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सूक  : पुं० [सं०√सू (प्रेरणा देना)+क्विप्–कन्] १. बाण। २. वायु। हवा। ३. कमल। पुं० १.=शूक। २.=शुक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सूकना  : अ०=सूखना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सूकर  : पुं० [सं० सू√कृ (करना)+अच्] [स्त्री० सूकरी] १. सूअर। शूकर। २. एक प्रकार का हिरन। ३. कुम्हार। ४. सफेद धान। ५. पुराणानुसार एक नरक का नाम। विशेष–‘सूकर’ के यौ० के लिए देखो ‘शूकर’ के यौ०।
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सूकर—खेत  : पुं० =शूकर—क्षेत्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सूकरी  : स्त्री० [सं० सूकर–ङीप्] १. मादा सूअर। सूअरी। शूकरी। २. बराहक्रांता। ३. बाराहीकंद। ४. बाराही देवी। ५. एक प्रकार की चिड़िया।
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सूकरेष्ट  : पुं० [सं० ब० स०] १. कसेरू। २. एक प्रकार का पक्षी।
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सूका  : पुं० [सं० संपादक=चतुथाँश सहित] [स्त्री० सूकी] चार आने (अर्थात २५ नये पैसे) के मूल्य का सिक्का। चवन्नी। वि० =सूखा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] प्रभात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) मुहा०–सूका उगना=सबेरा होना।
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सूकी  : स्त्री० [हिं० सूका=चवन्नी ?] रिश्वत। घूस।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० =सूका (चवन्नी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सूक्त  : वि० [सं० सु√वच् (कहना)+क्त] उत्तम रूप से या भली भाँति कहाँ हुआ। पुं० १. उत्तम रूप से या भली—भाँति कही हुई बात। अच्छी उक्ति। सूक्ति। २. ऋचाओं या वेद—मंत्रों का विशिष्ट वर्ग या विभाग। जैसे–देवी—सूक्त, श्रीसूक्त आदि।
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सूक्तचारी (रिन्)  : वि० [सं० सूक्त√चर् (प्राप्तादि)+णिनि] उत्तम वाक्य या परामर्श माननेवाला।
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सूक्तदर्शी (र्शिन्)  : पुं० [सं० सूक्त√दुश् (देखना)+णिनि] वह ऋषि जिसने वेदमंत्रों का अर्थ किया हो। मंत्रद्रष्टा।
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सूक्तद्रष्टा  : पुं० [सं० ष० त०] दे० ‘सूक्त—दर्शी’।
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सूक्ता  : स्त्री० [सं० सूक्त–टाप्] मैना। सारिका।
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सूक्ति  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] अच्छे और सुन्दर ढंग से कही हुई कोई बढ़िया बात। अच्छी उक्ति।
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सूक्तिक  : पुं० [सं० सूक्ति+कन्] एक प्रकार की झाँझ।
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सूक्षम  : वि० , पुं० =सूक्ष्म।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सूक्ष्म  : वि० [सं०√सूक् (चुगुली करना)+स्मन्—मन्—सुकुवी] [स्त्री० सूक्ष्मा, भाव० सूक्ष्मता] १. बहुत छोटा, पतला या थोड़ा। २. जो अपनी बारीकी के कारण सबके ध्यान या समझ में जल्दी न आ सके। बारीक। (सप्ल) ३. बहुत ही छोटे—छोटे अंगों या उनकी प्रक्रिया, विचार आदि से संबंध रखनेवाला। (फाइन) पुं० १. साहित्य में एक अलंकार जिसमें किसी सूक्ष्म चेष्टा या सांकेतिक व्यापार से ही अपने मन का भाव प्रकट करने का, अथवा किसी के प्रश्न या संकेत का उत्तर देने का, उल्लेख होता है। यथा–लखि गुरुजन बिच कमल सौं सीस छुवायौ स्वाम। हरि सन्मुख करि आरसी हिये लगाई काम।–बिहारी। २. योग में, तीन प्रकार की सिद्धियों में से एक प्रकार की सिद्धि। (शेष दो प्रकार निरवद्य और सावद्य कहलाते हैं।) ३. दे० ‘सूक्ष्म शरीर’। ४. परमाणु। ५. परब्रह्म। ६. शिव। ७. जैनों के अनुसार एक प्रकार का कर्म जिसके उदय होने से मनुष्य सूक्ष्म जीवों की योनि में जन्म लेता है। ८. वह ओषधि जो रोम—कूप के मार्ग से शरीर में प्रवेश करे। जैसे–नीम, शहद, रेंडी का तेल, सेंधा नमक आदि। ९. बृहत्संहिता के अनुसार एक प्राचीन देश। १॰. जीरा। ११. सुपारी। १२. निर्मला। १३. रीठा। १४. छल। कपट।
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सूक्ष्म-कोण  : पुं० [सं० मध्य० स०] ज्यामिति में, वह कोण जो समकोण से छोटा हो।
