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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543
आईएसबीएन :9781610000000

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


जब से लोकतंत्र की हवा चली है श्रोताओं के भाव खूब बढ़ गए हैं। चुनाव के मौसम में जनसभाओं या शक्ति प्रदर्शन हेतु रैलियों के आयोजन में नेताओं की सभाओं में अधिक से अधिक श्रोता जुटाने की जिम्मेदारी पार्टी के छुटभइया नेताओं पर होती है। लंच पैकेट के आश्वासन पर ट्रकों और बसों से प्रयोजित श्रोता लाए जाते हैं जिनकी कुल संख्या नेता के पक्ष में हवा बंधने का पैमाना मानी जाती है। इन श्रोताओं को अपनी बेचारगी का आभास उस समय होता है जब सभा या रैली समाप्त हो जाने के बाद कोई उनका पुरसा हाल नहीं रह जाता।

चुनाव के दौरान एक बार एक बड़े राष्ट्रीय नेता का विमान एक नगर की जमीन इसलिए न छू सका कि उन्हें ऊपर उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार नीचे सभास्थल पर उनके कद के अनुसार अपेक्षित श्रोताओं की संख्या पूरी नहीं हो पाई थी क्योंकि दूर-दराज से उन्हें ढ़ोकर लाने वाली बसें और ट्रक चुनाव अधिकारियों द्वारा झटक लिए गए थे।

जिस प्रकार देवकीनंदन खत्री ने ´चंद्रकांता संतति´ लिखकर हिंदी के पाठक पैदा किए उसी प्रकार रेडियो ने शुरू-शुरू में खूब श्रोता पैदा किए। साठ-सत्तर के दशक में बिनाका गीतमाला कार्यक्रम सुनने के लिए उस समय पान की दूकानों तक पर श्रोताओं की भीड़ एकत्र हो जाती थी। रेडियो के ऐच्छिक श्रोता रेडियो से बंधे बैठे रहते थे। इन श्रोताओं ने श्रोता-संघ तक बना डाले।

मोहल्लों में होने वाले देवी जागरणों या धार्मिक प्रवचनों ने बंधुआ श्रोता पैदा किए। ऐसे मौकों पर मकान की छत पर लाउडस्पीकर लगा दिए जाने से आस-पास के दस पांच घर के लोग बंधुआ श्रोता बन जाते हैं। महापुरुषों की जयंती पर मोहल्ले के प्रत्येक बिजली या टेलीफोन के खंभे पर तथा अन्य उपयुक्त स्थान पर लाउडस्पीकर लगाने की संस्कृति ने श्रोता ही श्रोता पैदा किए।

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