं० ब० स०] भूगोल में पृथ्वी के वे कल्पित विभाग जो भूमध्यरेखा से २३½ अंश उत्तर के बाद और २३½ अंश दक्षिण के बाद पड़ते हैं और जिनमें अपेक्षया अधिक सरदी पडती है। (फरीजिड जोन)। |
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शीतकर :
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पुं० [सं० ब० स०] १. ठंडी किरणोंवाला, अर्थात् चंद्रमा। २. कपूर। वि० ठंढ़ा या शीतल करनेवाला। |
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शीत-काल :
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पुं० [सं० ष० त०] १. हेमंत ऋतु। २. सरदी के दिन। जाड़े का मौसम। |
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शीत-किरण :
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वि० [सं० ब० स०] शीतल किरणोंवाला। पुं० चन्द्रमा। |
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शीत-किरणी :
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पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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शीत-कृच्छ् :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] मिताक्षरा के अनुसार एक प्रकार का व्रत। |
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शीतक्षार :
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पुं० [सं० कर्म० स०] शुद्ध सुहागा। |
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शीतगंध :
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पुं० [सं० ब० स०] चंदन। संदल। |
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शीतगात्र :
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पुं० [सं० ब० स०] शरीर के ठंढ़े पड़ने का एक रोग। |
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शीतगु :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। |
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शीतचंपक :
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पुं० [सं०] १. दर्पण। शीशा। २. दीपक। दीआ। |
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शीत-च्छाय :
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वि० [ब० स०] जिसकी छाया शीतल हो। पुं० बड़ का पेड़। जिसकी छाया ठंडी होती है। |
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शीत-ज्वर :
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पुं० [सं० मध्य० स०] जाड़ा देकर आनेवाला बुखार। विषम ज्वर। जूड़ी। |
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शीत-तरंग :
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स्त्री० [सं०] १. शीतकाल में सहसा तापमान के गिरने से होनेवाली ऐसी उग्र ठंढ जिसमें हाथ-पैर गलने लगते हैं। २. किसी दिशा में पड़नेवाली शीत की वह तरंग जिससे दो चार दिनों के लिए सरदी बहुत बढ़ जाती है। (कोल्ड-वेव) |
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शीतता :
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स्त्री० [सं० शीत+तल्-टाप्] १. शीत का भाव या धर्म। शीतत्व। ठंढ़ापन। २. सरदी। |
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शीतत्व :
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पुं० [सं० शीत+त्व] शीतता। |
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शीतदंत :
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पुं० [सं० ब० स०] एक रोग जिसमें ठंढ़ी हवा तथा ठंडा पानी दाँतों में लगने के फलस्वरूप पीड़ा होती है। |
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शीत-दीधिति :
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पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा जिसकी किरणें शीतल होती है। |
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शीतद्युति :
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पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा। |
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शीतन :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० शीतित] ठंढ़ा करने की क्रिया या भाव। (कूलिंग)। |
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शीतपर्णी :
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स्त्री० [सं० ब० स०] अर्कपुष्पी। |
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शीतपाकी :
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स्त्री० [सं० ब० स०] १. काकोली नामक अष्टवर्गीय ओषधि। २. घुँघची। ३. अतिबला। ककही। |
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शीतपित्त :
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पुं० [सं० ब० स०] शीतकाल में होनेवाला एक प्रकार का रोग जिमसें अचानक सारे शरीर में छोटे-छोटे चकते निकल आते हैं और उनमें बहुत तेज खुजली होती है। जुड़-पित्ती (यूरिकेरिआ)। |
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शीतपुष्प :
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पुं० [सं० ब० स०] १. छरीला। शैलेय। २. केवटी मोथा। ३. सिरिस का पेड़। |
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शीतपुष्पा :
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स्त्री० [सं० शीतपुष्प—टाप्] ककही। अतिबला। |
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शीत-पूतना :
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स्त्री० [सं० मध्यम० स०] भावप्रकाश के अनुसार एक प्रकार का बालग्रह या बालरोग। |
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शीतप्रभ :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चंद्रमा। २. कपूर। |
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शीतफल :
