लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> हेरादोतस

हेरादोतस

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :39
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10542
आईएसबीएन :9781610000000

Like this Hindi book 0

पढ़िए, पश्चिम के विलक्षण इतिहासकार की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 8 हजार...

लेखकीय चरित्र

हेरोदोतस की लेखन पद्धति पूर्णतया वस्तुपरक है। उनका कार्य सिर्फ रोमांचकारी संघर्षों तक ही सीमित नहीं था, वह राजनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण था और आध्यात्मिक रूप से अति उच्च । उनका कार्य, अन्य किसी ज्ञात पुस्तक से अधिक, एक संपूर्ण व्यक्ति की अभिव्यक्ति है, किसी विषेष परिप्रेक्ष्य में और एक मस्तिष्क के द्वारा देखे जाने पर संपूर्ण संसार का प्रतिनिधित्व है। उस समय का संसार बड़ा रोचक था और मानवीय मस्तिष्क, जहाँ तक मानवता जानती है, अत्यधिक व्यापक था। निरंतर दोषदर्शी न होकर वह सहानुभूतिपरक हो जाते हैं या आपके बारे में लोगों के अंधविश्वास के प्रति वे बड़े नम्र हैं, ठंडे हैं। वे शुरू से ही लोगों की इस मान्यता को मानते रहे हैं कि ईश्वर ही इतिहास की सब घटनाओं का कारणभूत है। वह आशावादी, संवेदनशील, मानवीय प्रकृति के प्रेमी थे। किसी कहानी के लिए महत्वपूर्ण विवरणों में उनकी रुचि होती थी इसलिए मात्र सूचनाओं को वे भूल जाते थे। जिस समाज में वे रहते थे उसका वातावरण वे आसानी से समझ लेते थे। वे महान मानवीय प्रभावों के जादू में नहीं फंसते थे चाहे वह मिस्री राजाओं का गौरव हो या एथेंस के लोगों की चकाचैंध हो। वे हर समय युक्तियुक्त, अपने निर्णय में शांत और उदार, मानव स्वभाव की कमजोरियों से भिज्ञ, नायक के स्खलनों और दुष्ट आचरण के प्रति क्षमाशील थे। उनकी पुस्तक चाहे अच्छी हो या बुरी उसमें उनका यह चरित्र और यह कार्य झलकता है।

एथेंस के लिए उनके मन में सहानुभूति थी साथ ही वे परसिया के प्रति भी ईमानदार, यहां तक कि, उदार थे। यूनान और परसिया के युद्ध को वे जीवन से बड़ी एक महान घटना बताते थे। युद्ध में भाग लेने वालों के प्रति उनके मन में सहानुभूति थी, उनके दर्द को वे समझते थे। एक विवरण से यह बात स्पष्ट हो जाएगी- ‘‘और पूरे दर्रे (दानियाल) को जहाजों से भरा हुआ देखकर और एबीदोस के समुद्री किनारों और मैदानों को आदमियों से खचाखच भरा पाकर पहले दारा द्वितीय ने अपने को धन्य माना, फिर रोने लगा। उसके चाचा अर्तवानुस ने, जिसने कि यूनानियों पर चढ़ाई करने का पहले खुला विरोध किया था, जब दारा द्वितीय को रोते देखा तो पूछा, ‘बादशाह, तू जो कुछ अभी कर रहा है और जो कुछ कर चुका है, इन दोनों में कितना फर्क है! अभी तो अपने को तूने धन्य माना था और अब तू आंसू क्यों गिरा रहा है ?’ बादशाह ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हारा कहना ठीक है, लेकिन जब मैं हिसाब लगा चुका तो, यह देखकर कि इस भारी भीड़ में से सौ साल बाद एक भी जिंदा न रहेगा, इस विचार से करुणा से मेरा हृदय भर गया कि इन्सान की जिंदगी कितने थोड़े दिनों की होती है।’’

हेरादोतस विशिष्ट व्यक्तियों में महान रुचि रखते थे। अपने प्रफुल्ल विचारों के साथ उनके बारे में लिखते थे जिससे वे इतिहास के ही नहीं समाज विज्ञान के भी पिता हो गए।

* *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book