जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
एक बार दिल्ली के गौरवशाली प्रेक्षागार ´विज्ञान-भवन´ में राजनीति, साहित्य, कला, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि विभिन्न विषयों पर समायोजित सम्मेलनों में बार-बार कुछ परिचित-से चेहरे श्रोता के रूप में हर बाद दिखाई पड़ने की शिकायत कुछ विशिष्ट राजनेताओं ने की। किसी कार्यक्रम में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्री या किसी अन्य विशिष्ट व्यक्ति के सम्मिलित होने पर विज्ञान-भवन भी श्रोताओं से भरा रहे यह संयोजकों की चिंता का विषय रहा है। ऐसे में सम्मेलन चाहे किसी विषय का हो, श्रोता पकड़कर लाने की जरूरत रहती है।
कभी-कभी श्रोता अपने श्रोतीय-कर्तव्य में वक्ता से भी दो कदम आगे निकल जाते हैं। ऐसा ही एक बार मेरे साथ हुआ। एक बार अपने मित्र के आग्रह पर मैं प्रवचन सुनने चला गया। प्रवचन अच्छा था, मैं मंत्रमुग्ध-सा सुनता रहा तभी प्रवचनकर्ता पंडित जी रुक गए। मेरी एकाग्रता भंग हुई और मैने देखा कि मेरे मित्र सहित सभी श्रोता जा चुके हैं, अकेला मैं बैठा रह गया था। मैं समझ गया कि मात्र एक श्रोता को पंडित जी प्रवचन नहीं देना चाहते थे इसलिए चुप हो गए हैं। अपने श्रोतीय-कर्तव्य में विषयांतर करते हुए मैंने कहा, ´´पंडित जी यदि आपके पास दस गायों का चारा हो और गाय एक ही हो, तो क्या उस गाय को आप चारा नहीं खिलायेंगें।´´ पंडित जी मेरा आशय समझ गए और प्रवचन प्रारंभ कर दिया। जब मैंने देखा कि काफी समय खिसकने के बाद भी पंडित जी रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं तो सांस लेने हेतु पंडित जी के क्षणिक विश्राम के मध्य मैंने टोका, ´´पंडित जी यदि आपके पास दस गायों का चारा हो और गाय एक ही हो तो क्या सारा चारा उसी गाय को खिला देंगें।´´ पंडित जी ने मेरा आशय समझकर प्रवचन समाप्त कर दिया और मैं श्रोतीय कर्तव्य से छूटा।
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