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पुं० [सं० ब० स०] १. गूलर। २. पीलू। ३. अखरोट। ४. आँवला। ५. लिसोड़ा। |
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शीतभानु :
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पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा। |
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शीत-मयूख :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। |
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शीत-मरीचि :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। |
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शीत-मेह :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] एक प्रकार का प्रेमह रोग। |
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शीतमेही (हिन्) :
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पुं० [सं० शीतमेह+इनि] वह जिसे शीत मेह रोग हो। |
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शीतयुद्ध :
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पुं० [सं० मध्य० स०] राष्ट्रों के पारस्परिक व्यवहार में वह स्थिति जिसमें प्रत्यक्ष रूप से युद्ध तो नहीं होता, फिर भी प्रत्येक राष्ट्र अपने आपको प्रभावशाली तथा सशक्त बनाने के लिए ऐसी राजनीतिक चालें चलता है जिनके कारण दूसरे राष्ट्रों के सामने बड़ी-बड़ी उलझनें खडीं हो जाती है। (कोल्ड वार) |
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शीत-रश्मि :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। |
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शीत-रस :
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पुं० [सं० ब० स०] प्राचीन भारत में ईख के कच्चे रस की बनी हुई एक प्रकार की मदिरा। |
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शीतरुच :
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पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा। |
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शीतरुह :
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पुं० [सं० ब० स०] सफेद कमल। |
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शीतल :
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वि० [सं० शीत√ला+क] १. शीत उत्पन्न करनेवाला। सर्द। ठंडा। ‘उष्ण’ का विपर्याय। २. जिसमें कुछ कुछ ठंढक हो। जैसे—शीतल समीर। ३. जो शीतलता या ठंढक प्रदान करता हो। ४. जिसमें आवेश न हो। शांत। ५. प्रसन्न। ६. संतुष्ट। पुं० १. कसीस। २. छरीला। ३. चन्दन। ४. मोती। ५. उशीर। खस। ६. बनसनई। ७. लिसोढ़ा। ८. चंपा। ९. राल। १॰. पद्यकाठ। ११. पीत। चंदन। १२. भीमसेनी कपूर। १३. शाल वृक्ष। १४. हिम। १५. मटर। १६. चन्द्रमा। १७. जैनों का एक प्रकार का व्रत। |
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शीतलक :
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पुं० [सं० शीतल√कन्] १. मरुआ। मरुवक। २. कुमुद। वि० शीतल करनेवाला। |
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शीतल-चीनी :
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स्त्री० [सं० शीतल+हि० चीनी] कबाब चीनी। |
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शीतलच्छाय :
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वि० [सं० ब० स०]=शीतच्छाय। |
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शीतलता :
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स्त्री० [सं० शीतल+तल्-टाप्] १. शीतल होने की अवस्था, धर्म गुण या भाव। २. जड़ता। |
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शीतलताई :
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स्त्री०=शीतलता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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शीतलत्व :
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पुं० [सं० शीतल+त्व]=शीतलता। |
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शीतल-पाटी :
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स्त्री० [सं०+हि] एक प्रकार की चिकनी पतली और बढ़िया चटाई। |
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शीतल-भंडार :
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पुं० [सं० ब० स०] १. विशेष प्रकार से निमित्त तथा यंत्रों आदि से संचालित वह भंडार गृह जिसका तापमान कृत्रिम रूप से कम कर दिया जाता है तथा जिसके फलस्वरूप उसमें रखी हुई चीजें ताप के कुप्रभाव से सुरक्षित रहती है। ठंढा गोदाम। (कोल्ड स्टोरेज)। २. शीतागार। सर्दखाना। |
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शीत-लहरी :
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स्त्री० [सं०]=शीत तरंग (देखें)। |
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शीतला :
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स्त्री० [सं० शीतल-टाप्] १. एक प्रसिद्ध रोग जिसमें शरीर पर दाने या फफोले निकल आते हैं। २. उक्त की अधिष्ठात्री देवी। ३. नीली दूब। ४. अर्क पुष्पी। |
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शीतला-वाहन :
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पुं० [सं० ष० त०] गधा, जो शीतला देवी का वाहन कहा गया है। |
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शीतला-षष्ठी :
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स्त्री० [ष० त०] माघ शुक्ल षष्ठी जो शीतला देवी के पूजन की तिथि कही गई है। |
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शीतलाष्टमी :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी जो शीतलादेवी के पूजन की तिथि कही गई है। |
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शीतली :
