दर्शन, राजनीति, काव्य, आचार शास्त्र, अर्थशास्त्र, प्राणी विज्ञान, शरीर रचनाशास्त्र, ओषधिशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, कला, भू-विज्ञान, गणित, रसायन विज्ञान, मनोविज्ञान, आदि विभिन्न विषयों पर अरस्तू ने बहुत कुछ लिखा। लगभग 400 ग्रंथों की उसने रचना की जिसमें मात्र 100 ग्रंथ अब उपलब्ध हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आज जो अरस्तू का विशाल साहित्य हमें उपलब्ध है, वह सब कुछ लीकियम में उसके द्वारा दिए गए व्याख्यान और टिप्पणियां ही थीं जिसे कालांतर में किसी संपादक द्वारा भौतिकी, आधिभौतिकी, राजनीति में विभाजित किया गया।
सिकंदर की मृत्यु की सूचना (देखें, अंतिम अनुच्छेद) जब एथेंस में आई तो इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव अरस्तू पर पड़ा। उसका भारी विरोध हुआ। एक तो प्रकट रूप में उसकी सहानुभूति मकदूनिया, यानी विदेशी समझी जाने वाली शासन-सत्ता के साथ थी, उसके साथ सहानुभूतिपूर्ण संबंध थे, और वह स्वयं यूनान की सीमाओं के बाहर का व्यक्ति था। दूसरे वह प्लेटो, जो यूनान में ही पैदा हुआ और वहीं मरा, के विचारों से पूर्ण सहमत न था और उसके विरोध में अपना स्कूल खोला था। इन कारणों से एथेंस में अरस्तू का विरोध शुरू हो गया। अरस्तू इन बातों से नहीं घबराया परंतु जब उसने सुना कि उसके विरुद्ध जनता में उत्तेजना फैलाने वाले एक व्यक्ति एवरीमेदोने द्वारा आरोप लगाए जाने के कारण उसकी अधार्मिकता के लिए मुकदमा चलाए जाने की तैयारी हो रही है तब उसने एथेंस छोड़ने का फैसला किया। अरस्तू ने एक बार अपने मित्र हर्मियास की मृत्यु पर उसे श्रृद्धांजलि देते हुए एक कविता लिखी थी उसे ही अधार्मिक माना गया क्योंकि कविता में मनुष्य की प्रशंसा की जाने पर देवताओं का अपमान माना जाता है। इस अभियोग का परिणाम अरस्तू भली भांति जानता था। अतः एथेंस छोड़ना उसने उचित समझा। बाद में उसने लिखा कि ‘वह एथेंस को दर्शन के विरुद्ध दो बार पाप करने का आदेश न दे सका।’
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