जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
|
|
राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
कवि को लगा कि आत्महत्या करने का इससे अच्छा और तरीका भला क्या हो सकता है। अंतिम संस्कार का कोई खर्चा नहीं, उल्टे परिवार को एक हजार रुपये की प्राप्ति। कुछ समय तक तो पत्नी और बच्ची का पोषण हो सकेगा। अतः इस काम के लिए कवि ने सरकस कंपनी को अपनी लिखित सहमति दे दी और वारिस के रूप में पत्नी का नाम और पता लिखा दिया।
मैनेजर ने शो शुरू होने के पहले कवि को भरपेट भोजन कराया। कवि को तसल्ली हुई कि चलो, मृतात्मा कम से कम भोजन के लिए तो नहीं भटकेगी, भले ही रचनाओं के प्रकाशन के लिए भटकती रहे।
शो शुरू हुआ। मंच पर रखे एक विशाल पिंजड़े में कई शेर बैठे थे। कवि ने पिंजड़े में प्रवेश करते ही हिंसक जंतुओं में थोड़ी हलचल हुई। कवि घबराए-से एक खाली स्टूल पर बैठ गए। उन्हें कुछ न सूझा तो अपने खंडकाव्य ´अमृत-पुत्र´ का ऊंचे स्वर में पाठ करने लगे। स्मरण शक्ति अच्छी थी अतः पूरा काव्य कंठस्थ था। हिंसक जीव पता नहीं कौन-सी रसधार में निमग्न हो गए कि अपने-अपने स्थान पर अविचलित बैठे रहे।
शो समाप्त होने पर कवि पिंजड़े से बाहर निकाले गए। पिंजड़े के बाहर खड़े होकर वे शेरों को ध्यान से देखने लगे।
मैनेजर ने पूछा, ´´आप तीन घंटे इनके साथ रहे, अब क्या देख रहे हैं?´
´´जो देखना था देख लिया, अब तो सोच रहा हूं कि इन हिंसक जीवों में दुर्भाग्यवश यदि कोई प्रकाशक-वृत्ति का होता तो शायद आपको एक हजार की रकम मेरे घर भेजनी पड़ती।´
पांच सौ रुपये जेब में डालकर कवि घर की ओर चल दिए।
|