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स्त्री० [सं० शीतल-ङीष्] १. जल में होनेवाला एक प्रकार का पौधा। २. श्रीवल्ली। ३. चेचक या शीतला नामक रोग। |
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शीतवल्ली :
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स्त्री० [सं० ब० स०] नीली दूब। |
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शीतवासा :
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स्त्री० [सं० ब० स०] जूही। यूथिका। |
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शीत-वीर्य :
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पुं० [सं० ब० स०] १. पदुम काठ। २. पाषाण-भेद नामक वनस्पति। ३. पित्त-पापड़ा। ४. पाकर वृक्ष। ५. नीली दूब। ६. बच। वि० (पदार्थ) जो खाने पर शरीर में ठंढक लाता हो। ठंढ़ी तासीरवाला। |
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शीत-शिव :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. सेंधा नमक। २. छरीला। पत्थरफूल। ३. सोआ नामक साग। ४. शमी वृक्ष। ५. कपूर। |
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शीत-शिवा :
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स्त्री० [सं० शीत-शिव-टाप्] शमी वृक्ष। २. सौंफ। |
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शीतशूक :
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पुं० [सं० ब० स०] जौ। यव। |
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शीत-संग्रह :
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पुं० [सं० ष० त० स०]=शीतल भंडार। |
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शीत-सन्निपात :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] एक प्रकार का सन्निपात जिसमें शरीर सुन्न और ठंढ़ा हो जाता है। |
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शीत-सह :
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पुं० [सं० शीत√सह् (सहन करना)+अच्] पीलू। झल्ल वृक्ष। वि० जिसमें शीत अर्थात् ठंढ या सरदी की विशेष क्षमता हो। |
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शीत-सहा :
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स्त्री० [सं० शीतसह-टाप्] १. शेफालिका। २. नेवारी। ३. मोतिया। बेला। ४. चमेली। ५. पीलू वृक्ष। |
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शीत-सीमांत :
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पुं० दे० ‘शीताग्र’। |
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शीतांग :
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पुं० [सं० ब० स०] शीत सन्निपात। वि० ठंढे अंगोंवाला। |
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शीतांगी :
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स्त्री० [सं० शीतांग-ङीष्] हंसपदी लता। |
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शीतांशु :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। |
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शीता :
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स्त्री० [सं० शीत-टाप्] १. सरदी। ठंढ़। २. एक प्रकार की दूब। ३. शिल्पिका नामक घास। ४. अमलतास। |
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शीतागार :
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पुं० [सं०]=शीतल भंडार। |
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शीताग्र :
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पुं० [सं० ष० त०] किसी ओर से आनेवाली शीतल वायु की धारा का वह अग्र भाग जो गरम वायु के सामने आ पड़ने के कारण कुछ नीचे दब जाता है और शीत की हल्की तह के रूप में किसी प्रदेश के ऊपर से होता हुआ आगे बढ़ता है (कोल्ड फ्रन्ट)। विशेष—जब यह शीताग्र किसी प्रदेश के ऊपर से होकर गुजरता है तब उस प्रदेश में तापमान और वायुमान गिर जाता है,आँधी आती और वर्षा होती है। |
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शीतातप :
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पुं० [सं० द्व० स०] शीत और आतप दोनों। जाड़ा और गरमी। |
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शीताद :
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पुं० [सं० शीत-आ√दा (देना)+का] एक प्रकार का रोग जिसमें मसूड़ों से दुर्गंध निकलने लगती है। |
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शीताद्रि :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] हिमालय पर्वत। |
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शीताद्य :
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पुं० [सं० शीताद+यत्] शीतज्वर। जड़ी बुखार। |
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शीताभ :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। |
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शीतालु :
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वि० [सं० शीत+आलुच्] १. शीत के फलस्वरूप जो काँप रहा हो। २. शीत से संत्रस्त। |
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शीताश्म (मन्) :
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पुं० [सं० कर्म० स०] चन्द्रकांत मणि। |
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शीतोदक :
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पुं० [सं० ब० स०] एक नरक का नाम। |
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शीतोष्ण :
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वि० [सं० द्व० स०] १. ठंढा और गरम। १. कुछ-कुछ ठंढा और कुछ-कुछ गरम। |
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शीतकार :
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पुं०=सीत्कार। |
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