शब्द का अर्थ
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शुक्ति :
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स्त्री० [सं०√शुच् (शोकादि)+क्तिन्] १. सीप। सीपी। २. सतुही। ३. शंख। ४. बेर। ५. नखी नामक गन्ध द्रव्य। ६. अर्श या बवाशीर नामक रोग। ७. कापालिकों के हाथ में रहनेवाला कपाल। ८. अस्थि। हड्डी। ९. दो कर्ष या चार तोले की एकतौल। १॰. आँख का एक रोग जिसमें मांस की एक बिंदी सी निकल आती है। ११. घोड़े के गरदन की एक भौंरी। |
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शुक्तिक :
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पुं० [सं० शुक्ति+कन्] १. एक प्रकार का नेत्र रोग। २. गन्धक। |
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शुक्तिका :
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स्त्री० [सं० शुक्तिक-टाप्] १. सीप। २. चुक नामक साग। ३. आँख का शुक्ति नामक रोग। |
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शुक्तिज :
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पुं० [सं० शुक्ति√जन् (उत्पन्न करना)+ड] मोती। वि० शुक्ति अर्थात् सीप से उत्पन्न। |
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शुक्तिपुट :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. सीप का खोल। २. शंख। ३. सुतुही नामक जल-जन्तु तथा उसका खोल। |
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शुक्तिबीज :
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पुं० [सं० ष० त० स०] मोती। |
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शुक्तिमणि :
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पुं० [ष० त० स०] मोती। |
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शुक्तिमती :
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स्त्री० [सं० शुक्ति+मतुप्-ङीष्] १. एक प्राचीन नदी। २. चेदि राज्य की राज्यधानी। |
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शुक्ति-वधू :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. सीप। सीपी। २. सीपी में रहनेवाला कीड़ा। |
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