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सूक्ष्म-घंटिका  : स्त्री० [सं०] सनई। क्षुद्र शणपुष्पी।
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सूक्ष्म-तंडुल  : पुं० [सं० ब० स०] १. पोस्त—दाना। खसखस। २. धूना। राल।
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सूक्ष्म-तंडुला  : स्त्री० [सं० सूक्ष्म—तंदुल–टाप्] १. पीपल। पिप्पली। २. धूना। राल।
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सूक्ष्मता  : स्त्री० [सं० सूक्ष्म+तल्–टाप्] सूक्ष्म होने की अवस्था, गुण या भाव। बारीकी।
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सूक्ष्म-तुंड  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का कीड़ा। (सुश्रुत)
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सूक्ष्मदर्शक यंत्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] सूक्ष्मवीक्षक यंत्र। (दे० )
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सूक्ष्म-दर्शिता  : स्त्री० [स० सूक्ष्मदर्शी+तल–टाप्] सूक्ष्मदर्शी होने की अवस्था, गुण या भाव। सूक्ष्म यी बारीक बात सोचने—समझने का गुण।
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सूक्ष्मदर्शी  : वि० [सं० सूक्ष्म√दृश् (देखना)+णिनि] १. सूक्ष्म बातें या विशेष समझनेवाला। बारीक बातें सोचने—समझनेवाला। कुशाग्र—बुद्धि। २. फलतः विशेष बुद्धिमान् या समझदार। पुं० एक प्रकार का यंत्र जिसके द्वारा कोई बहुत छोटी चीज या उसका कोई अंश बहुत बड़े आकार का दिखाई देता है। (माइक्रोस्कोप)
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सूक्ष्म-दल  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार की सरसों। देवसर्षप।
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सूक्ष्म-दृष्टि  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] ऐसी दृष्टि जिससे बहुत ही सूक्ष्म बातें भी दिखाई दें या समझ में आ जायें। वि० उक्त प्रकार की दृष्टि रखनेवाला।
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सूक्ष्म-देह  : पुं० =सूक्ष्म-शरीर।
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सूक्ष्म-देही (हिन्)  : वि० [सं० सूक्ष्म—देह+इनि] सूक्ष्म शरीरवाला। जिसका शरीर बहुत ही सूक्ष्म या छोटा हो। पुं० परमाणु।
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सूक्ष्म-नाभ  : पुं० [सं० ब० स०] विष्णु का एक नाम।
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सूक्ष्म-पत्र  : पुं० [सं० ब० स०] १. धनिया। धन्याक। २. बन—तुलसी। ३. लाल ईख। ४. काली जीरी। ५. देव—सर्षप। ६. बेर। ७. माची—पत्र। ८. कुकरौंदा। ९. कीकर। बबूल। १॰. धमासा। ११. उड़द। १२. अर्कपत्र।
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सूक्ष्म-पत्रक  : पुं० [सं० सूक्ष्मपत्र+कप्] १. पित्तपापड़ा। पर्पटक। २. बन—तुलसी।
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सूक्ष्म-पत्रा  : स्त्री० [सं० सूक्ष्मपत्र–टाप्] १. बन—जामुन। २. धमासा। ३. बृहती। ४. शतमूली। ५. अपराजिता। ६. जीरे का पौधा। ७. बला।
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सूक्ष्मपत्रिका  : स्त्री० [सं० सूक्ष्मपत्रक–टाप्—इत्व] १. सौफ। शतपुष्पा। २. शतावर। ३. छोटी पत्तियोंवाली ब्राह्यी। ४. पोई नाम का साग।
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सूक्ष्मपत्री  : स्त्री० [सं० सूक्ष्मपत्र–ङीप्] १. आकाश मांसी। २. शतावर।
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सूक्ष्मपर्णा  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. विधारा। २. वन—भंटा। बृहती। ३. छोटी सनई।
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सूक्ष्म-पर्णी  : स्त्री० [सं० सूक्ष्मपर्ण–ङीप्] रामतुलसी। रामदूती।
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सूक्ष्म-पाद  : वि० [सं० ब० स०] छोटे पैरोंवाला। जिसके पैर छोटे हों।
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सूक्ष्म-पिप्पली  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] जंगली पीपल। बन-पिप्पली।
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सूक्ष्म-पुष्पा  : स्त्री० [सं० ब० स] सनई। शण—पुष्पी।
