लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू

अरस्तू

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10541
आईएसबीएन :9781610000000

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…

गुरु गृह पढ़न गए ...

सत्रह वर्ष के उत्साही, जिज्ञासु, ज्ञान पिपासु युवक अरस्तु ने प्लेटो की अकादमी का नाम ही नहीं चर्चा भी सुन रखी थी। उसके विषय में जान भी लिया। उसने एथेंस के उपनगर एटिक का मार्ग पकड़ा, जहां, उसके जन्म के एक वर्ष के बाद, ईसा पूर्व 383 में प्लेटो द्वारा अकादमी स्थापित की गई थी। स्कूल का ‘अकादमी’ नाम कितना गौरवपूर्ण था। इस शब्द को आज भी सम्मान प्राप्त है। वास्तव में एटिक के राजनेता अकादिमोस के स्वामित्व वाली भूमि पर बनाए जाने के कारण संस्था का नाम ‘अकादमी’ रखा गया था। ‘मैंने कभी शिक्षण संस्थान खोला तो मैं तो उसे ‘स्कूल’ ही कहूंगा।’ श्रृद्धा और विश्वास को आंखों की ज्योति बनाते हुए उसने सोचा।

ईसा पूर्व 367 में अरस्तू ने अकादमी के सामने पहुंचकर, समस्त उत्सुकता आंखों में भरकर उसके सिंह-द्वार को देखा। यही है आदर, अनुराग और आराधना के योग्य संस्था। यहीं प्रज्वलित किया जाता है बुद्धि रूपी दीपक जिससे मनुष्य को संसार में सब कुछ स्पष्ट दिखाई पड़ता है। वहां एक सूचना स्थाई रूप से उत्कीर्ण थी-‘जो ज्यामिति से परिचित नहीं, उसका प्रवेश वर्जित है।’

‘चलो बचे!’ उसने सोचा,‘वह तो ज्यामिति का उस्ताद है।’

प्रवेश की पहली अदृश्य सीढ़ी पार कर वह अंदर दाखिल हुआ। सबसे पहले वह समय के प्रखर, परिष्कृत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी दार्शनिक प्लेटो के दर्शन करना चाहता था। पर प्लेटो अयोनीसियम द्वितीय की शिक्षा के निमित्त सिराक्यूज गया हुआ था। कुछ औपचारिकताओं के पूरी करने के बाद उसे अकादमी में प्रवेश मिल गया। उसे यह जानकर संतोष हुआ कि उसके अभिभावक पर कोई आर्थिक भार नहीं पड़ने वाला था। यहां शिक्षा निशुल्क थी।

अकादमी में स्त्रियों को विद्यार्थी के रूप में देखकर उसे आश्चर्य हुआ। वह जानता था कि यूनान में स्त्रियां सार्वजनिक जीवन में भाग नहीं लेती थीं तथा उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाती थीं। प्लेटो ने अपने अकादमी में किसी प्रकार का भेद पुरुषों और स्त्रियों के मध्य नहीं रखा था। अरस्तू ने प्लेटो की समतावादी दृष्टिकोण को मन ही मन नमन किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book