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जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू

अरस्तू

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10541
आईएसबीएन :9781610000000

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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…

क्या ईश्वरीय सत्ता है ?

होमर की कृतियों में यूनानी धर्म का जो रूप प्रस्तुत किया गया है, वह एक आरंभिक अवस्था को नहीं चरम बिंदु को दर्शाता है। वस्तुतः होमर के समय तक यूनानी धर्म ने अपना पूर्ण विकसित रूप धारण कर लिया था। ग्रंथो में धर्म का जो रूप देखने को मिलता है उसमें ईश्वर मीमांसा तथा धार्मिक भावना कम कुलीन और सामंती मान्यताओं का प्रदर्शन अधिक है। परंतु बहुदेववाद में ईश्वर कहीं खो गया। प्लेटो हमेशा ईश्वरवादी दार्शनिक रहे। प्लेटो के अनुसार सृष्टि की रचना ईश्वर ने शाश्वत आकार के नमूने के आधार पर की। प्लेटो का ईश्वर वह शिल्पी था जिसके लिए ‘आकार’ वे सिद्धांत प्रस्तुत करते थे जिन पर सृष्टि की रचना का कार्य निर्भर था।

अरस्तु ने सृष्टि की उत्पत्ति के दो कारण माने हैं-प्रकृति और आकृति। सभी प्राकृतिक वस्तुएं किसी प्रकृति में किसी आकृति के संयोग से उत्पन्न होती है। प्राकृतिक वस्तुओं में गति का स्रोत नहीं है। वे प्रकृति से आंदोलित होती हैं। गति का स्रोत आकाश है। वही प्राकृतिक वस्तुओं का निमित्त है। किंतु संपूर्ण प्रकृति का लक्ष्य कहां है ? प्रकृति अपनी सामर्थ्य से विकास करते-करते किसे प्राप्त करना चाहती है ? अरस्तू के सामर्थ्य और वास्तविकता के विवेचन से ज्ञात होता है कि वास्तविक रूप में सामर्थ्य ईश्वर में है। प्रकृति का समस्त प्रयत्न अपनी समस्त सामर्थ्य को वास्तविकता में परिणत कर ईश्वर को ही प्राप्त करने का है।

अरस्तू के दर्शन में ईश्वर का प्रसंग व्यक्त रूप में बहुत कम आया है किंतु उसके सम्पूर्ण विज्ञान और दर्शन का आशय ईश्वर की सिद्धि करना ही मालूम होता है। गति की समस्या को लेकर उसने दिखलाया कि जगत में एक वस्तु दूसरी में गति उत्पन्न करती है। उसने ऐसे चालक की आवश्यकता का समर्थन किया जो किसी दूसरी वस्तु के द्वारा चालित न हो। इसे उसने ‘आकाश’ कहा था और ‘ईथर’ से बना हुआ बतलाया था। मेटाफिजिका में उसने दो बातें ऐसी कहीं हैं जिनसे यह अनुमान करना आवश्यक हो जाता है कि आकाश प्रथम नहीं है। एक तो वह यह कहता है कि प्राथमिक द्रव्य में पदार्थ नहीं होता, दूसरी यह कि मूल कारण वही हो सकता है जो पूर्ण सत्य में अवस्थित हो। आकाश में पदार्थ का संयोग है क्योंकि ईथर, पृथ्वी आदि चार भूतों से भिन्न होने पर पदार्थ ही है और वह पूर्ण सत्य नहीं है। जैसा ऊपर कहा जा चुका है कि आकाश भौतिक वस्तुओं की अपेक्षा अधिक वास्तविक है, पर उसमें भी सामर्थ्य का अंश है।

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