लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

जाति से बाहर


माताजी की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर और पत्नी की गोद में कुछ महीनों का बालक छोड़कर मैं उमंगों के साथ बम्बई पहुँचा। पहुँच तो गया, पर वहाँ मित्रो ने भाई को बताया कि जून-जूलाई में हिन्द महासागर में तूफान आते हैं और मेरी यह पहली ही समुद्री यात्रा हैं, इसलिए मुझे दीवाली के बाद यानी नवम्बर में रवाना करना चाहिये। और किसी ने तूफान में किसी अगनबोट के डूब जाने की बात भी कही। इससे बड़े भाई घबराये। उन्होंने ऐसा खतरा उठाकर मुझे तुरन्त भेजने से इनकार किया और मुझको बम्बई में अपने मित्र के घर छोडकर खुद वापस नौकरी पर हाजिर होने के लिए राजकोट चले गये। वे एक बहनोई के पास पैसे छोड़ गये और कुछ मित्रों से मेरी मदद करने की सिफारिश करते गयो।

बम्बई में मेरे लिए दिन काटना मुश्किल हो गया। मुझे विलायत के सपने आते ही रहते थे।

इस बीच जाति में खलबली मची। जाति की सभा बुलायी गयी। अभी तक कोई मोढ़ बनिया विलायत नहीं गया था। और मैं जा रहा हूँ, इसलिए मुझसे जवाब तलब किया जाना चाहिये। मुझे पंचायत में हाजिर रहने का हुक्म मिला। मैं गया। मैं नहीं जानता कि मुझ में अचानक हिम्मत कहाँ से आ गयी। हाजिर रहने में मुझे न तो संकोच हुआ, न डर लगा। जाति के सरपंच के साथ दूर का रिश्ता भी था। पिताजी के साथ उनका संबंध अच्छा था। उन्होंने मुझसे कहा: 'जाति का ख्याल हैं कि तूने विलायत जाने का जो विचार किया हैं वह ठीक नहीं हैं। हमारे धर्म में समुद्र पार करने की मनाही हैं, तिस पर यह भी सुना जाता है कि वहाँ पर धर्म की रक्षा नहीं हो पाती। वहाँ साहब लोगों के साथ खाना-पीना पड़ता हैं।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book