जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
´´जी धन्यवाद। पेंटर ने मेरे ही आइडिया पर बनाया है।´´
´´पर इस संबंध में मैं कुछ और ही कहना चाहता हूँ।´´
´´हां! हां!! कहिए न ! लेकिन रुकिए, पहले मैं आपके लिए ठंडा मतलब कोकाकोला मंगाता हूँ।´´
´´तकल्लुफ की जरूरत नहीं है। मैं न ठंडा लूंगा, न गरम।´´
´´जैसी आपकी मर्जी। हां, आप कुछ कहने वाले थे।´´
´´देखिए, आपकी दुकान के साइन बोर्ड पर बड़े कलात्मक ढंग से लिखा है ´´यहां ताजा दूध बिकता है´´। पर इस वाक्य का विन्यास मुझे कचोटता है।´´
´´कहां? मेरा मतलब कैसे?´´
´´देखिए, मेरा मतलब, ध्यान दें। दूध तो आप इसी दुकान पर ´यहीं´ बेचते हैं, इसलिए पूरे संदेश में ´यहां´ शब्द निरर्थक है, फालतू है।´´
´´आप ठीक कहते हैं´´, कुछ क्षण सोचने के बाद दुकानदार ने कहा।
सोपान जी दूसरे दिन सुबह दूध लेने गए तो देखा कि बोर्ड से ´यहां´ शब्द गायब है। मन ही मन प्रसन्न हुए। उस समय तो लौट गए पर दोपहर में फिर जा धमके। बोले, ´´आपने मेरे सुझाव पर अमल किया, धन्यवाद।´´
´´धन्यवाद के लिए कृतज्ञ हूँ। पर इसे सुबह ही दे देते तो इस समय फिर आने का कष्ट न उठाना पड़ता।´´
´´सुबह बोर्ड देखते ही मेरी चिंतन प्रक्रिया फिर प्रारंभ हो गई। लगा, सिर्फ ´यहां´ हटना ही काफी नहीं है। अब देखिए एक तो बासी दूध आप कानूनन नहीं बेच सकते, दूसरे आपके पास ताजा ही कहां बचता है। इसलिए बोर्ड पर ´दूध´ शब्द के पूर्व लगा ´ताजा´ विशेषण अनावश्यक हो जाता है। इसके अतिरिक्त जब आप पैसे लेकर दूध देते हैं, मुफ्त नहीं देते तो ´दूध´ के आगे ´बिकता है´ लिखने का कोई औचित्य नहीं।´´ सोपान जी सांस लेने थमे।
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