लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

बोअर-युद्ध


सन् 1897 से 1899 के बीच के अपने जीवन के दूसरे अनेक अनुभवो को छोड कर अब में बोअर-युद्ध पर आता हूँ। जब यह युद्ध हुआ तब मेरी सहानुभूति केवल बोअरो की तरफ ही थी। पर मैं मानता था कि ऐसे मामलो में व्यक्तिगत विचारो के अनुसार काम करने का अधिकार मुझे अभी प्राप्त नहीं हुआ हैं। इस संबंध के मन्थन-चिन्तन का सूक्ष्म निरीक्षण मैंने 'दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास' में किया हैं, इसलिए यहाँ नहीं करना चाहता। जिज्ञासुओं को मेरी सलाह है कि वे उस इतिहास के पढ़ जाये। यहाँ तो इतना कहना काफी होगा कि ब्रिटिश राज्य के प्रति मेरी वफादारी मुझे उस युद्ध में सम्मिलित होने के लिए जबरदस्ती घसीट ले गयी। मैंने अनुभव किया कि जब मैं ब्रिटिश प्रजाजन के नाते अधिकार माँग रहा हूँ तो उसी नाते ब्रिटिश राज्य की रक्षा में हाथ बटाना भी मेरा धर्म हैं। उस समय मेरी यह राय थी कि हिन्दुस्तान की सम्पूर्ण उन्नति ब्रिटिश साम्राज्य के अन्दर रहकर हो सकती हैं।

अतएव जितने साथी मिले उतनो को लेकर औऱ अनेक कठिनाइयाँ सहकर हमने घायलो की सेवा-शुश्रूषा करने वाली एक टुकड़ी खड़ी की। अब तक साधारणतया यहाँ के अंग्रेजो की यही घारणा थी कि हिन्दुस्तानी संकट के कामों में नहीं पड़ते। इसलिए कई अंग्रेज मित्रो ने मुझे निराश करने वाले उत्तर दिये थे। अकेले डॉक्टर बूथ ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। उन्होंने हमे घायल योद्धाओ की सार-संभाल करना सिखाया। अपनी योग्यता के विषय में हमने डॉक्टरी प्रमाण-पत्र प्राप्त किये। मि. लाटन और स्व. एस्कम्बे ने भी हमारे इस कार्य को पसन्द किया। अन्त में लड़ाई के लिए हमने सरकार से बिनती की। जवाब में सरकार ने हमे धन्यवाद दिया, पर यह सूचित किया कि इस समय हमे आपकी सेवा की आवश्यकता नहीं हैं।

पर मुझे ऐसी 'ना' से संतोष मानकर बैठना न था। डॉ. बूथ की मदद लेकर उनके साथ मैं नेटाल के बिशप से मिला। हमारी टुकड़ी में बहुत से ईसाई हिन्दुस्तानी थे। बिशप को मेरी यह माँग बहुत पसन्द आयी। उन्होंने मदद करने का वचन दिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book