जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
आदत से मजबूर
मोहल्ले में दूध की एक नई दुकान खुली। दुकानदार सभ्य, सुसंस्कृत और शालीन-सा लगने वाला व्यक्ति था। लोगों ने दूध की गुणवत्ता पर कम दुकानदार की विनम्रता पर ज्यादा ध्यान दिया। दुकान चल निकली।
मोहल्ले के प्रखर व्यक्तित्व ´सोपान जी´ एक सुबह नई दुकान से दूध लाए। घर आकर कई घंटे बेचैन रहे अतः दोपहर में दुकान पर फिर जा पहुंचे। दुकानदार ने औपचारिक स्वागत करते हुए कहा,´´क्षमा करें श्रीमन् दूध तो खत्म हो गया है, इस समय आपकी सेवा नहीं कर पाऊंगा। पर मुझे लगता है...।´´
´´आपको ठीक लग रहा है कि आपने मुझे सुबह देखा था। तब मैं दूध लेने आया था।´´
´´मैं शर्मिंदा हूँ भाई साहब...।´´
´´अरे क्यूं, भइया? क्या सुबह वाले दूध में कुछ गड़बड़ थी?
´´जी नहीं, दूध तो एकदम मौलिक, मेरा मतलब शुद्ध था। पर आप आज सुबह ही आए थे और इस समय दोपहर में मैं आपको तत्काल पहचान नहीं पाया। कितने दुःख की बात है।´´
´´होता है! कितने ही ग्राहक रोज आते हैं, जाते हैं, आखिर आप किसे-किसे याद रख सकते हैं!´´
´´खैर, यह बताइए इस समय कैसे कष्ट दिया?´´
´´सुबह मैंने आपकी दुकान का नाम-पट्ट यानी साइन बोर्ड देखा था।´´
´´अच्छा लगा न। पेंटर का नाम-पता चाहिए?´´
´´नहीं, उसकी जरूरत नहीं है। आपका साइन बोर्ड बड़ा कलात्मक बन पड़ा है।´´
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