जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
सुकरात कहता था कि एथेंस में जो प्रजातंत्र है वह सामंतवादी है, उसके राजनेता सही अर्थ में राजनेता नहीं प्रजातंत्र के घरेलू नौकर थे जो जनता की रुचि के अनुसार काम करते थे पर उसके अवगुणों का उपचार करना नहीं जानते थे।
सुकरात की मृत्यु एक वास्तविकता है। इस वास्तविकता से यह प्रमाणित होता है कि एथेंस के प्रजातंत्र को एक आदर्श राजनीतिक व्यवस्था नहीं माना जा सकता। साथ में यह भी सत्य है कि सुकरात का मामला इस प्रजातंत्र का एकाकी उदाहरण है। प्लेटो के एक पत्र में पुनर्स्थापित प्रजातंत्र में राजनीतिक अपराधियों को क्षमादान देने की प्रशंसा के साथ-साथ यह उल्लेख भी मिलता है कि ‘यह संयोग ही था कि सत्ता में विराजमान कतिपय लोगों ने मेरे मित्र सुकरात पर आरोप लगाकर कटघरे में खड़ा कर दिया।’
अरस्तू ने जनसत्ता, कुलीन सत्ता और प्रजातंत्र तीनों प्रकार के शासन का विवेचन और समीक्षा कर शुद्ध तथा अशुद्ध शासन की व्याख्या की है। शुद्ध शासन में शासितों के हित को दृष्टि में रखा जाता है। अरस्तू प्रजातंत्र को श्रेष्ठ शासन मानता है। परंतु यह प्रजातंत्र आधुनिक प्रजातंत्र से भिन्न था। अरस्तू अपने प्रजातंत्र के समर्थन में कहता है कि नागरिक अधिकार उन तमाम व्यक्तियों को दे दिए जाएं जो राज-व्यवस्था में विचार संबंधी योगदान दे सकते हों अथवा न्याय का कार्य कर सकते हों। किंतु पद प्राप्ति के लिए शिक्षा और चरित्र की शर्त लगा दी जाए। इस प्रकार साधारण जनता के हाथ में केवल निर्वाचन का अधिकार रह जाता है। इस ‘साधारण जनता’ में वे लोग शामिल नहीं हैं जिन्हें मत देने की बुद्धि न हो। उन्हें ‘दास’ कहकर अलग कर दिया जाना चाहिए। दास और स्त्रियों को मत देने का अधिकार नहीं था।
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