जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
सिकंदर की सेना में सम्मिलित एक प्रमुख अधिकारी कालीस्थनीज ने निरंकुशता की प्रतीक इस पारसीक प्रथा का खुलकर विरोध किया। यह विरोध सिकंदर के लिए असह्य था। अवसर का लाभ उठाकर सिकंदर ने एक बालक-परिचर द्वारा अपनी हत्या करने के षड्यंत्र के झूठे आरोप में फंसाकर कालीस्थनीज को मृत्युदंड की सजा दी।
कालीस्थनीज एक योग्य अधिकारी होने के साथ-साथ दार्शनिक, इतिहासकार और विद्वान लेखक भी था। सिकंदर के अभियान से संबंधित विवरण तैयार करने का उत्तरदायित्व उसे आधिकारिक रूप से सौंपा गया था। कालीस्थनीज अरस्तू का भतीजा था। उसकी मृत्यु का समाचार पाकर अरस्तू क्षुब्ध हो उठा। इन दिनों सम्राट और अरस्तू के संबंध तनावपूर्ण थे तथापि ऐसा नहीं था कि अरस्तू का अस्तित्व सम्राट से अलग माना जाता हो। इस घटना के बाद भी सिकंदर अरस्तू को पत्र लिखता रहा। भारत पहुंचकर सिकंदर ने कई आश्चर्यजनक वस्तुएं देखीं। इन वस्तुओं के संबंध में उसने अरस्तू को एक पत्र लिखा।
ईसा पूर्व 322 की 13 जून को बेबीलोन में सम्राट की बीमारी से मृत्यु हो गई। यह समाचार आग की तरह चारो ओर फैला। सम्राट की मृत्यु के लिए उंगली अरस्तू की ओर भी उठी पर कोई सूक्ष्मतम प्रमाण तक नहीं था।
एथेंस में अपने विरुद्ध उठी आंधी से घबराकर अरस्तू एवबीया प्रांत में स्थित खालकिस में रहने चला गया। खालकिस में कुछ संपत्ति अरस्तू को उत्तराधिकार में मां से प्राप्त हुई थी। पत्नी पीथियास की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। उससे उत्पन्न पुत्री का विवाह अपने माता-पिता तुल्य संरक्षक के पुत्र निकानोर के साथ कर दिया था। उसके बाद वह एक दासी के साथ रहने लगा था। उससे एक पुत्र हुआ था-निकोमाखोस। उसका संरक्षण निकोनोर को दे दिया। संपत्ति स्वजनों और दास-दासियों में बांट दी। वह रोगग्रस्त हो गया था। तत्कालीन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अक्सर अरस्तू के होठ बंद रहते, उच्चारण अस्पष्ट हो गया था, सम्भवतः तुतलाने लगा था, आंखें अवश्य संकल्प से आपूरित थीं। दार्शनिकों के चरित्र के विपरीत पोशाक के प्रति सतर्क हो उठा था। खालकिस में ही रोगग्रस्त होने के कारण ईसा पूर्व 322 में दर्शन का यह सूरज सदा के लिए अस्त हो गया।
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