जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
परख
एक कवि थे जो सदा काव्य-साधना में लगे रहते। कई खंड-काव्यों की रचना की, पर प्रकाशकों ने छापने से मना कर दिया। एक पुस्तक छपी थी पर कोई रायल्टी नहीं मिली। कवि को सस्वर कविता-पाठ का अभ्यास नहीं था अतः कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति दर्ज नहीं हो पाती। संयोजकों को हमेशा उनके हूट होने का डर बना रहता।
थोड़ी बहुत पैतृक संपत्ति थी जो धीरे-धीरे समाप्त हो गई। आमदनी का कोई ज़रिया न रहने पर पहले पत्नी के जेवर फिर घर की अन्य वस्तुएं बिकती रहीं। घर में कुछ न रहने पर जब पत्नी और छोटी बच्ची भूख से बेहाल रहने लगी तो कवि को स्वयं पर बहुत क्षोभ हुआ। सोचा कि आज तक उन्होंने जो कुछ लिखा है वह सब व्यर्थ है, शायद काव्य है ही नहीं। कदाचित् इसी कारण उनकी रचनाएं कहीं भी स्वीकार्य नहीं हैं। गहन निराशा के गर्त में डूब जाने के बाद कवि का मानसिक विक्षोभ इतना बढ़ा कि उन्होंने आत्महत्या करने की ठान ली। इसी उद्देश्य से वे तत्काल नदी की ओर चल दिए।
शहर के बाहर एक सरकस लगा था। उधर से गुजरे तो एक घोषणा कानों में पड़ी-´´पांच सौ रुपये कमाने का अंतिम सुनहरा मौका। हां भाइयों! पांच सौ रुपये ...।´
कवि ने सोचा कि इस मौके का लाभ उठाना चाहिए। प्रयत्न करने में क्या हर्ज है! उनके पैर सरकस की ओर बढ़ गए। वहां पहुंचकर पूरी बात मालूम करने के लिए मैनेजर से मिले। उसने बताया, ´´यदि कोई आदमी पूरे शो के दौरान शेरों के पिंजड़े में बैठा रहे तो शो के बाद बाहर निकलने पर पूरे पांच सौ रुपये दिए जाएंगे।´
´और यदि वह पिंजड़े के बाहर निकलने लायक न रहे तो?´ कवि ने जिज्ञासा की।
´ऐसी दशा में हम उसके वारिसों को एक हजार रुपया देते हैं।´ मैनेजर ने बताया।
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