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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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रहीम ने इस छंद पर प्रसन्न होकर महाकवि को छत्तीस लाख रुपये दिए। रहीम की दानशीलता और दान देने के ढंग पर कवि गंग ने यह दोहा लिखकर भेजा-

सीखे कहां नवाबजू ऐसी देनी दैन।
ज्यों-ज्यों कर ऊंचों करो त्यों-त्यों नीचे नैन।

रहीम ने अत्यंत विनम्रता और निरभिमानता दिखाते हुए उसी समय उत्तर देते हुए यह दोहा लिखकर भेज दिया-

देनदार कोई और है, भेजत हैं दिन रैन।
लोग भरम हम पर धरैं, यातें नीचे नैन।

´तारीख़ चगत्ता´ नामक ग्रंथ में लिखा है कि एक दिन ´सीस पगा न झगा तन में´ वाला रूप लिए एक निर्धन ब्राह्मण ख़ानख़ाना की ड्योढ़ी पर आया और दरबान से कहा, ´´नबाब से कहो तुम्हारा साढ़ू आया है।´´

रहीम को खबर हुई। वे जानते थे कि उनका कोई साढू नहीं है तथापि उसे बुलवाया और सम्मान के साथ बिठाया। उसे खिलअत पहनाई। सुनहले साज सहित खास घोड़ा दिया और धन संपत्ति देकर उसे विदा किया। किसी ने पूछा, ´´यह मंगता आपका साढू़ कैसे हुआ?´´

रहीम ने तत्काल उत्तर दिया- ´´संपत्ति और विपत्ति दो बहनें हैं। पहली हमारे घर में है दूसरी इसके। इसी नाते साढू़ हुआ।´´

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