जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
अरस्तू ने अपने स्कूल का अधिकार थेओफ्रासतोस को सौंप दिया। अरस्तू के जाने के बाद एथेंस में अरस्तू के प्रति इतनी अश्रद्धा हो गई थी कि थेओफ्रासतोस और उसके बाद नेलिअस को अरस्तू के हस्तलिखित ग्रंथों को छिपाकर रखना पड़ा। वे ग्रंथ किन-किन हाथों में पड़े, कब कहां ले जाए गए, कुछ भी ज्ञात नहीं। ईसा पूर्व 287 में थेओफ्रास्तोस की मृत्यु के बाद उसके सारे व्यक्तिगत कागजात उसके शिष्य और संबंधी स्कैपसिस निवासी नेलिअस को प्राप्त हुए। नेलियस को अरस्तू और थेआफ्रास्तोस की संपूर्ण कृतियों के साथ-साथ इन दोनों के विशाल पुस्तकालय उपलब्ध हो गए थे। थियोफ्रेस्तोस से प्राप्त बहुमूल्य संपत्ति को उसने बहुत संभालकर रखा था। जब सिकंदरिया (मिस्र) के पुस्तकालय की अभिवृद्धि के लिए उसने टॉलमी द्वितीय को समस्त पुस्तकें बेचने का निर्णय लिया, मूल प्रतियां नेलियस ने अपने अधिकार में रखीं। नेलियस के पश्चात् उसके पुत्रों को पाण्डुलिपियां प्राप्त हुई जो पर्गामस के राजा के अधीन थीं।
पर्गामस का राजा सिकंदरिया से भी बड़ा पुस्तकालय अपनी राजधानी में बनवाना चाहता था। नेलियस के परिवार को पांडुलिपियों को राजा द्वारा छीन लिए जाने का भय था। अतएव राजा के आदमियों से छिपाने के लिए पांडुलिपियों को परिवार ने एक तहखाने में रखवा दिया। दो शताब्दियों तक भूमि के अंदर पड़े रहने से उनमें कीड़े लग गए तथा वे लगभग नष्ट सी हो गईं। वे पूर्णतः नष्ट हो जाती यदि ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के लगभग एथेंस के एक उत्साही दार्शनिक और पुस्तकों के संग्रहकर्ता अपैलीकोन द्वारा उन्हें खोज नहीं लिया गया होता। कहा जाता है कि पांडुलिपियों का पता लग जाने के बाद अपैलिकोन ने उसके मालिक के साथ सौदा तय किया तथा बहुत ही सस्ते दामों में उसे प्राप्त कर लिया। तत्पश्चात अरस्तू की कृतियों के प्रामाणिक संकलन निकालने की इच्छा से अपैलीकोन ने उन्हें संपादित करने का कार्य प्रारंभ किया।
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