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सूक्ष्म-पुष्पी  : स्त्री० [सं० सूक्ष्म—पुष्प–ङीप्] १. शंखिनी। २. यवतिक्ता नाम की लता।
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सूक्ष्म-फल  : पुं० [सं० ब० स०] १. लिसोड़ा। २. बेर।
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सूक्ष्मफला  : स्त्री० [सं० सूक्ष्म—फल–टाप्] १. भुईं आँवला। भूम्यामलकी। २. मालकंगनी। ३. तालीशपत्र।
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सूक्ष्म-बदरी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] झड़बेरी। भूबदरी।
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सूक्ष्म-बीज  : पुं० [सं० ब० स०] पोस्तदाना। खसखस।
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सूक्ष्म-भूत  : पुं० [सं० कर्म० स०] आकाश, अग्नि, जल आदि ऐसे शुद्ध भूत जिनका पंजीकरण न हुआ हो।
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सूक्ष्म-मति  : वि० [सं० ब० स०] सूक्ष्म और तीव्र बुद्धिवाला।
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सूक्ष्म—मूला  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. जीवती। २. ब्राह्मी।
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सूक्ष्म—रूपी  : पुं० [सं० सूक्ष्मरूप+इनि] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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सूक्ष्म—लोभक  : पुं० [सं०] जैन मतानुसार मुक्ति की चौदहवीं अवस्थाओं में से दसवीं अवस्था।
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सूक्ष्मवल्ली  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. ताम्रवल्ली। २. जंतुका। ३. करेली।
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सूक्ष्म—वीक्षक  : वि० [सं० ष० त०] बहुत ही सूक्ष्म चीजें देखनेवाला। पुं० =सूक्ष्मदर्शी (यंत्र)।
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सूक्ष्म—शरीर  : पुं० [सं० कर्म० स०] वेदांत दर्शन के अनुसार जीव या प्राणी के तीन के तीन प्रकार के शरीरों में से एक जो उसके स्थूल शरीर के ठीक अनुरूप परन्तु बहुत छोटा और अँगूठे के बराबर होता है। लिंग शरीर। विशेष–यह माना जाता है कि मृत्यु के समय यह शरीर स्थूल शरीर से निकलकर परलोक में अपने पाप—पुण्य का फल भोगता है। यह भी माना जाता है कि आत्मा इसी शरीर से आवृत्त रहती है। शेष दो कारण—शरीर और स्थूल—शरीर कहलाते हैं।
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सूक्ष्म—शर्करा  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] बालू। रेत।
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सूक्ष्म—शाक  : पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार की बबरी जिसे जल—बबुरी भी कहते हैं।
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सूक्ष्म—शालि  : पुं० [सं० कर्म० स०] सोरों नामक धान।
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सूक्ष्म—स्फोट  : पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का कोढ़। विचर्चिका रोग।
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सूक्ष्मा  : स्त्री० [सं० सूक्ष्म—टाप्] १. जूही। यृथिका। २. छोटी इलायची। ३. मूसली। ४. छोटी जटामासी। ५. करुणी नाम का पौधा। ६. विष्णु की नौ अक्तियों में से एक।
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सूक्ष्माक्ष  : वि० [सं० ब० स०] सूक्ष्म—दृष्टिवाला। तीव्रद्रष्टि।
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सूक्ष्मात्मा (त्मन्)  : पुं० [सं० ब० स०] शिव। महादेव।
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सूक्ष्माह्वा  : स्त्री० [सं० ब० स०] महामेदा नामक अष्टवर्गीय ओषधि।
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सूक्ष्मेक्षिका  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. प्राचीन भारत में, किसी बात या विषय की ऐसी छानबीन या जाँच—पड़ताल जो बहुत सूक्ष्म दृष्टि से की गई हो। २. सूक्ष्म दृष्टि।
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सूक्ष्मैला  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] छोटी इलायची।
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