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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543
आईएसबीएन :9781610000000

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


दुनियां की सबसे लम्बी-चौड़ी दीवार ´चीन की दीवार´ के नाम से मशहूर है जो पर्वतों, कछारों और मैदानों को लांघती हुई 3460 किमी तक फैली है। नई खोजों से ज्ञात हुआ है कि इतनी ही लम्बी दीवार समय की मार से जमींजोद है। इसे चीन के प्रथम सम्राट ने 221 ई.पू. में बनवाना प्रारंभ किया था। यह सोचा गया था कि यह दीवार उत्तरी आक्रमणों से चीन की रक्षा करेगी। पर चंगेज खान ने इस दीवार को तोड़ दिया क्योंकि मंगोलों को दीवारों से सख्त नफरत जो थी। वह टूटी दीवार फिर न बन सके, इसलिए उसने अपने भतीजे कुबलई खान को चीन का राजा बना दिया।

मेरा सबसे दुखद प्रयोग ´विभाजक´ के रूप में होता है। भाइयों में परस्पर बंटवारे की नौबत आने पर मकान के बीच मैं यानी दीवार ही खींच दी जाती है। सच कहती हूं कि खून के रिस्तों को जब बंटा हुआ देखती हूं तो खून के घूंट पीकर रह जाती हूं। मेरी व्यथा का उस समय पारावार नहीं होता जब दीवार खींचकर कोई देश बांट दिया जाता है। बर्लिन की दीवार ही देख लो 28 वर्ष तक देशवासियों को बांटे रही। 9 नवम्बर 1989 को जब वह दीवार गिराई गई तो, सच कहती हूं कुदालों, हथौड़ों, बुलडोजरों की चोट खाते समय मुझे तनिक भी कष्ट नहीं हुआ और स्वयं के विध्वंस पर मेरी ईंट-ईंट खुशी से नाचने लगी।

मेरा मान-सम्मान भी खूब किया जाता है। मुझे आकर्षक बनाने के लिए पहले चूने से मेरा मेक-अप किया जाता था। इससे मुझे तकलीफ होती थी। जमाना पल्टा और पेंट आया। एक से एक आकर्षक बहुरंगी पेंट मेरे ऊपर चढ़ाए जाते हैं। इन पेंटों से मैं निखर उठती हूं। इससे मुझे बड़ा सुख मिलता है। इसके बाद, मेरे श्रृंगार के लिए मेरे ऊपर कैलेंडर, बहुमूल्य चित्र, ´बाल हैंगिग´ आदि टांगे जाते हैं। इन्सान ने मेरे लिए एक खास घड़ी बनाई है जिसे ´दीवार घड़ी´ कहा जाता है। छाती पर कील ठुकवाकर भी मालिक की सुविधा के लिए मैं इसे स्वीकार कर लेती हूं। हजारों वर्ष पहले जब आदमी गुफाओं में रहता था तब उसे ऐसे फलक की तलाश रहती थी जिन पर वह उन जानवरों के चित्र बना सके जिनका वह पीछा करता था। अतः आदिम युग के मानव के सौंदर्य बोध की अभिव्यक्तियां भित्ति-चित्रों के रूप में मिलती हैं। बाद में यह कला विकसित हुई तो छेनी-हथौड़े मेरी छाती पर बजने लगे। मेरे इस दर्द को और मानव की कला को जोगीमारा, एलोरा और अजंता की गुफाओं में देखा जा सकता है। कहा जा सकता है कि कलाकार के लिए पहला ´फलक´ मैं ही थी।

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