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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543
आईएसबीएन :9781610000000

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


लाठी की छोटी बहन को लठिया कहते हैं। स्त्रीलिंग होने के कारण यह अहिंसा का प्रतीक होती है। ज्यादातर धर्माचार्य, साधुजन, संत महात्मा इसे लेकर चले और चारों ओर धर्म का प्रचार किया। वर्तमान में अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी महात्मा गांधी सदैव अपने साथ एक लठिया रखते थे। हमारे देश में ज्यादातर भूखे-नंगे भिखारी, फ़कीर लठिया पकड़े मिल जाएंगे। कदाचित इसी कारण इंगलैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल ने आधुनिक यशःकामी सुंदरियों की तरह अर्धनग्न रहने वाले लठियाधारी गांधी जी को ´नंगा फ़कीर´ कहा था।

फिर लाठी पर लौटते हैं। गिरधर कवि ने लाठी की बहुत प्रशंसा की है। अपनी एक प्रसिद्ध कुंडलिया में लाठी के गुण बताते हुए कहते हैं कि यह नदी-नाला पार करते समय काम आती है, क्योंकि इससे पता चलता है कि पानी कहां कितना गहरा है, कुत्ता काटने दौड़े तो उस पर बरस पड़ती है, सामने आए शत्रु का नाश करती है और कच्चे मार्ग पर चलने वाले की पथ प्रदर्शक बन जाती है। इस कुंडलिया में उन्होंने लाठी को हथियार की श्रेणी में रखते हुए कहा है, ´सब हथियारन छांड़ि हाथ में लीजै लाठी।´ अंग्रेजों ने गिरधर को ठीक से समझा और लाठी रूपी हथियार देशी पुलिस को पकड़ा दिया ताकि वे सत्याग्रह करने वालों की आवाज़ को दबा सकें। अंग्रेजों के यहां लाठी नाम की चीज नहीं होती अतः वे भी इसे ´लाठी´ ही कहने लगे। अंग्रेजी शब्दकोष में भी घुसपैठ कर गई। जनता पर लाठी चलाने के लिए आदेश रूप में ´लाठी-चार्ज´ कहा जाता था। ´चार्ज´ युद्ध में प्रयुक्त होने वाला शब्द है। दुश्मन पर गोली बरसाना प्रारंभ करने के लिए ´चार्ज´ कहा जाता है। अंग्रेज तो भारतीय जनता को अपना शत्रु समझते थे उनका लाठी चार्ज कराना तो समझ में आता है परंतु स्वतंत्रता के सातेक दशक के बाद भी जनता पर ´लाठी चार्ज´ का अत्याचार हो रहा है। यह पानी (लाठी के) सिर से ऊपर निकल जाने वाली बात है।

लाठी में तेज धार वाले उपकरण लगाकर बल्लम, भाले, फरसे आदि बनाए जाते हैं। इनकी संगत में आकर लाठी पूर्णरूप से हिंसक हो उठती है। इस दुष्प्रभाव के संतुलन के लिए उसने अपने अहिंसक भाव भी समाज में छोड़ रखे हैं। अंधे की और अपाहिजों की लाठी बनकर यह उनका सहारा बनती है तो पुत्र के रूप में पिता के बुढ़ापे की लाठी बन जाती है।

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